- एमएनएलपी की रिपोर्ट के बाद मेयर और पार्षदों ने बनाई राय

- नगरायुक्त और अधिकारियों की गलती से मीटिंग में बवाल

- बोर्ड मीटिंग में दूसरे दिन सिर्फ 32 पार्षदों ने दर्ज कराई उपस्थिति

एमएनएलपी की रिपोर्ट के बाद मेयर और पार्षदों ने बनाई राय

- नगरायुक्त और अधिकारियों की गलती से मीटिंग में बवाल

- बोर्ड मीटिंग में दूसरे दिन सिर्फ फ्ख् पार्षदों ने दर्ज कराई उपस्थिति

Meerutmeerut@inext.co.in

Meerut : नगर निगम की स्पेशल बोर्ड मीटिंग सोमवार को कोरम पूरा न होने की स्थिति में मंगलवार को रखी गई तो पहले दिन मुकाबले पार्षदों की संख्या और घट गई। काफी जद्दोजहद और एमएनएलपी की रिपोर्ट के बाद जो स्थिति स्पष्ट हुई उससे मौजूद पार्षदों के होश उड़ गए। जिस बोर्ड मीटिंग में सभी पार्षद सफाई कर्मचारियों के वेतन का प्रस्ताव लाकर सिटी की समस्या दूर करना चाह रहे थे, वो मीटिंग ही अवैध घोषित कर दी गई। काफी देर तक मंथन करने के बाद मेयर ने मीटिंग को समाप्त कर नई मीटिंग करने का ऐलान कर दिया।

क्भ्0 मिनट बाद

नगर निगम की स्थगित बोर्ड बैठक में सिर्फ फ्ख् पार्षद ही पहुंचे। वहीं नगरायुक्त भी करीब आधा घंटे लेट बोर्ड मीटिंग में पहुंचे। सभी पार्षदों और अधिकारियों को उम्मीद थी कि वो नाराज बाकी पार्षदों को साथ लेकर आएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पार्षदों का एक ही सवाल था कि आज भी कोरम पूरा नहीं है तो बोर्ड मीटिंग हो सकती है या नहीं? ऐसे में उपनगरायुक्त नियम पढ़कर सुना दिया। इसके बाद मामला ये उठा कि महानगर लेखा परीक्षक मीटिंग में मौजूद नहीं हैं, जबकि मैटर उन्हीं का है। जब वो आए तो मीटिंग को ही अवैध घोषित कर दिया। इस पूरे मामले को सामने आने में ढाई घंटे का समय लग गया।

क्या दिया आधार?

महानगर लेखा परीक्षक की मानें तो स्थगित बोर्ड की सूचना नगर निगम की धारा-90 (फ्) के अंतर्गत दी जानी चाहिए थी, लेकिन जो अखबारों में विज्ञापन दिया गया कि उसमें सिर्फ धारा-90 का ही जिक्र किया गया। महानगर लेखा परीक्षक ने सिर्फ इतना कहा कि अगर नियमों की बात की जाए तो ये मीटिंग पूरी तरह से गलत है। जब उनसे इस बारे में लिखित में देने की बात कही गई तो उन्होंने लिखित में देने से साफ इनकार कर दिया। जब मेयर ने उन पर लिखित में देने का दबाव बनाया तब जाकर लिखित में दिया।

एक दूसरे के पाले में डालते रहे गेंद

इससे पहले जब बोर्ड मीटिंग प्रक्रिया शुरू करने की बात हुई तो पार्षदों ने साफ पूछा कि हम ये मीटिंग कर सकते हैं। नगरायुक्त हां या ना में जवाब देकर मिनट्स में नोट कराएं। जिस पर उप नगरायुक्त ने बताया कि इस मामले में निगम के अधिवक्ता संजय शर्मा से ली गई विधिक राय को सुना दिया, जिसमें उन्होंने मीटिंग करने की सलाह दी थी। मेंबर्स ने साफ कहा कि अधिकारी परमीशन देकर मिनट्स में नोट कराएं। अधिकारियों ने ऐसा करने साफ इनकार करते हुए कहा कि इस बात का फैसला सदन करेगा। अधिकारी नहीं। पार्षद और अधिकारी इस मामले में पूरी तरह से अड़े रहे।

स्थाई कर्मचारी क्यों नहीं कर रहे काम

सदन में बैठे पार्षदों ने एक सुर में आवाज उठाई कि नगर निगम में ख्ख्0म् संविदा कर्मचारी हैं, जबकि क्0फ्9 स्थाई कर्मचारी कार्यरत हैं। हड़ताल संविदा कर्मचारियों की है। न कि स्थाई कर्मचारियों की है। ऐसे में स्थाई कर्मचारी काम क्यों नहीं कर रहे हैं। अधिकारियों की जिम्मेदारी बनती थी कि ऐसी विकट परिस्थितियों में स्थाई सफाई कर्मचारियों की बीट बढ़ाकर उनसे सफाई का काम लिया जाता। ताकि महानगर के लोगों को कोई दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन इस बात की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया।

सिर्फ फ्ख् पार्षद रहे मौजूद

वहीं अगर पार्षदों की उपस्थिति की बात करें तो मंगलवार को सिर्फ फ्ख् ही पार्षद सदन में पहुंचे, जबकि सोमवार को यही संख्या ब्ख् की थी। पार्षदों की मानें तो जब तक सफाई कर्मचारी हड़ताल खत्म नहीं करेंगे तब तक वो सदन में नहीं आएंगे। वहीं सफाई कर्मचारियों का मत है कि जब उनके वेतनमान में बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव शासन को नहीं भेजा जाएगा तब वो हड़ताल खत्म नहीं करेंगे।

नई मीटिंग होगी कॉल

सभी की राय के जानने के बाद मेयर ने मौजूदा मीटिंग को समाप्त करते हुए नई मीटिंग कॉल करने के आदेश कर दिए हैं। मेयर ने साफ कर दिया है कि जो प्रस्ताव भेजा जाएगा वो नियमों के तहत भेजा जाएगा। इसकी सूचना जल्द ही जारी कर दी जाएगी। उन्होंने ये भी कहा कि जो पार्षद नहीं आ रहे हैं उन्हें भी सदन में वापस बुलाने का प्रयास किया जाएगा।

मीटिंग समाप्त कर दी गई है। महानगर लेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार मीटिंग नियम से नहीं थी। अब इसे समाप्त कर नई मीटिंग बुलाने की बात कही गई है। ये निर्णय सदन में मौजूद सभी पार्षदों से लेने के बाद लिया गया है।

- हरिकांत आहलूवालिया, मेयर

ढाई घंटे बैठने के बाद अगर पता चले कि मीटिंग अवैध थी तो काफी बुरा लगता है। महिला पार्षदों को और भी बहुत से काम होते हैं।

- ज्योति वाल्मीकि, पार्षद, वार्ड-क्8

टाइम खराब करने के अलावा और कुछ नहीं हुआ। हमें अपने घर और बच्चों को भी संभालना होता है, लेकिन इस बारे में कुछ नहीं सोचा जाता है।

- पूजा वाल्मीकि, पार्षद, वार्ड-क्7

आज जो हुआ उसके जिम्मेदार पूरी तरह से अधिकारी हैं। अगर उन्होंने नियमों पालन ठीक से किया होता तो इतना टाइम वेस्ट ही नहीं होता।

- ज्योति वर्मा, पार्षद, वार्ड-भ्ख्

महिला पार्षदों के और भी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना होता है। अगर इसी तरह से टाइम वेस्ट होता रहा तो बाकी काम कैसे होंगे।

- रेनू गुप्ता, पार्षद, वार्ड-ब्क्

अधिकारियों को पूरे नियम के देखने के बाद मीटिंग का विज्ञापन जारी करना चाहिए था। ढाई घंटे के बाद पता चले कि कि मीटिंग ही अवैध है तो बड़ा अजीब लगता है।

- अनुपमा सोलंकी, पार्षद, वार्ड-फ्ब्

अधिकारी और कर्मचारी दोनों ही अपनी जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वाह नहीं कर रहे हैं। दोनों ही ठीक से काम करने लगे तो प्रॉब्लम ही खत्म हो जाए।

- कोमल लोधी, पार्षद, वार्ड-ब्ब्

अधिकारियों ने इस मामले में पूरी तरह उसे बहकाने का काम किया है। नियमों के विरुद्ध मीटिंग कराकर हमें कटघरे में खड़ा कराना चाहते थे।

- तहसीम अंसारी, पार्षद, वार्ड-म्ख्

महानगर लेखा परीक्षक ने जो अपनी रिपोर्ट लगाई है वो पूरी तरह से सही है, जबकि नगरायुक्त और बाकी अधिकारी हमें गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे।

- रिषीपाल सिंह, पार्षद, वार्ड-09

मीटिंग शुरू होने से पहले जो हुआ काफी गलत हुआ। पब्लिक का टाइम और रुपया दोनों बर्बाद हुआ। जो कार्य आगे किया जाएगा वो नियम के अनुरूप ही किया जाएगा।

- हरीश कुमार, उपाध्यक्ष, कार्यकारिणी

ये लड़ाई संविदा कर्मियों की है। ऐसे में स्थाई कर्मचारी काम क्यों नहीं कर रहे हैं। उन्हें सफाई की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए।

- डॉ। ओमवीर सिंह, पार्षद, वार्ड-0भ्

Posted By: Inextlive