भीड़ जुटाने का था प्रेशर, लौटने पर भीड़ का 'वादा' पूरा नहीं हुआ तो खुली पोल-पट्टी

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'माया' की महिमा अपरम्पार है। इसके चक्कर में जनता घनचक्कर बनी हुई है। तपिश का कोई असर नहीं। प्यासे रह लिया। सबकुछ झेलकर माया के दर्शन भी पा लिए लेकिन कमिटमेंट के मुताबिक 'माया' के दर्शन नहीं हुए तो उसकी ऐसी-तैसी कर डाली। अब यह चर्चा गांव से निकलकर शहर तक पहुंच चुकी है।

पूरे समय तक झेलते रहे

रविवार को इलाहाबाद में बसपा सुप्रीमो मायावती की मण्डल स्तरीय रैली थी। उनकी रैली में वैसे ही बड़ी संख्या में पब्लिक पहुंचती है। इसके बाद भी सबको हिडेन टारगेट दिया गया था। रैली में पब्लिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली से ज्यादा भीड़ दिखनी चाहिए। इसीलिए नेताओं ने मैदान और स्पॉट वही चुना जहां मोदी ने जनता को सम्बोधित किया था। टाइमिंग में थोड़ा फर्क था मायावती को बोलने के लिए लगभग उतना ही टाइम रखा गया था जितनी देर मोदी बोले थे। इस टास्क को हासिल करने का प्रेशर नेताओं पर इतना जबरदस्त था कि उन्होंने शाम-दाम-दण्ड भेद सभी हथकंडों का इस्तेमाल किया। इससे उन्हें अपना 'टारगेट' हासिल हो गया। प्रोजेक्ट किया गया कि माया को सुनने के लिए लोग स्वत: पहुंचे थे। बताया गया कि प्रदेश की जनता परिवर्तन चाहती है। उसने परिवर्तन की झलक इसके जरिए दिखाई है।

घर पहुंचे तो खोली पोल-पट्टी

रैली का हिस्सा बनने के लिए पब्लिक सुबह ही घरों से निकल गई थी। उसके लिए वाहन का प्रबंध 'टारगेट' लेने वाले नेता जी ने किया था। उन्हीं के जिम्मे नाश्ता-पानी का प्रबंध भी था। सब कुछ अच्छे से निबट गया तो नेताजी इतराने लगे। थोड़ा रौब भी गांठने का समय आ गया था। रही-सही कसर पूरी कर दी उनके 'एजेंटों' ने। पब्लिक कई नेताओं के एजेंटों को घेरे हुए थी। पूछने पर पता चला कि यहां आने से पहले हर किसी से 'कमिटमेंट' किया गया था। अब उसे पूरा नहीं किया जा रहा है। 20 परसेंट भी नहीं दिया जा रहा है। इससे ज्यादा तो हम काम करते तो पा जाते। इसने मीडिया का ध्यान खींचना शुरू कर दिया तो 'एजेंटों' ने यह कहकर उन्हें हटा दिया कि यहां इन बातों का कोई मतलब नहीं है। पब्लिक लौट गई तो यह चर्चा सोमवार की सुबह घर-घर तक पहुंच गई। एक्चुअली यह वह तबका है जो रोज कहीं न कहीं काम करने जाता है। पूरा एक दिन खराब हुआ था तो उसने कोसना शुरू कर दिया। इससे चर्चा-ए-आम हो गई। वैसे कोई नेता इस 'कमिटमेंट' पर जबान खोलने को तैयार नहीं है। वैसे भी 'माया' के अपने नियम कानून से सभी परिचित हैं। जानते हैं कि जबान खोलने का अंजाम क्या होता है।

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बाक्स

सुप्रीमो के लिए दस एसी, जनता के लिए पंखा भी नहीं

रैली के बाद घर लौटे लोग व्यवस्था को लेकर भी आयोजकों को कोसते रहे। उनका कहना था कि पार्टी सुप्रीमो के लिए ही इंतेजाम किया गया था। उन्हें भाग्य भरोसे छोड़कर। मंच पर दस एसी चल रहे थे और पब्लिक के बैठने के स्थान पर एक पंखा तक नहीं लगवाया गया था। इतनी कड़ी धूप में बैठने का ही नतीजा था कि कई लोग बीमार और बेहोश हो गए।

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मंच पर सिर्फ केशरी को इंट्री

मायावती के मंच पर सिर्फ पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष केशरी देवी पटेल को इंट्री मिली थी। वह भी सिर्फ कुछ पलों के लिए। उन्होंने माया मैडम से आर्शीवाद लिया और मंच से उतर गई। विधायक पूजा पाल की झलक इतने समय के लिए भी मंच पर नहीं मिली।

Posted By: Inextlive