- भगवतदास घाट पर दबंग पण्डा और उसके साथी सब्जी की फेरी करने वालों से करते हैं वसूली, हर महीने लाखों की करते है काली कमाई

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KANPUR :

शहर के ऐतिहासिक भगवतदास घाट में विधि विधान से लाशों का अन्तिम संस्कार होता है। साथ ही यहां पर लोग गंगा स्नान करने भी जाते हैं। ये तो आपको मालूम होगा, लेकिन आपको ये नहीं मालूम होगा कि इस धार्मिक घाट में अवैध रूप से तहबाजारी वसूलने का भी खेल चलता है। जिसमें हर महीने फेरी वालों से लाखों रुपए वसूले जाते है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर घाट पर कौन अवैध रूप से वसूली कर रहा है? ये गैरकानूनी है तो फेरी वाले विरोध क्यों नहीं करते हैं? इससे पब्लिक और सरकार का क्या नुकसान हो रहा है? तो इसे जानने के लिए पढि़ए ये स्टोरी।

दबंग पण्डा और उसके साथी करते हैं अवैध वसूली

वैसे तो भगवतदास घाट कैण्ट बोर्ड की प्रापर्टी है, लेकिन यहां पर दबंग सुरेश पण्डा का कब्जा है। वहां पर पण्डा, उसके साथी शुक्लागंज के मज्जन और लइया बाजार के शिव प्रसाद का एकछत्र राज है। जिसमें पण्डा उनका मुखिया है। पण्डा खुद को वहां का मालिक बताता है। उसका कहना है कि ब्रिटिश हुकुमत ने उसके परिवार को यह जगह दान में दी थी। तब से वो और उसका परिवार गंगा की सेवा कर रहे हैं, लेकिन हकीकत इसके उलट है। वो गंगा की सेवा की आड़ में साथियों समेत अवैध तहबाजारी का गोरखधंधा कर रहा है।

घाट के रास्ते के नाम पर होती है वसूली

भगवतदास घाट गंगा का किनारा है। गंगा के उस पार कटरी में खेती होती है। फेरी वाले किसानों से सब्जी खरीदते हैं और उसे नाव पर लादकर भगवतदास घाट लाते हैं। यहां पर वे सब्जी को ठेले, लोडर समेत अन्य साधन में लोड कर ले जाते हैं। सुरेश पण्डा और उसके साथी घाट के इस रास्ते को यूज करने के लिए फेरी वालों से रुपए वसूलते हैं। अगर कोई फेरी वाला उन्हें रुपए देने से मना करता है, तो वे न तो उसकी नाव को घाट पर रुकने देते हैं और न ही उसे घाट का रास्ता यूज करने देते है। बल्कि वे उसकी सब्जी को पलटा देते हैं।

हर दिन आते है औसतन म्00 फेरी वाले

गंगा कटरी से इस पार आने के कई रास्ते है, लेकिन भगवतदास घाट हार्ट ऑफ सिटी में है। यहां पर फेरी वालों को आसानी से संसाधन मिल जाता है। साथ ही घाट से फूलबाग, एक्सप्रेस रोड, घंटाघर सब्जी मण्डी कुछ दूरी पर है। जिसके चलते फेरी वाले ज्यादातर इसी रास्ते को यूज करते है। इस घाट पर हर दिन औसतन म्00 फेरी वाले पहुंचते हैं। इसमें हर तरह के ठेले वाले होते हैं। यहां पर नौबस्ता, यशोदानगर, लाल बंगला, रामादेवी, माल रोड, कल्याणपुर, रावतपुर, मेस्टनरोड, किदवईनगर समेत अन्य इलाकों के फेरी वाले पहुंचते हैं। इसके अलावा सब्जी के अन्य विक्रेता गंगा कटरी से सब्जी लेकर भगवतदास घाट पहुंचते हैं। सुरेश पण्डा इनसे भी तहबाजारी वसूलता है।

काम दो घंटे, कमाई 7.भ्0 लाख रुपए महीना

हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा कहावत की तर्ज पर सुरेश पण्डा कमाई करता है। वो बिना कुछ लगाए हर महीने लाखों रुपए की काली करता है। इसके लिए वो सिर्फ दो घंटे साथियों समेत घाट पर बैठता है। वो दो साथियों के साथ सुबह 7.फ्0 बजे से 9.फ्0 बजे तक गेट पर कुर्सी डालकर महाराज की तरह बैठता है। वहीं, उसके गुर्गे घाट पर आने वाले हर फेरी वाले से अवैध वसूली करते हैं। वे एक झल्ली के एवज में क्0 रुपए की वसूले हैं। एक फेरी वाला तीन से पांच झल्ली सब्जी लेकर आता है, जबकि बड़े विक्रेता एक बार में कई नावों पर सब्जी लादकर घाट पहुंचते है। वो लोडर से सब्जी ले जाते हैं। पण्डा के गुर्गे एक लोडर पर क्00 रुपए वसूलते है। इनको जोड़ा जाए तो पण्डा को हर महीने 7.भ्0 लाख की काली कमाई करता हैं।

रुपए के साथ सब्जी भी वसूलते हैं

घाट पर पण्डा के गुर्गे फेरी वालों से अवैध तहबाजारी में रुपए तो वसूलते है। साथ ही वो सब्जी भी लेते है। वो एक झिल्ली में दो नग सब्जी लेते है। मसलन अगर फेरी वाला एक झिल्ली सब्जी लेकर जा रहा है, तो पण्डा के गुर्गे फेरी वाले से क्0 रुपए और दो खीरे लेते है। इसी तरह अगर कोई ठेले से सब्जी ले जाता है तो उससे आधा दर्जन सब्जी और लोडर से एक दर्जन नग सब्जी गुर्गे लेते है। जिसे वे बाद में बेच देते हैं।

रानीघाट का रास्ता बन्द होने से बढ़ गई कमाई

करीब दो साल पहले तक यह गोरखधंधा रानीघाट में भी होता था। उस समय ज्यादातर फेरी वाले रानीघाट के रास्ते ही सब्जी लाते थे। सोर्सेज के मुताबिक वहां पर सर्वेश पण्डा के गुर्गे वसूली करते थे। यह खेल कई सालों तक चला, लेकिन करीब दो साल पहले प्रशासन ने इसे बन्द करा दिया। इसके बाद से भगवतदास घाट में फेरी वालों का लोड और बढ़ गया। जिससे सुरेश पण्डा की काली कमाई और बढ़ गई।

ये है फेरी वालों की मजबूरी।

फेरी वाले पुलिस और समय की बर्बादी से बचने के लिए गंगा का रास्ता यूज करते हैं। उन्हें रोड का रास्ता काफी लम्बा पड़ता है। अगर वे रोड का रास्ता यूज करते है तो उन्हें गंगा बैराज या शुक्लागंज के रास्ते से शहर आना पड़ता है। इसके लिए उन्हें गंगा कटरी से कई किलोमीटर चलना पड़ता है। फेरी वालों के पास गाड़ी नहीं होती है। अगर वे गाड़ी किराये में लेकर वहां जाते है, तो इसमें उनका काफी खर्चा हो जाता है। इसमें उनका काफी समय भी बर्बाद हो जाता है। साथ ही उनको रास्ते में पुलिस की वसूली का भी डर रहता है। इसी के चलते वे गंगा के रास्ते भगवतदास घाट पहुंचते हैं। इससे उनका टाइम भी बच जाता है और उन्हें पुलिस वसूली का भी डर नहीं रहता है।

गंगा के रास्ते से आती है ये सब्जियां

गंगा कटरी में अमरूद के करीब डेढ़ सौ बाग है। इसके अलावा कटरी में खीरा, ककड़ी, कद्दू, लौकी, तरोई, तरबूज और खरबूजा की खेती होती है। यहीं सब्जियां गंगा के रास्ते भगवतदास घाट और वहां से सब्जी मण्डी में पहुंचती है।

इस वसूली से बढ़ जाते हैं सब्जी के रेट

घाट पर तहबाजारी का असर सीधे सब्जियों के रेट पर पड़ता है। फेरी वाले सब्जी का रेट बढ़ाकर ही दबंग पण्डा की वसूली मैनेज करते हैं। पण्डा तहबाजारी के नाम पर अवैध वसूली करता है, लेकिन उसके पास इसका कोई टेंडर नहीं है। सरकार तहबाजारी का टेंडर जारी कर राजस्व वसूल सकती है।

ये है अवैध तहबाजारी का रेट चार्ट

एक झल्ली सब्जी क्0 रुपए

एक ठेला सब्जी भ्0 रुपए

एक लोडर सब्जी क्भ्0 रुपए

नोट- रुपए के साथ ही सब्जी भी लेते है पण्डा के गुर्गे

Posted By: Inextlive