3 जून 1930 को जन्‍में पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस की तबियत इन दिनों कुछ ठीक नहीं चल रही है. इसको लेकर दिल्‍ली हाईकोर्ट ने जॉर्ज फर्नांडिस के भाई माइकल रिचर्ड और अलॉयसिस फर्नांडिस को अपने भाई से मिलने का अधिकार दे दिया है. बता दें कि जॉर्ज लंबे समय से काफी बीमार चल रहे हैं और 2010 से अपनी पत्‍नी लैला कबीर फर्नांडिस व बेटे सीयान फर्नांडिस के संरक्षण में हैं. जॉर्ज के तीनों भाई तभी से उनसे मिल सकने की अनुमति और उनके उपचार को लेकर उनकी कस्‍टडी पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ते आ रहे हैं. इसी लड़ाई में कोर्ट की ओर से ये फैसला उनके हित में सुनाया गया है. गौरतलब है कि जॉर्ज और लैला की शादी 1971 में हुई थी और दोनों 1980 में अलग हो गए थे. उसके बाद जब से उन्‍हें जॉर्ज की बीमारी के बारे में पता तो वह उन्‍हें अपने साथ ले गई और अब वह उनके साथ उन्‍हीं के घर पर हैं.

जॉर्ज फर्नांडिस का कुछ ऐसा रहा जीवन का सफर
जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म मैंगलोर में एक कैथोलिक परिवार में हुआ था. जॉर्ज, जोसेफ और एलिस के छह बच्चों में सबसे बड़े थे. इनकी मां किंग जॉर्ज V की बहुत बड़ी समर्थक थीं, सो उन्होंने अपने बेटे का नाम जॉर्ज ही रख दिया. इनके पिता एक फाइनेंस ग्रुप में इंश्योरेंस एक्जेक्यूटिव थे. जॉर्ज को उनके परिवार में प्यार से गैरी कहकर भी बुलाते थे. इन्होंने मैंगलोर के सेंट अलॉयसिस कॉलेज से SSLC (Secondary School Leaving Certificate) को पूरा किया. इसके बाद परिवार की रूढ़िवादी परंपरा के अनुसार इन्हें रोमन कैथोलिक पादरी की ट्रेनिंग लेने के लिए 16 साल की उम्र में बेंगलुरु के St. Peter's Seminary में भेज दिया गया. 19 साल की उम्र में इन्होंने सेमिनरी छोड़ दिया. ये काम था ट्रांसपोर्ट, होटल और रेस्तरां इंडस्ट्री में वर्कर्स के साथ होने वाले शोषण के लिए आवाज उठाना. बता दें कि सिमिनरी को छोड़ने के बाद फर्नांडिस 1949 में काम की तलाश में मुंबई आए. एक अखबार में प्रूफरीडर की नौकरी मिलने तक वह मुंबई की सड़कों पर ही सोकर रात काटते थे. वह खुद कहते थे कि मुंबई में नौकरी न मिलने तक उन्होंने चौपटी की रेत पर सोकर रातें काटी हैं. वहां आधी रात में पुलिस वाला आकर उन्हें जगाता था और वहां से जाने को कहता था.
चुनी पादरी बनने के बजाए यूनियन लीडर की राह, कर दी रेल हड़ताल
मुंबई में वह एक अनुभवी संघ के नेता प्लैसिड डी मेलो और समाजवादी राममनोहर लोहिया से मिले. उसके कुछ दिनों बाद वह एक समाजवादी ट्रेड यूनियन आंदोलन में शामिल हो गए. यहां वह एक प्रमुख मजदूर नेता के रूप में खड़े हुए और स्मॉल स्केल सर्विस वाली इंडस्ट्री जैसे होटल और रेस्तरां में काम करने वाले मजदूरों के हक की लड़ाई लड़नी शुरू की. इसके बाद समय-समय पर इन्होंने मजदूरों के हक में कई तरह के आंदोलन किए, जो अभी तक जारी रहे. 1961 से 1968 तक जॉर्ज मुंबई म्युनसिपल कॉरेपोरेशन के सदस्य रहे. 1961 में इन्होंने सिविक इलेक्शन जीता. जॉर्ज की ओर से आयोजित कराई गई सबसे प्रमुख हड़तालों में से एक रही 1974 में हुई रेलवे की हड़ताल. उस समय जॉर्ज अखिल भारतीय रेल फेडरेशन के राष्ट्रपति थे. उस समय ऑल इंडिया रेलवे स्ट्राइक का बिगुल फूंका गया. लगभग पूरा देश्ा इस हड़ताल में शामिल हो गया था. ये हड़ताल परिणाम थी उन न सुनी जाने वाली शिकायतों की, जो बीते दो दशकों से रेलवे के वर्कर्स करते आ रहे थे. हालांकि 1947 से 1974 के बीच में तीन वेतन आयोग थे, लेकिन उनमें से एक के अंतर्गत भी वर्कर्स की सुविधाओं का कोई ख्याल नहीं रखा गया. 1974 फरवरी में National Coordinating Committee for Railwaymen's Struggle (NCRRS) का गठन किया गया. इसका गठन रेलवे यूनियंस, केंद्रीय ट्रेड यूनियंस और राजनीतिक दलों को इकट्ठा करने के लिए किया गया. इन सबने मिलकर 8 मई 1974 से हड़ताल शुरू कर दी. मुंबई में इलेक्ट्रिसिटी और ट्रांसपोर्ट वर्कर्स के साथ-साथ टैक्सी ड्राइवर्स भी इस आंदोलन से जुड़ गए. गया, बिहार के हड़ताली कर्मचारी अपने परिवार के साथ रेल की पटरियों पर लेट गए. उस समय के मद्रास में इंटीग्रल कोच फैक्टरी के दस हजार वर्कर्स ने दक्षिण रेलवे हेडक्वार्टरर से हड़ताली वर्कर्स के पक्ष में अपना सहयोग दिखाने के लिए मार्च निकाला. पूरे देश में हड़ताल का शोर मच गया.      
जीती इमरजेंसी की जंग, रोका IBM व कोका-कोला जैसी कंपनियों को
उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आंतरिक राजनीतिक गड़बड़ियों के चलते इमरजेंसी घोषित कर दी. उसी आधार पर भारतीय संविधान में सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया. राजनीतिक असंतुष्टों, अखबार के पत्रकारों और विपक्षी नेता, जिन्होंने इमरजेंसी का विरोध किया, उन सबको जेल हो गई. जॉर्ज भी उसका विरोध करने वालों में शामिल थे. उनके नाम पर भी वारेंट जारी हो गया. उससे बचने के लिए जॉर्ज अंडरग्राउंड हो गए. जब पुलिस उनको पकड़ पाने में असफल रही. 10 जून 1976 को फाइनली इनको कोलकाता में स्मगलिंग के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया. इसके साथ ही इनपर बड़ोदा डायनामाइट केस को भी आरोप लगाया गया. 21 मार्च 1977 में इमरजेंसी के बाद ताजा चुनाव कराए गए. इस चुनाव में इंदिरा गांधी की पार्टी कांग्रेस को जनता पार्टी से भारी हार का सामना करना पड़ा. अब जनता पार्टी अपनी पूरी ताकत में आ गई. इसका नेतृत्व कर रहे थे मोरारजी देसाई, जो भारत के पहले गैर-कांग्रेसी नेता हुए. जॉर्ज जेल से ही बिहार की मुजफ्फरपुर सीट से जीत गए. उस समय वह बड़ोदा धमाका केस में सजा काट रहे थे. इसके बाद इन्हें इंडस्ट्रीज़ का यूनियन मिनस्टिर बना दिया गया. इस पद पर रहकर इनकी IBM और कोका कोला जैसी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से FERA (Foreign Exchange Regulation Act) को लागू करने को लेकर कड़ी टक्कर हुई. FERA को इंदिरा गांधी के समय में शुरू किया गया था. यहां काफी लड़ाई के बाद इन्होंने इन दोनों कंपनियों के लिए भारत में रोक लगा दी.   
राजनीतिक सफर पर दौड़ी गाड़ी
जॉर्ज फर्नांडीज फिलहाल अस्वस्थ्य हैं. उनके जीवन के संघर्षो की लम्बी फेहरिस्त रही. डॉ. राम मनोहर लोहिया जॉर्ज फर्नांडीस को हमेशा जार्ज कहकर बुलाते थे और यही उनका संक्षिप्त नाम मशहूर हो गया. मुम्बई में संसद के चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता व भारतीय कांग्रेस के कोषाध्यक्ष एस.के. पाटिल को भारी मतों से पराजित कर मुंबई के मजदूरों के हीरों बन गए. उन्होने एक बार जिक्र किया था कि एसके पाटिल ने हवाई जहाज में यात्रा करते हुए कहा था कि उनको ईश्वर भी नहीं हरा सकता. इसी घटना ने जॉर्ज को हर चुनाव जिताने में अहम भूमिका अदा की.

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Posted By: Ruchi D Sharma