बजट में कहां है बनारस?

मोदी सरकार के पहले बजट में बनारस कहां है? ये सवाल हर कोई पूछ रहा है। भले ही सीधे तौर पर बनारस के लिये बहुत कुछ ना दिखाई दे रहा हो मगर काफी कुछ ऐसा है जो नई उम्मीदें जगा गया है। खासकर बुनकरों, घाटों, गंगा और पूर्वाचल में एम्स की स्थापना को लेकर। हालांकि इन सभी की मौजूदा हकीकत बहुत अच्छी नहीं है। उम्मीद जगी है तो दुश्वारियां भी बहुत हैं। आज बात बजट में बनारस से जुड़ी उम्मीदों और उनसे जुड़ी तल्ख हकीकत की।

अमां, लगता है अब अच्छे दिन अइये

- मोदी सरकार के पहले बजट में बनारस के बुनकरों को दिए गए 50 करोड़

- इस रकम को हथकरघा विकास और व्यापार विकास केंद्र और शिल्प संग्रहालय में खर्च किया जाएगा

- नये तोहफे से बदहाल बुनकर बिरादरी में लगी है उम्मीद की नई किरण

- फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने बनारस के बुनकरों को स्पेशल पैकेज के तौर पर दिए हैं 50 करोड़ रुपये।

- इन रुपयों का इस्तेमाल बनारस में हथकरधा विकास, व्यापार सुविधा केन्द्र व शिल्प संग्रहालय बनेगा।

- व्यापार सुविधा केन्द्र और शिल्प संग्राहलय बनने के बाद बुनकरों को होगी काफी सुविधा।

- अपने बनाये को प्रॉडक्ट को बगैर बिचौलियों के बॉयर्स को डायरेक्ट बेचा जा सकेगा।

- ट्रेनिंग सेंटर में बुनकरों को लेटेस्ट टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग दी जाएगी।

- 50 करोड़ के बजट से कोशिश होगी कि बनारस में बुनकरों का पलायन रूके।

- पलायन रोकने के साथ यहां के साड़ी उद्योग को नई जान देने की है तैयारी।

- बनारस में हैं लगभग सात लाख मुस्लिम और हिंदू परिवार जुड़े है बुनकारी काम से।

- बुनकरों तक सरकारी योजना का लाभ पहुंचाने के लिये करप्शन पर रोक भी है जरूरी।

- ज्यादातर बुनकर 50 करोड़ रुपयों को मान रहे हैं बनारस के बुनकरों के लिए नाकाफी।

ये बजट उम्मीदों का है। इस बात की खुशी है कि मोदी जी ने हमारे बारे में सोचा लेकिन जरुरी है कि मिलने वाली सरकारी योजनाओं की सही जानकारी हम तक पहुंचे।

-मो। सलीम, बुनकर

देखिये बजट में ऐलान करने से कुछ होने जाने वाला नहीं है। इसके लिए सरकार को सही योजना बनानी होगी। तभी बुनकरों को इसका लाभ मिलेगा।

-मो। रमजान, बुनकर

बहुत बुरी हालत है बिजली नहीं मिलती। महंगाई में सब महंगा हो गया है लेकिन हमारी मजदूरी अब तक नहीं बढ़ी सरकार इस पर ध्यान देना चाहिए।

-मोहम्मद फारुख, बुनकर

सरकार ने बुनकरों पर ध्यान दिया जो काबिले तारीफ है लेकिन सच्चाई ये भी है कि सरकारी योजनाएं वो कापरेटिव वाले खा जाते हैं जो सरकार ने बनाई हैं।

-मेहरुद्दीन, बुनकर

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अमां मियां अब अच्छे दिन अइये का? चलो काउनो सरकार तो सोचिस हम बुनकरन के बारे में। लल्लापुरा स्थित एक शरबत और जूस की दुकान पर एक जवान बुनकर बाकी लोगों से मुखातिब था। तभी वहां बैठे अधेड़ उम्र के दूसरे साहब बोल उठे, अरे खाक सोचिहे इ नेता लोग, सब ड्रामा है खाली। देखियो, अबही करोड़न बता रहिन है लेकिन इहां मिलिये बाबा जी का ठुल्लू। नौजवान लड़के ने फिर भी काउंटर किया, अरे चचा, देखौ तो, का पता कुछ हो ही जाये इ गवर्नमेंट में। 50 करोड़ एलॉट किन हैं, सौ करोड़ भी मिलिये तो समझो चचा अच्छे दिन आ गये।

ये तो थी बुनकर बाहुल्य मुहल्ला लल्लापुरा में बहस की एक झलक। गुरुवार को मोदी सरकार के पहले आम बजट के बाद बनारस के बुनकरों के लिये 50 करोड़ रुपये एलॉट किया है। इससे जहां बुनकरों में नई उम्मीद जगी है वहीं नयी बहस भी छिड़ गयी है कि इससे वाकई कुछ होगा या सिर्फ ये एक प्रोपगेंडा है।

हालात हैं बहुत खराब

बनारस में चल रहे बनारसी साड़ी उद्योग की बुरी हालत किसी से छिपी नहीं है। सूरत समेत फैशनेबल साडि़यों के इस दौर में बनारसी साडि़यों की डिमांड घटी है। ऐसे में बनारस की बुनकर बिरादरी के सामने रोजी-रोटी के लाले हैं। बुनकर बिरादरी के लोग इस बदहाली से उबरने के लिये ना सिर्फ बनारस छोड़ महाराष्ट्र और गुजरात का रूख कर रहे हैं बल्कि काफी परिवारों ने तो धंधा ही बदल दिया है। अब वो रिक्शा चलाने से लेकर ठेला-खोमचा लगाने या मजदूरी करने में लग गये हैं।

क्या खाएं और क्या बचाएं?

बुनकरों की बदहाली पर जैतपुरा के बुनकर हाजी इम्तेयाज अली बताते हैं कि अब हालात ऐसा नहीं कि कोई बुनकारी का काम करे या अगली पीढ़ी को इसमें लगाये। पहले बात कुछ और थी। आज एक साड़ी बनाने में लागत करीब चार-साढ़े चार हजार आती है। गद्दीदार इस साड़ी के लिये मैक्सिमम पांच हजार देता है। महीने भर की मेहनत के बाद हजार रुपये मिले तो कौन काम करेगा। हालांकि गद्दीदार इसी साड़ी को 10 से 15 हजार में बेच कर बड़ा मुनाफा कमाते हैं। यदि बुनकर गद्दीदार से मैटेरियल लेकर भी काम करें तो मुश्किल से हजार रुपये ही मिल पाता है। असल बुनकर ऐसी स्थिति में कैसे जीएंगे-खाएंगे और बचाएंगे?

थम रही है खटर- पटर

सिटी के अधिकतर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में साड़ी बनाने के कारखाने हैं। हैंडलूम की जगह तेजी से पावर लूम ले रहे हैं जहां बनारस साड़ी की जगह फैंसी साडि़यां बनाई जा रही हैं क्योंकि इस तरह की साड़ी में लागत कम है और बचत ज्यादा। लूम संचालक तो कमाई कर लेते हैं मगर बुनकर को दिहाई पर बहुत बचत नहीं होती। बिजली कटौती, बंदी और मार्केट की मंदी में बुनकरों को ही घाटा होता है। यही वजह है कि रेवड़ी तालाब, मदनपुरा, जैतपुरा, बजहरडीहा, जक्खा, जलालीपुरा, लल्लापुरा, कच्चीबाग में हैंडलूम की खटर-पटर कम होती जा रही है।

ये है बुनकरों की सच्ची तस्वीर

- बनारस में बुनकरों की माली हालत है बेहद खराब।

- हथकरधा और इसके पा‌र्ट्स के लिये सरकारी छूट की है योजना।

- धागों व अन्य हैण्डलूम रॉ मैटेरियल पर बुनकरों का मिलता है डिस्काउंट।

- सरकारी योजनाओं को बुनकरों तक पहुंचाने के लिये चल रही हैं कई कोआपरेटिव सोसाइटी।

- तमाम योजनाओं के बावजूद भी बुनकर कर रहे हैं धंधे से पलायन।

- महंगाई के इस दौर में पूरे दिन काम के बाद बुनकर को मिलतें हैं महज 100 से 150 रुपये।

- सारी कमाई खा जाते हैं बिचौलिये। सरकारी योजनाएं भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहीं हैं।

- बुनकरों के लिये ना तो न्यूनतम मजदूरी निर्धारित है ना ही काम के बदले न्यूनतम समर्थन मूल्य।

- ज्यादातर बुनकरों का बड़ा परिवार है जो छोटे कमरों में करता है गुजर-बसर।

- अच्छा भोजन न मिलने के कारण मैक्सिमम बुनकर परिवार गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से घिरे हैं।

उम्मीद जगी है भाई

Posted By: Inextlive