भाद्रपद मास के चतुर्थ सोमवार को उत्तर भार में खासकर कानपुर। में पवनपुत्र हनुमान के नाम पर लंबे समय से बुढ़वा मंगल मनाया जाता है। कहते हैं मंगल को जन्में मंगल ही करते अमंगल को हरते ऐसे ही हैं भगवान हनुमान। भारत में और देश के बाहर सनातन धर्म को मानने वाले लोग बुढ़वा मंगल को धूमधाम से मनाते हैं।


बुढ़वा मंगल का महत्व और कथामहाभारत काल में 10000 हाथियों का बल रखने वाले कुंति पुत्र भीम को अपने शक्तिशाली होने पर बड़ा अभिमान और घमंड था। उनको सबक सिखाने और घमंड को तोड़ने के लिए रूद्र अवतार भगवान हनुमान ने एक बूढ़े बंदर का भेष धरा था। एक बार भीम कहीं जा रहे थे तो बंदल रूपी हनुमान जी बीच रास्ते पर लेट गए। वो वक्त भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष का आखिरी मंगलवार था। जैसे ही कुंति पुत्र भीम उस रास्ते से निकले उन्हें रास्ते पर बंदर लेटा दिखा। नहीं उठा पाए बंदर की पूंछ


उन्होंने अहम में आकर बंदर को तिरस्कार की भावना से कहा अपनी पूंछ हटाओ। इस पर बंदर के रूप में अंजनी पुत्र हनुमान बोले तुम 10000 हाथियों का बल रखते हो, खुद ही इस पूंछ को हटा लो। क्रोध में आकर भीम आगे बढ़े और उन्होंन पूंछ उठाने की कोशिश की पर वो उसे हिला तक नहीं पाए। इसके बाद भीम ने वासुदेव को याद किया और फिर उनसे उन्हें पता लगा कि ये महा शक्तिशाली हनुमान जी हैं। इस दिन को तबसे बुढ़वा मंगल के रूप में मनाया जाने लगा। ऐसे पता चला वो बंदर हनुमान का रूप है

उस वक्त उन्हें एहसास हुआ कि ये वही हनुमान हैं जो महाभारत काल में अर्जुन के रथ पर विराजमान थे। महाभारत काल से लेकर आज तक इस मंगलवार को बुढ़वा मंगल के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष बुढ़वा मंगल 10 सितंबर को पड़ रहा है। इस दिन प्रयास करें  कि उनके बाल्य रूप के दर्शन करें। इस दिन मालपुए का भोग जरूर लगाएं क्योंकि हनुमान जी को ये बहुत पसंद हैं। उन्हें चमेली का तेल, बंदन, तुलसी दल भी अत्याधिक प्रिय हैं।-पंडित दीपक पांडेय

Posted By: Vandana Sharma