Bulbbul Movie Review : फिल्म बुलबुल यह भी दिखाती है कि पुरुष चाहे कितने भी अत्याचार क्यों न कर लें अगर एक औरत अपनी मर्यादा के लिए कदम उठाती है तो उसे चुड़ैल जैसे अपशब्दों से ही नवाजा जाता है। फिल्म को केवल होरर जोनर में सीमित नहीं किया जाना चाहिए। यह फिल्म क्यों जरूर देखी जानी चाहिए पढ़िए पूरा रिव्यु...

Bulbbul Movie Review In Hindi : बड़ी हवेलियों के बड़े राज होते हैं, चुप रहना, कुछ मत कहना, बुलबुल भी चुप रहेगी, कुछ नहीं बोलेगी। बुलबुल शब्द का नाम हमारे जेहन में जैसे ही आता है, बरबस ही हम कैद में है बुलबुल फिल्म का शीर्षक याद कर लेते हैं। वैसे उस फिल्म से इस फिल्म का कुछ लेना देना नहीं है। हां, मगर यहां बुलबुल जरूर कैद में हैं। एक बड़ी हवेली में, गुड़िया सी लड़की आती है, फिर उससे कैसे हवेली का एक-एक इंसान खिलवाड़ करता है, वह जिस तरह चाहता है, उस गुड़िया को तोड़ता है, मोड़ता है। दरअसल, अन्विता की इस फिल्म को सिर्फ हॉरर फिल्म के जोनर में सीमित करना अन्याय होगा, चूंकि यह फिल्म अपनी सोच में एक महिला की पीड़ा को दर्शाते हुए, पुरुष द्वारा किये गये अत्याचार को पेश करती है। फिल्म यह भी दिखाती है कि पुरुष चाहे कितने भी अत्याचार क्यों न कर लें, अगर एक औरत अपनी मर्यादा के लिए कदम उठाती है तो उसे चुड़ैल जैसे अपशब्दों से ही नवाजा जाता है। फिल्म को केवल होरर जोनर में सीमित नहीं किया जाना चाहिए। यह फिल्म क्यों जरूर देखी जानी चाहिए, पढ़िए पूरा रिव्यु

क्या है कहानी: फिल्म बंगाल की पृष्ठभूमि पर है। फिल्मों के किरदार रविंद्रनाथ टैगोर की कृतियों से प्रेरित हैं। साथ ही फिल्म की मुख्य किरदार बड़ी बहू का संदर्भ भी बहुत हद तक गुरु दत्त की फिल्म साहेब बीवी और गुलाम से है। फिल्म सत्यजीत रे की चारुलता से भी प्रभावित है। लेकिन अन्विता ने इसमें अपना यूनिक टच दिया है। वही इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है।एक छोटी बच्ची बुलबुल ( तृप्ति) को अपने बचपन के दोस्त सत्या ( अविनाश तिवारी) से प्यार है। वह उसे एक चुड़ैल की कहानी भी सुनाता है। लेकिन बुलबुल को नहीं पता था कि उसका बचपन जमींदारों की जागीर बनेगा। वह एक जमींदार इन्द्रनील ( राहुल बोस) से ब्याह दी जाती है। इन्द्रनील के भाई महेंदर ( राहुल बोस) की बुलबुल पर बुरी नजर है। कहानी दर्द के साथ आगे बढ़ती है। सत्या( अविनाश) बाहर से पढ़ कर आता है और वापस हवेली आकर देखता है तो सबकुछ बदल चुका है। बिनोदिनी (पाओली ) का किरदार उन औरतों में से एक है, जो खुद दर्द सहती है और सहने पर मजबूर भी करती है। इसी बीच डॉक्टर बाबू भी हैं, जो बुलबुल को समझते हैं, मगर निहत्थे हैं। यह फिल्म महिलाओं पर होने वाले घरेलू हिंसा के साथ-साथ जमींदारी प्रथा का भी चिटठा खोलती है।

क्या है अच्छा : फिल्म का ट्रीटमेंट बेहद यूनिक है। घरेलू हिंसा पर हमने पहले भी फिल्में देखी हैं, लेकिन फिल्म की स्टोरी टेलिंग डिफरेंट हैं। साथ ही फिल्म की मेकिंग बेहद अच्छी है। अन्विता ने काफी मेटाफर दिखाए हैं। लोकेशन वगेरह बेहद अलग हैं। अन्विता की यह पहली फिल्म है और वह इसे बखूबी दर्शाने में सफल रही हैं।

क्या है बुरा : फिल्म को होरर फिल्म के जोनर में रख कर प्रोमोट नहीं किया जाना चाहिए। चूंकि उस लिहाज से फिल्म फिर कमजोर हो सकती है। चूंकि ऐसी कहानियाँ होरर फिल्मों में पहले भी देखी गई है।

अभिनय : बुलबुल यानि तृप्ति की पहली फिल्म लैला मजनू आई थी। उसमें भी उन्होंने कमाल का परफोर्मेंस दिया था। इस फिल्म में तो वह सम्पूर्ण रूप से निखर गई हैं। बुलबुल के किरदार को उन्होंने जिया है।उन्होंने अपने अभिनय में एक चूक नहीं की है। अविनाश तिवारी भी इस फिल्म से और निखरे हैं। पाओली का बेहतरीन काम है। राहुल बोस ने दोहरी भूमिका बखूबी निभाई है। परम ब्रता के हिस्से जो भी दृश्य हैं उन्होंने बखूबी काम किया है।

वर्डिक्ट : एक अच्छे विषय पर फिल्म देखने वालों को पसंद आएगी।

Posted By: Shweta Mishra