मुंबई में गोलीबारी के बीच पैदा हुई थी 'गोली'
26 नवंबर 2008 की शाम जब 33 साल की विजू और 38 साल के उनके पति शामू लक्ष्मणराव चाव्हाण मुंबई के कामा अस्पताल पहुँचे थे,उस समय उन्हें इस बात की क़त्तई अंदाज़ा भी नहीं था कि कोई असामान्य चीज़ घटित हो रही है.चाव्हाण के दीमाग़ में उस समय केवल एक चीज़ थी, वह थी उनकी पत्नी की प्रसव पीड़ा. वो कहते हैं, ''उस समय मैं केवल अपनी पत्नी के दर्द के बारे में सोच रहा था. मैं उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहता था.''गोलियों की आवाज़कामा और अलब्लेस बच्चों और महिलाओं के धर्मार्थ अस्पताल हैं. वीजू अस्पताल की चौथी मंज़िल पर स्थित मैटर्निटी वार्ड में भर्ती थीं. डॉक्टर ने उनके पति को पास के एक अस्पताल से कुछ दवाएं लाने के लिए भेजा था.
"मैंने देखा कि लिफ़्टमैन को पेट में गोली मारी गई है. उसके पेट से ख़ून निकल रहा है. मुझे लगता है कि उसकी मौत हो चुकी थी. जब मैं थोड़ा और आगे गया तो देखा कि चौकीदार को गोली मारी गई है और उसकी मौत हो चुकी है. मैं बहुत डरा हुआ था"-गोली के पिता, शामू लक्ष्मण राव चाव्हाण
वो बताते हैं कि वो लिफ़्ट के पास आए ही थे कि उन्होंने गोलियों की आवाज़ सुनी. उन्होंने बताया, ''पहले मुझे लगा कि भारत-इंग्लैंड में हुए क्रिकेट मैच में मिली भारत को जीत की ख़ुशी में लोग पटाख़े फोड़ रहे हैं.''अस्पताल में मरीज़ों से मिलने-जुलने का समय ख़त्म हो गया था और लिफ़्टमैन लोगों को वहाँ से जाने के लिए कह रहा था.चाव्हाण चौकीदार को यह बताने गए थे कि वो कुछ दवाइयाँ ख़रीदने बाहर जा रहे हैं और जल्द ही लौट आएंगे. लेकिन लिफ़्ट उन्हें लिए बिना ही चली गई. इसके बाद वो सीढ़ियों से ऊपर गए और एक भयावह दृश्य देखकर लौट आए.वो बताते हैं, ''मैंने देखा कि लिफ़्टमैन को पेट में गोली मारी गई है. उसके पेट से ख़ून निकल रहा है. मुझे लगता है कि उसकी मौत हो चुकी थी. जब मैं थोड़ा और आगे गया तो देखा कि चौकीदार को गोली मारी गई है और उसकी मौत हो चुकी है. मैं बहुत डरा हुआ था.''यह देखकर चाव्हाण सीढ़ियों से ऊपर गए. वो बताते हैं, ''मैंने सबसे कहा कि बाहर किसी तरह की गोलीबारी हो रही है. मैंने बारामदे में मौजूद सभी लोगों से कहा कि एक वार्ड के अंदर चले जाइए. बंदूक़धारियों को घुसने से रोकने के लिए लोगों ने दरवाज़े के सामने बहुत से बेड लगा दिए.''बंदूक़धारियों का हमला