पति से अलग होने के बाद भी नहीं टूटा वरदा सोनी हौसला

तीन साल के बेटे, छोटी बहन और मां की जिम्मेदारी ने बनाया व्यापारी

Meerut। मेरठ के शास्त्रीनगर रहने वाली वरदा सोनी ने न केवल मेहनत के बीज से सेल्फ डिपेंडेंसी की पेड़ उगाया बल्कि इस पेड़ की छांव में कई महिलाओं के लिए राहत की सांस का इंतजाम भी किया। पांच साल पहले जब हमसफर ने तलाक का फैसला सुनाया तो एक बार को लगा कि समय मानो थम गया है, कभी न चलने के लिए। ससुराल वाला घर जिसमें पति के साथ रहकर भविष्य के सपने संजोए थे, छोड़कर वापस मायके आना पड़ा। अब न पति का साथ था और न पिता का साया। छोटी बहन के साथ घर का गुजर-बसर कर रही मां पर वरदा न बोझ बनना चाहती थी और न अपने बेटे को किसी और की जिम्मेदारी बनाना चाहती थी। ऐसे हालात में अच्छे-खासे लोग हिम्मत छोड़ देते हैं मगर औरों से जुदा वरदा हिम्मत कहां हारने वाली थी। पांच साल पहले वरदा ने जो हिम्मत दिखाई उसका ही नतीजा है कि वो आज न केवल अपने परिवार की जिम्मदारी संभाल रही हैं बल्कि एक कामयाब बिजनेस वुमेन के रूप में खुद को एस्टेबलिश भी कर लिया है। आज वरदा अपना आर्टिफिशियल ज्वैलरी व कॉस्मेटिक का ऑनलाइन बिजनेस करने के साथ ही एक शोरूम भी चला रही हैं। जहां से वो होल सेल व रिटेल का काम करती हैं। वरदा बताती हैं कि अब मेरठ के साथ-साथ आसपास के शहरों में भी उनका कारोबार मजबूती से पैर पसारने लगा है।

बेटे बना ताकत

वरदा ने बताया जब पांच साल पहले उनका तलाक हुआ था तो उनका बेटा तीन साल का था, जो आज आठ साल का है। उन्होंने बताया कि मायके आने के बाद एक दिन बेटा पजल क्यूब को सुलझाने में लगा था। हालांकि उसकी उम्र के हिसाब से ये गणित मुश्किल था लेकिन देखते ही देखते उसने पजल क्यूब के कलर्स को मैच कर दिया। यही वो पल था जब मुझे लगा कि बेटे, बहन और मां का सहारा बनना है।

ट्यूशन बना सहारा

पति से तलाक के बाद खुद की टूटन को पल-पल समेटकर जीवन की राह पर कदम बढ़ाने का दृढ़ निश्चय कर बीकॉम पढ़ी वरदा ने घर पर आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। शुरू में एक फिर दो और फिर ढेर सारे बच्चे न सिर्फ वरदा की कमिया का जरिया बने बल्कि जीवन को संवारने की राह भी दिखने लगी। मेहनत से जुटाए रूपयों के सहारे घर से क्लचर बेचेन का काम शुरू किया। काम चल निकला मानो वक्त का पहिया सही दिशा में घूमने लगा। अब वरदा ने कमिया का जरिया बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल ज्वैलरी व कॉस्मेटिक मार्केट में नाम बनाने की कोशिश शुरू कर दी। वरदा बताती हैं कि उन्होनें दिल्ली, लुधियाना, अहमदाबाद कई जगह जाकर कॉस्मेटिक व आर्टिफिशियल ज्वैलरी की होल सेल मार्केट तलाशी और वहां से सामान लाने लगी। उन्होंने बताया कि अकेली महिला के लिए सब उतना आसान नहीं होता। शुरू में बहुत ही दिक्कतें आई, जब घंटों लंबे सफर में अकेले कंधों पर बैग लदे हों और ट्रेन या बस में बैठने का इंतजाम न हो। मगर धीरे-धीरे काम जम गया और जिंदगी आसान लगने लगी।

बिजनेस बना दूसरों का सहारा

अब वक्त था उन लोगों की मदद का जो मेरी तरह जिंदगी गुजारने के लिए किसी सहारे के लिए बांट जोह रहे थे। बिजनेस की कमाई ने कुछ लोगों को रोजगार देने का रास्ता भी बना दिया। एक टीम बनी और आज करीब 15 लोग मेरे बिजनेस में मेरा हाथ बंटा रहे हैं। जिनमें कुछ महिला ऐसी हैं, जिनका इस नौकरी के अलावा कोई सहारा नहीं है और वो भी सेल्फ डिपेंडेंट बनना चाहती थी। वकौल वरदा, मैं चाहती हूं कि कोई भी महिला खुद को किसी से न तो कमतर आंके और न कभी हार माने।

Posted By: Inextlive