BAREILLY: लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर तक की मंजिल तय करने के लिए बरेली में सियासी धुरंधरों ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी है। पार्टी के साथ अपनी छवि के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने के लिए हर दांव आजमाने की कवायद स्टार्ट हो चुकी है। क्9 मार्च से नॉमिनेशन का दौर छिड़ चुका है। बरेली में फिलहाल सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस के साथ आप ने भी पत्ते खोल दिए हैं। अपने को सबसे बेहतर होने का दावा करने वाले इन कैंडीडेट्स से आज हम आपको मिलवाते है।

प्रवीण सिंह ऐरन

हाथ को मजबूती से थामे

8 मई क्9भ्9 को बरेली में जन्मे प्रवीण सिंह ऐरन ने बरेली कॉलेज से बीए के बाद वकालत की डिग्री ली। इसके बाद दिल्ली में बतौर जर्नलिस्ट काफी समय काम करने के बाद अपना न्यूज पेपर भी निकाला। क्98फ् में सुप्रिया ऐरन के साथ सात फेरे लेने वाले ऐरन ने क्980 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। क्99फ् में बरेली कैंट से सपा विधायक चुने गए। मायावती के मुख्यमंत्री काल में मंत्री भी रहे। ख्00ब् में पहली बार लोकसभा का इलेक्शन लड़ा और हारे लेकिन ख्009 में जीत दर्ज कर लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में कदम रखा।

मजबूती: सांसद के तौर पर प्रवीण सिंह ऐरन का पिछले पांच साल का कार्यकाल साफ-सुथरा रहा है। बरेली को विकास के रास्ते पर ले जाने का दावा। केंद्र की कई योजनाओं में बरेली का नाम जोड़कर उन्होंने लोगों को नए विकास कार्यो की उम्मीद भी दी। पूर्व मेयर रहीं पत्‍‌नी सुप्रिया ऐरन के सामाजिक सरोकार और पति-पत्‍‌नी की मिलनसार पर्सनैलिटी इनको और मजबूती देती है।

कमजोर पहलू: पिछले क्0 सालों से केंद्र पर काबिज सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबैंसी फैक्टर से नुकसान संभव। बरेली में पार्टी का संगठन कमजोर होने के साथ ही स्थानीय पदाधिकारियों में गुटबाजी से पार पाने का बड़ा चैलेंज।

उमेश गौतम

हाथी की चाल पर नजर

ब्फ् साल के उमेश गौतम ने मुरादाबाद से बीकॉम के बाद बिजनेस की ओर रुख किया। बरेली के अलावा फॉरेन में भी अपना बिजनेस बढ़ाया। इसी दौरान इटली से पीएचडी पूरी की। इनके पिता यूपी पुलिस में सर्विस करते थे। बिजनेस के साथ ही इन्होंने इंवर्टिस इंस्टीट्यूट की नींव रखी, जो बाद में यूनिवर्सिटी बनी। फैमिली में पॉलिटिकल माहौल न होने के बावजूद इन्होंने राजनीति में कदम रखा।

मजबूती : शिक्षाविद और सोशलाइट के तौर पूरे रुहेलखंड का जाना पहचाना नाम। सजातीय वोट बैंक में सेंध और बसपा के कैडर वोट का साथ। संगठन का साथ दिखने की कोशिश। युवाओं के बीच साफ और अच्छी इमेज के साथ यूनिवर्सिटी के कर्ताधर्ता होने से युवाओं के बीच दखल।

कमजोर पहलू: चुनावी मैदान के नए प्लेयर। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट को लेकर विवादों का नाता। इसे लेकर शहर के एक खास तबके से मनमुटाव। चुनाव के पहले तक आम आदमी से दूरी। चुनाव के ठीक पहले पार्टी से टिकट कंफर्म। पार्टी में अपनी स्वीकायर्ता बढ़ाना चुनौती।

संताेष गंगवार

कमल खिलाने की तैयारी

नवंबर क्9ब्8 को बरेली में पैदा हुए संतोष कुमार गंगवार ने बरेली कॉलेज से बीएससी के बाद एलएलबी की डिग्री ली। कुतुबखाने में इनका आयुर्वेदिक दवाओं का फैमिली बिजनेस है। साठ के दशक में ही इन्होंने राजनीति की डगर पर पैर रखा और इमरजेंसी के दौरान करीब क्ख् महीने जेल में भी रहे। भारतीय जनता युवा संघ से जुड़कर इन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और क्98ब् में पहली बार बरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। क्989 से ख्00ब् तक लगातार म् बार रिकॉर्ड सांसद चुने गए।

मजबूती: भाजपा कैंडीडेट संतोष गंगवार का लो- प्रोफाइल स्वभाव और साफ-सुथरी छवि पब्लिक से जोड़ती है। बीते चुनाव में हार के बाद भी पूरे समय एक्टिव। पिछले फ्0 सालों से भाजपा का मजबूत कैडर वोट संतोष गंगवार की ताकत है। राजनीति का बेहद लंबा अनुभव। बरेली की नब्ज से वाकिफ।

कमजोर पहलू : लगातार छह बार बरेली से सांसद चुने जाने के बावजूद संतोष गंगवार विकास के मामले में खुद को साबित करने से चूक गए। भाजपा में अंदरूनी गुटबाजी से पार पाना बेहद चुनौती। पिछली बार भाजपा से रूठे वोटर्स को खुद से जोड़ने की मुश्किल। संगठन में सीनियर लोगों के बीच खींचतान।

अायशा इस्लाम

साइकिल से विकास की रफ्तार

क्98म् में नई बस्ती बरेली में जन्म लेने वाला आयशा इस्लाम की एजूकेशन विदेश में ही पूरी हुई। भोजीपुरा विधायक शहजिल इस्लाम से ख्00ब् में आयशा इस्लाम का निकाह हुआ। ख्0क्क् में भोजीपुरा जिला पंचायत सदस्य के तौर पर चुनी गईं। वहीं ख्0क्फ् में राजनीति में सक्रिय हुई और सपा से लोकसभा का टिकट पाया.

मजबूती : लोकसभा चुनाव में इकलौती महिला कैंडीडेट के साथ युवा चेहरा होना आयशा इस्लाम के लिए प्लस प्वॉइंट है। राजनीति विरासत में मिली। पति, ससुर व ददिया सुसर का का लंबा सियासी करियर रहा। भोजीपुरा में मजबूत पकड़ और अंसारी बिरादरी का परंपरागत वोट बैंक आयशा इस्लाम के साथ।

कमजोर पहलू: नए कैंडीडेट को लेकर संगठन में मतभेद ही आयशा इस्लाम के लिए सबसे पहली मुसीबत है। पब्लिक से कम्यूनिकेशन नहीं होना और लोगों से दूरी। सारा कामकाज विधायक पति शहजिल इस्लाम ही संभालते हैं।

सुनील कुमार

झाड़ू से भ्रष्टाचार का सफाया

क्भ् जुलाई क्98क् को एटा जिले में सुनील कुमार की पैदाइश हुई। हायर सेकेंड्री एजुकेशन एटा के जनता इंटर कॉलेज से पूरी करने के बाद इन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से पीजी किया। आगरा यूनिवर्सिटी से ही इन्होंने वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव लड़ा और जीता। ख्8 जनवरी ख्0क्ख् को अन्ना के आंदोलन से जुड़े और बाद में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए।

मजबूती: देश में पहचान बना रही आम आदमी पार्टी से बरेली के कैंडीडेट सुनील कुमार की यूएसपी उनका युवा होना है। राजनीतिक समझ और तर्जुबे से दूर बदलाव और विकास के मुद्दा। अरविंद केजरीवाल के नाम का सहारा।

कमजोर पहलू: पब्लिक में अपनी कोई पहचान न होना सुनील कुमार के लिए बड़ी बाधा। आप के खिलाफ उठ रहे विवादों और संगठन में नेताओं की खुली बगावत। बेहद कमजोर संगठन, लोगों में पकड़ न होना।

Posted By: Inextlive