- राज्य सरकार की सिफारिश के चार महीने बाद सीबीआई ने केस किया दर्ज - सिंचाई विभाग के आठ इंजीनियरों को किया नामजद, जल्द होगी छापेमारी - जस्टिस आलोक सिंह की रिपोर्ट पर दर्ज एफआईआर को बनाया आधार lucknow@inext.co.in LUCKNOW: सपा सरकार में लखनऊ में बने गोमती रिवरफ्रंट के निर्माण में वित्तीय अनियमितताओं की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है। सीबीआई की लखनऊ स्थित एंटी करप्शन ब्रांच ने इसका केस दर्ज कर लिया है। मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश राज्य सरकार ने करीब चार माह पूर्व केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से की थी। सीबीआई ने इस मामले में सिंचाई विभाग द्वारा राजधानी के गोमतीनगर थाने में दर्ज एफआईआर को आधार बनाया है। ध्यान रहे कि एफआईआर में रिवरफ्रंट के निर्माण से जुड़े आठ इंजीनियरों को नामजद किया गया था लिहाजा सीबीआई ने भी अपने केस में उन्हें आरोपी बनाया है। जल्द ही सीबीआई सिंचाई विभाग समेत सभी आरोपितों के ठिकानों पर छापेमारी कर सकती है। अप्रैल में हुए थे जांच के आदेश दरअसल सूबे में भाजपा सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद गोमती रिवरफ्रंट का दौरा किया। इसके बाद विगत चार अप्रैल को गोमती नदी चैनलाइजेशन परियोजना एवं गोमती नदी रिवरफ्रंट डेवलमेंट में हुई वित्तीय अनियमितताओं की न्यायिक जांच हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आलोक सिंह की अध्यक्षता में गठित समिति ने की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट 16 मई को राज्य सरकार को सौंपी जिसमें दोषी पाए गये अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की संस्तुति की गयी थी। तत्पश्चात राज्य सरकार ने काबीना मंत्री सुरेश खन्ना के नेतृत्व में एक समिति गठित की ताकि रिपोर्ट पर अग्रेतर कार्यवाही किए जाने के बाबत निर्णय लिया जा सका। इस समिति ने न्यायिक जांच के घेरे में आए तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल के खिलाफ विभागीय जांच और इंजीनियरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की। इसके बाद 19 जून को सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता डॉ। अंबुज द्विवेदी ने राजधानी के गोमतीनगर थाने में इसकी एफआईआर दर्ज करा दी जिसमें आठ इंजीनियरों को नामजद किया गया। बॉक्स ये इंजीनियर हैं नामजद तत्कालीन मुख्य अभियंता गोलेश चंद्र (रिटायर्ड), एसएन शर्मा, काजिम अली और अधीक्षण अभियंता शिवमंगल यादव (रिटायर्ड), अखिल रमन, कमलेश्वर सिंह, रूप सिंह यादव (रिटायर्ड) और अधिशासी अभियंता सुरेश यादव। दोबारा मांगे थे दस्तावेज मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश के बाद भी केस दर्ज न होने को लेकर तरह-तरह के कयास लगने लगे। बाद में साफ हुआ कि राज्य सरकार ने सीबीआई को जो केस से जुड़े दस्तावेज भेजे थे, वह पूरे नहीं थे। बाद में सीबीआई ने इन्हें जुटाने के बाद दोबारा नई दिल्ली मुख्यालय भेजा। वहां से हरी झंडी मिलने के बाद सीबीआई ने इसका केस दर्ज कर लिया। आसान नहीं होगा बचना रिवरफ्रंट घोटाले की सीबीआई जांच की आंच तमाम राजनेताओं और बड़े अफसरों पर पड़नी तय है। सीबीआई इस मामले की तह तक गयी तो रिवरफ्रंट बनाने की योजना से लेकर निर्माण के दौरान खर्च की गयी पाई-पाई की रकम का हिसाब देना होगा। साथ ही तमाम खर्चो को मंजूरी देने वाले अफसरों और नेताओं की मुश्किलें भी बढ़ेंगी। ध्यान रहे कि रिवरफ्रंट के निर्माण का काम तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने शुरू कराया था। बाद में सपा में रार के बाद खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इसकी मॉनिटरिंग का जिम्मा सौंपा गया था। दागी कंपनियों को काम देने का आरोप मामले की शुरुआती जांच में सामने आया था कि दागी कंपनियों को रिवरफ्रंट निर्माण का काम सौंप दिया गया। साथ ही विदेशों से तमाम बेशकीमती सामान ऊंचे दामों पर खरीदा गया। चैनलाइजेशन के काम में भी जमकर वित्तीय अनियमितताएं बरती गयी जिसकी वजह से योजना की लागत बढ़ती गयी। इन्हें दिया गया था आरोप पत्र तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल न्यायिक जांच में दोषी पाए गये थे जिसके बाद राज्य सरकार ने उन्हें आरोप पत्र थमा दिया था। दोनों ने अपने जवाब राज्य सरकार को सौंप भी दिए थे।

Posted By: Inextlive