चार दिन बाद देश आजादी का 68वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। देशभर में अब से ही तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। बाजारों में 'वंदे मातरम', 'सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा' जैसे देशभक्ति गीत बजने लगे हैं। देश की शान 'तिरंगे' से दुकानें सजने लगी हैं। यकीनन इस आजादी के आंदोलन में देश को आजाद कराने के लिए हर गांव, शहर व नगर के संपूर्ण देशवासी का अपना योगदान रहा है, जिसको शायद ही कभी भुलाया जा सके। देश को आजाद कराने में देहरादून से भी कई यादें जुड़ी हैं। आई नेक्स्ट आगामी 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस तक आपको उन्हीं यादों से रूबरू करवाएगा।

-आजाद-ए-जंग में पं। नेहरू ने चार बार दून की जेल में बंदी जीवन बिताया

-'ग्लिमसेस ऑफ व‌र्ल्ड हिस्ट्री' का मेजर पार्ट नेहरू ने दून की कारागार में ही किया पूरा

-आज भी मौजूद 'नेहरू वार्ड' आजादी की यादें करता है ताजा

DEHRADUN: राजधानी के बीचों बीच स्थित प्रिंस चौक और उसके करीब पचास कदम दूरी पर वर्षो पहले तक दून की जिला जेल हुआ करती थी, लेकिन आजकल फिलहाल यहां पर केवल नेहरू वार्ड नजर आता है। कुछ साल पहले सरकार ने जिला कारागार को सुद्धोवाला शिफ्ट कर दिया है। अब इस कैंपस में केवल नेहरू वार्ड ही मौजूद है, लेकिन नेहरू वार्ड के बारे शहर के लोग हों या पर्यटक, शायद ही इस जगह के बारे में किसी को पता हो। नेहरू वार्ड के महत्व पर सरकार सीरियस होती तो शायद इसके इतिहास को जानने वालों की हर रोज भीड़ हुआ करती।

बरेली से दून की जेल पहुंचे पं.नेहरू

इतिहास के पन्ने पढ़ें तो मालूम होता है कि अंग्रेजों की हुकुमत के दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू को एक नहीं चार बार देहरादून की जेल में लाया गया। बताया जाता है कि आजादी के लिए आंदोलन में कूदे पं। नेहरू को दून की कारागार में लाने से पहले बरेली की जेल में रखा गया था, लेकिन गर्मी बर्दास्त न कर पाने के कारण बरेली की जेल में उनके नाक से खून बहने लगा। उसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें ठंडे स्थान पर मौजूद जेलों में शिफ्ट करने का निर्णय लिया। वैसे भी दून अपनी शुद्ध आबोहवा के लिए उस वक्त व‌र्ल्डफेम हुआ करता था। यही वजह रही कि पं। नेहरू को देहरादून की ठंडी वादियों के बीच दून की जेल में शिफ्ट किया गया।

'ग्लिमसेस ऑफ व‌र्ल्ड हिस्ट्री' भी दून जेल में

बताया जाता है कि पं। जवाहर लाल नेहरू सबसे पहले क्9फ्ख् में देहरादून की जेल में शिफ्ट किया गया था। उसके बाद क्9फ्फ्, क्9फ्ब् और क्9ब्क् में उन्हें दून कारागार में रखा गया। जहां उन्होंने कई महीने बंदी के तौर पर दून की जेल में अपना जीवन व्यतीत किया। मिले दस्तावेजों के अनुसार पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने देहरादून कारागार कारावास के दौरान 'ग्लिमसेस ऑफ व‌र्ल्ड हिस्ट्री' का मेजर पार्ट यहीं पर लिखा। वे क्9फ्ख् व क्9फ्फ् में सबसे ज्यादा साढ़े चौदह महीने दून के कारागार में रहे थे।

दस्तावेजों के अनुसार उनके साथ पंडित गोविंद बल्लभ पंत व रामनगर के कुंवर आनंद साथ में थे। यह पं। नेहरू की डायरी में भी दर्ज है। वह कहते हैं कि इन तीनों ने जिस वक्त दून की जेल में अपना वक्त व्यतीत किया। उस वक्त यहां मौजूद बाकी बंदियों को उन्होंने 'वंदे मारतम्.' भी सिखाया था। जेल में अक्सर बंदियों के जुबां पर हर वक्त 'वंदे मारतम्.' यही नारा सुनने को मिला करता था।

रात के वक्त दून हुए थे शिफ्ट

कहते हैं कि जिस वक्त बरेली से पं.नेहरू को दून की जेल में शिफ्ट किया गया, उस वक्त उन्हें रात के अंधेरे में लाया गया। इसके अलावा जब नेहरू बरेली की जेल में रहा करते थे, तब ख्क् फिट ऊंची दीवार हुआ करती थी, लेकिन दून के कारागार में करीब 9 फिट ऊंची दीवार थी। दस्तावेजों के मुताबिक पं.नेहरू को दून की जेल में उस वक्त उनके बैरक से जेल के मेन गेट तक टहलने की परमिशन हुआ करती थी।

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सरकार का कोई ध्यान नहीं

बेशक, पं। नेहरू के जयंती पर क्ब् नवंबर को नेहरू वार्ड को एक दिन के रोशन किया जाता है, लेकिन उसके बाद कुछ नहीं। इन मौकों पर कई बार पूर्ववर्ती सरकारों ने नेहरू वार्ड के इतिहास के महत्व को संजोए रखने के साथ दर्शकों व पर्यटकों के लिए हमेशा खुले रखने के दावे किए, लेकिन आज नेहरू वार्ड तक जाएं तो हमेशा वहां ताला लटका हुआ मिलेगा। ऐसे में जब देश स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारियां कर रहा हो, तब नेहरू वार्ड की अनदेखी नहीं तो और क्या।

Posted By: Inextlive