Bareilly : समय के साथ बच्चों की रीडिंग हैबिट में आया बदलाव एक तरफ जहां प्रजेंट टाइम के सिनॉरियो को दिखाता है तो वहीं इस ट्रेंड का एक निगेटिव पहलू यह है कि बच्चों का बिहेवियर निगेटिविटी की तरफ जा रहा है. कल तक चंदा मामा पराग चंपक और अमर चित्रकथा जैसा चिल्ड्रेन लिटरेचर पढऩे वाले बच्चे अब टीवी इंटरनेट व गेम्स के फैंटेसी कैरेक्टर्स की गिरफ्त में आ चुके है. इस बदलाव से एक ओर जहां मॉरल वैल्यूज में कमी आई है तो वहीं आने वाले दिनों में इसके और साइडइफेक्ट्स का भी असर दिखने लगा है. 14 नवबंर को चिल्ड्रेन डे को देखते हुए हमने बच्चों की चेंज होते रीडिंग इंट्रेस्ट की पड़ताल की तो कुछ चौकाने वाले फैक्ट्स सामने आए.


अब सिर्फ यादें ही बाकीबचपन में बच्चों को कहानियां सुनने का काफी शौक होता है। दादा-दानी की कहानी, परियों का देश, राजकुमार-राजकुमारी, प्यासा कौवा और कछुए-खरगोश जैसी अनगिनत ऐसी कहानियां है जो बच्चों को मैगजीन से घरों में पढ़ाई और सुनाई जाती थीं। ऐसी दर्जनों मैगजीन पब्लिश होती थी जो बच्चों को मॉरल वैल्यूज के साथ इंटरटेंन भी करती थीं। लेकिन अब इस ट्रेंड में बदलाव आ गया है। इमेजिनेशन पॉवर पर इफेक्ट


एक समय मंथली मैगजीन पराग का बच्चों को इंतजार रहता था। इसमें आने वाली कहानी को लेकर बच्चे काफी एक्साइटेड रहते थे। लेकिन धीरे-धीरे ये मैगजीन बंद हो गईं। एक्सपट्र्स का मानना है कि पढऩे से कल्पना को जो खुली आजादी मिलती है। वह किसी दूसरे जरिए से संभव नहीं है। एक बच्चा जब पुराने जमाने की कहानी पढ़ता है तो वह अपनी कल्पना में कहानी से काफी आगे निकल जाता है। इससे बच्चों में इमेजिनेशन पॉवर डेवलप होता है। बच्चों का दिमाग भी शार्प होता था। यही नहीं पढऩे और लिखने की आदत डेवलप होती है। लेकिन दुर्भाग्य है कि आज चिल्ड्रेन लिटरेचर खत्म हो रहा है। लेकिन उम्मीद बची है

एक तरफ जहां बच्चों के बीच लोकप्रिय मैगजीन की संख्या घट रही है। बाल साहित्य पर संकट मंडरा रहा है लेकिन दूसरे तरफ देश के कुछ जाने माने न्यूज पेपर्स बच्चों के लिए वीकली और मंथली मैगजीन निकाल रहे हैं। जो न्यूज पेपर्स के साथ घरों में दी जा रही है। इसके साथ ही स्कूल लेवल पर भी बच्चों को बाल साहित्य से परचित कराने के लिए काम किया जा रहा है। इससे बच्चों को किस्सों और कहानियों से परिचित कराने और उनकी कल्पना शक्ति बढ़ाने के लिए स्कूल पर समय-समय पर प्रोग्राम का आयोजन किया जा रहा है.पैरेंट्स को भी बताया जा रहा है कि वह अपने बच्चों को बाल मैगजीन खरीदकर पढऩे के लिए दें।एडवेंचरस लाइफ की चाहत

बच्चों में यह चेंज करीब 8 साल पहले से शुरू हो गया था। एक्सपर्ट की मानें तो मोबाइल, टीवी और इंटरनेट का असर कॉमिक्स की दुनिया में भी देखने को मिला है। कॉमिक्स कैरेक्टर्स भी अब हाईटेक हो चुके हैं। इन हाइटेक कॉमिक कैरेक्टर्स को खूब पसंद आते हैं। बच्चे क्या पढऩा और देखना चाहते हैं यह राइटर्स भी अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए वह इसी को भुनाने में लगे रहते हैं। वह कॉमिक्स कैरेक्टर्स को इतना एक्साइटिंग, एडवेंचरस और पॉवरफुल प्रेजेंट करते हैं कि बच्चे उनकी तरफ अट्रैक्ट होने लगते हैं। धीरे-धीरे ये कैरेक्टर्स उनके रोल मॉडल बन जाते हैं और वह उन्हीं की तरह लाइफ जीने की चाहत रखते हैं।'मेरा बेटा पार्थ 8 साल का है। उसे कॉमिक्स में जो भी कैरेक्टर पसंद आता है, उसी कैरेक्टर को रीयल लाइफ में फॉलो करने लगता है। इससे उसका विहेवियर काफी चेंज हुआ है। उसे सुपरमैन व थ्रिलर वाले कॉमिक्स ज्यादा पसंद हैं.'सलोनी, पेरेंट'मेरे दोनों बच्चे पुष्टि व सोमांग कॉमिक्स की ही दुनिया में ही खोए रहते है। बेटे सोमांग को डरावनी कॉमिक्स ज्यादा पसंद है इसलिए वह डरावनी बातें भी करता रहता है। वहीं बेटी फेयरीटेल्स पढ़ती है। आजकल जितने भी कॉमिक्स आ रहे हैं, वह रियल लाइफ से दूर हैं.'-रुपाली अग्रवाल, पेरेंट रियलिटी पर हावी फैंटेसी
'प्रेजेंट लाइफस्टाल से सोशल एंवायरमेंट लगातार चेंज हो रहा है। अब न्यूक्लियर फैमिलीज की वजह से बच्चों को एल्डर्स का साथ नहीं मिल पाता है। वर्किंग पेरेंट्स भी बच्चों को टाइम नहीं दे पाते हैं। इस वजह से बच्चों को फैसिलिटीज तो मिल जाती हैं लेकिन मॉरल वैल्यूज नहीं मिल पाते हैं। बच्चे अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। टीवी और कॉमिक्स के कैरेक्टर्स से वे अपना अकेलापन दूर करने की कोशिश करते हैं। वह फैंटेसीज का सहारा लेते हैं। धीरे धीरे ये फैक्टर इतना बढ़ जाता है कि वे रियलिटी से दूर हो जाते हैं। जब वे रियलिटी फेस करते हैं तो उनके अंदर बैड हैबिट्स बढ़ जाती हैं.'-डॉ। हेमा खन्ना, साइकोलॉजिस्टमॉरल वैल्यूज पर इंडिविजुएलिटी हावी'आजकल के बच्चे इंटरटेनमेंट के नाम पर स्पोट्र्स और कल्चरल एक्टिविटीज से दूर होते जा रहे हैं। इंटरनेट पर वे इंटरटेनमेंट को खोज रहे हैं। चिल्ड्रेन की मेंटल कंडीशन पहले जैसी नहीं रही, वे जल्द से जल्द चीजों के बारे में जानना चाहते हैं। पेरेंट्स भी बच्चों की इस कंडीशन के लिए जिम्मेदार हैं। बच्चों की डिमांड टाइम से पहले ही पूरी कर दी जाती है। बच्चे दिमाग में आने वाले इमैजिनेरी आइडियाज से प्रभावित दिखते हैं। ऐसी सिचुएशन में बच्चे पेशेंस खो देते हैं और वॉयलेंट बिहेव करने लगते हैं। न्यूक्लियर फैमिलीज में ये प्रॉब्लम ज्यादा फेस की जा रही है.'डॉ। नवनीत कौर आहूजा, सोशियोलॉजिस्ट

Posted By: Inextlive