एक अंतरराष्ट्रीय शोध ने उद्योग क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले एक घुलनशील पदार्थ का सीधा संबंध पार्किंसन बीमारी से बताया है.

शोधकर्ताओं ने पाया है कि ट्राईक्लोरोइथिलीन यानी टीसीई नाम के इस पदार्थ के संपर्क में आने से पार्किंसन की बीमारी का ख़तरा छह गुना ज़्यादा बढ़ सकता है।

पार्किंसन एक ऐसी बीमारी है, जिससे जोड़ों में बहुत कमज़ोरी आ जाती है और बोलने में भी दिक्कत आती है, लेकिन इस बीमारी के पीछे का कारण अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है और इसका कोई इलाज भी नहीं है।

अब तक किए गए शोध में पता चालता है कि इस बीमारी के पीछे अनुवांशिक के साथ-साथ वातावरण से जुड़े कारण हो सकते हैं। इस शोध के लिए अमरीका के डेटा रिकॉर्ड में से 99 जुड़वां लोगों के जोड़ों को चुना गया।

टीसीई नाम का पदार्थ हालांकि पूरे विश्व में प्रतिबंधित है, लेकिन इसका इस्तेमाल अब भी कई औद्योगिक कामों में किया जाता है। अमरीका, कनाडा, जर्मनी और अर्जेंटीना के शोधकर्ता इस पदार्थ से मनुष्य के स्वास्थ्य पर होने वाले असर को जानना चाहते थे।

उन्होंने हर 99 जोड़ों में से एक ऐसा चुना, जिसे पार्किंसन की बीमारी थी। क्योंकि जुड़वां लोग अनुवांशिक रूप से एक जैसे ही होते हैं और एक जैसी ही जीवनशैली रखते हैं, इसलिए ऐसा माना गया कि ऐसे जोड़े के आधार पर ये शोध किया जा सकता है।

भू-जल भी दूषित

जुड़वां लोगों पर टीसीई पदार्थ के असर को मापा गया, जिससे ये सामने आया कि पदार्थ और पार्किंसन बीमारी के बीच गहन संबंध है और इस पदार्थ के संपर्क में आने से पार्किंसन बीमारी की संभावना छह गुना बढ़ जाती है।

कैलिफ़ॉर्निया में पार्किंसन इंस्टीट्यूट डॉक्टर सैमुअल गोल्डमन का कहना है, “हमारे शोध में ये बात साबित होती है कि वातावरण में साधारण दूषणकारी तत्वों से पार्किंसन का ख़तरा बढ़ सकता है.”

टीसीई पदार्थ का इस्तेमाल पेंट, गोंद, कार्पेट साफ़ करने वाले पदार्थ और कपड़े ड्राइक्लीन करने के काम में आने वाले पदार्थ में होता है। इस पदार्थ से होने वाला प्रदूषण भू-जल तक भी पहुंच रहा है और एक शोध के मुताबिक़ अमरीका में पीने के लिए सप्लाई होने वाले पानी में से 30 प्रतिशत टीसीई से दूषित होता है।

ब्रिटेन में पार्किंसन इंस्टीट्यूट के रिसर्ट डवलपमेंट मैनेजर डॉक्टर मिशैल गार्डनर कहते हैं, “ये पहला शोध है जिसमें ये पाया गया है कि घुलनशील पदार्थ टीसीई का संबंध पार्किंसन जैसी बीमारी के विस्तार से हो सकता है। ये महत्त्वपूर्ण है कि 30 साल पहले इस पदार्थ पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, लेकिन फिर भी किसी-किसी औद्यौगिक कामों में इसका इस्तेमाल होता है.”

डॉक्टर मिशैल का कहना है कि इस पदार्थ और पार्किंसन की बीमारी के बीच के संबंध के बारे में और स्पष्ट तस्वीर जल्द ही उभर कर आनी चाहिए।

Posted By: Inextlive