- शहर में भी भारी बस्तों से परेशान हैं बच्चे

- महाराष्ट्र की घटना ने देशभर में छेड़ दी नई बहस

Meerut । भारी स्कूल बैग्स को लेकर अक्सर चर्चाएं होती रहती है। महाराष्ट्र के चंद्रपुर में बच्चों ने भारी स्कूल बैग के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। सातवीं क्लास में पढ़ने वाले दोनों बच्चों ने भारी स्कूल बैग्स से निजात पाने के लिए विद्रोह छेड़ दिया है। बच्चों ने धमकी दी है अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला तो वे भूख हड़ताल भी करेंगे। अब मेरठ में भी इस मुद्दे पर प्रिंसिपल्स से लेकर स्टूडेंट्स और पेरेंट्स तक चर्चा कर रहे हैं।

प्रिंसिपल्स के कई तर्क

कुछ प्रिंसिपल्स अपने स्कूलों भारी बैग न होने की दुहाई दे रहे हैं। वहीं कुछ प्रिंसिपल्स मान रहे हैं कि ये मुद्दा किसी मीडिया क्लब द्वारा पैतरेंबाजी से तैयार किया गया है। वहीं कुछ का कहना है कि स्कूलों में जो बैग है वो एजुकेशन सिस्टम के अनुसार ही है। इसलिए अगर वास्तव में अगर बैग का काम करना होता है तो हमें भारतीय एजुकेशन सिस्टम को बदलकर विदेशी एजुकेशन सिस्टम लाना होगा और हर बच्चे के हाथ में लैपटॉप थमाना होगा जो कि संभव नही है। वहीं कुछ स्कूल्स प्रिंसिपल्स ये भी मान रहे हैं कई स्कूल अपने स्वार्थ में इतनी अति कर देते हैं कि जिसका खामियाजा पेरेंट्स को व बच्चों को उठाना पड़ता है।

पेरेंट्स और बच्चों में भी चर्चा

जहां प्रिंसिपल्स अपने अपने विचार दे रहे हैं। वहीं पेरेंट्स इस मुद्दे के पीछे स्कूलों को ही दोषी मान रहे हैं। पेरेंट्स के अनुसार स्कूल हर बार पेरेंट्स की जेब को ढीला करने की सोचते हैं। अपने स्वार्थ में आकर वो प्राइवेट पब्लिकेशन से मोटी कमीशन की कमाई करते हैं। इसका परिणाम ही है कि आज मजबूरन दो बच्चों को इस तरह का चौकाने वाला कदम उठाना पड़ रहा है। वहीं बच्चे भी भारी बैग्स को लेकर नाराजगी जता रहे हैं।

क्या कहते हैं स्कूल

महाराष्ट्र की घटना को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि जैसे मानों किसी ने जानबूझकर इसे किया हो। रहीं बात मेरठ की तो शहर में बच्चे समझदार व बहुत अच्छे है, इसलिए वो इतने गलत कदम नहीं उठाएंगे। वैसे हमारे स्कूल में बुक्स बहुत ही कम है जो बहुत ही जरुरी है वो ही लगाई है।

-एचएम राउत, प्रिंसिपल, दीवान पब्लिक स्कूल

एजुकेशन सिस्टम के हिसाब से देखा जाए तो स्कूलों में बहुत ही जरुरी बुक्स लगाई गई है कोई भी एक्स्ट्रा बुक नहीं है। इसलिए अगर बैग का बोझ वास्तव में खत्म करना है तो पहले यहां विदेशी एजुकेशन सिस्टम लाना होगा। क्योंकि वहां पर हर बच्चों के पास लैपटॉप है बैग का बोझ नहीं होता।

-राहुल केसरवानी, प्रिंसिपल, सिटी लुक पब्लिक स्कूल

सीबीएसई का प्रयास रहता है कि बैग का वजन कम किया जाए। इसलिए स्कूलों में एनसीईआरटी की बुक्स लगाई जाती है। हमारे यहां अधिकतर स्कूल में यहीं है। लेकिन कुछ स्कूल्स मैनेजमेंट ऐसे होते है जो अपने स्वार्थ के चलते प्राइवेट पब्लिकेशन की बुक्स लगाते हैं जो कि बहुत ही गलत है।

-डॉ। कमेंद्र सिंह, प्रिंसिपल, कालका पब्लिक स्कूल

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क्या कहते हैं स्टूडेंट्स?

अक्सर हमारा बैग भारी होता है, स्कूल जाते समय इतना भारी बैग उठाते है तो कंधों में दर्द हो जाता है। अगर कोई एक बुक न ले जाए तो टीचर की डांट खानी पड़ती है।

-युवराज सिंह, स्टूडेंट

कई बार बैग से कंधों में दर्द हो जाता है, ऐसे में घर जाकर मन नहीं करता कुछ करने का। अगर कोई बुक कम ले जाए तो भी डर है कि डांट न पड़े।

-कशिश कसाना, स्टूडेंट

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क्या कहते हैं पेरेंट्स

स्कूलों को बस अपनी मनमर्जी चलाने से मतलब है, फिर चाहे भारी बैग की बात है या फिर फीस की। उन्हें बस अपनी कमाई से मतलब होता है।

-दिव्या, अभिभावक

ये स्कूलों का हाल है कि अपने स्वार्थ के चक्कर में वो बच्चों के स्वास्थ्य का ख्याल तक नहीं रखते हैं। भारी बैग्स से बच्चों को परेशानी होती है।

-आंचल

Posted By: Inextlive