- फैमिली के डांटने पर नाराज होकर घर छोड़कर भाग रहे बच्चे

-समझाने के बाद भी घर जाने को तैयार नहीं होते बच्चे, चाइल्ड लाइन काउंसिलिंग कर भेजता है घर

रेलवे चाइल्ड लाइन में मिले यह बच्चे

95 बच्चे शहर घर से भागकर आने वाले मिले

88 बच्चों को चाइल्ड लाइन ने पहुंचाया घर

4 मासूम एडॉप्शन के लिए फ्री किए गए

3 बच्चे शेल्टर होम में हैं जिनके होम ट्रेस नहीं हो सके

इतने बच्चे मिले सिटी चाइल्ड लाइन में

74 बच्चे मिले थे शहर में अलग-अलग जगहों से

14 बच्चे शेल्टर होम में हैं जिनके घर ट्रेस नहीं हो पाए

60 बच्चों को चाइल्ड लाइन पहुंचाया घर

नोट यह आंकड़ा जनवरी से अक्टूबर 2019 तक का है।

केस:1 ताऊ ने डांटा तो छोड़ दिया घर

-हापुड़ निवासी 14 वर्षीय एक किशोरी संडे रात को जंक्शन पर ट्रेन में चाइल्ड लाइन को मिली। किसी कॉलर ने इसकी सूचना चाइल्ड लाइन को दी, तो किशोरी को ट्रेन से उतार लिया गया। किशोरी ने बताया कि उसके मां-बाप की मौत हो चुकी है ताउ-ताई के पास रहती है वह डांटते हैं इसीलिए वह घर नहीं जाएगी। हालांकि चाइल्ड लाइन उसकी काउंसलिंग में संडे को भी लगी रही मंडे यानि आज उसे सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किया जाएगा।

केस:2 अब नहीं जाना घर

बिहार का रहने वाली एक हाईस्कूल की 15 वर्षीय छात्रा 1 नवम्बर को ट्रेन में मिली। चाइल्ड लाइन ने जीआरपी की मदद से उसे उतारा और उसकी काउंसलिंग की। काफी देर में छात्रा ने बताया कि वह घर से स्कूल जाने के लिए निकली लेकिन वह रास्ते में स्कूटी छोड़कर भाग आई। बताया कि घर वाले डांटते हैं इसीलिए वह अब घर नहीं जाएगी। हालांकि चाइल्ड लाइन समझाकर उसे भी परिजनों के सुपुर्द कर दिया।

केस:3- रोज डांटते हैं पापा

मिर्जापुर की रहने वाली 13 साल की एक किशोरी रेलवे जंक्शन पर जीआरपी और चाइल्ड लाइन को सर्च के दौरान मिली। किशोरी की जब काउंसलिंग की गई तो पता चला कि घर वालों ने डांट दिया जिस कारण वह घर छोड़कर आई है। अब वह घर नहीं जाना चाहती है। हालांकि काउंसलिंग के दौरान बच्ची को समझाया तो वह घर जाने को तैयार हो गई और उसे परिजनों के पास भेज दिया।

केस:4- डांटने पर भाग आई किशोरी

मई में रेलवे जंक्शन के प्लेटफार्म-1 पर जीआरपी को एक 14 साल की किशोरी मिली। काउंसलिंग के दौरान किशोरी ने बताया कि अलीगढ़ की रहने वाली है। उसके पापा ने उसे न पढ़ने पर डांट दिया था। जिसकी वजह से घर से भागकर ट्रेन में बैठ गई और बरेली पहुंच गई। चाइल्ड लाइन ने उसे समझा-बुझाकर परिजनों तक पहुंचा दिया।

बरेली:

छोटी-छोटी बातों पर बच्चे बड़ा कदम उठा रहे हैं। यह बात हम नहीं बल्कि चाइल्ड लाइन के आंकड़े बता रहे हैं। जनवरी से अब तक रेलवे और सिटी चाइल्ड लाइन में 169 बच्चे मिले जो पेरेंट्स के डांटने पर घर से भागकर आ गए थे। हैरत की बात तो यह है कि इनमें से कुछ बच्चे तो घर जाने को तैयार ही नहीं थे। हालांकि चाइल्ड ने काउंसलिंग के बाद 168 बच्चों को सही सलामत घर पहुंचाया। वहीं 17 बच्चे ऐसे हैं जिनके घर अभी तक ट्रेस नहीं हो सके हैं। इस वजह से वे शेल्टर होम में रहने को मजबूर हैं।

इस वजहों से भी घर छोड़ रहे बच्चे

-बच्चे खुद की पहचान बनाना चाहते हैं, वह पेरेंट्स की पहचान पसंद नहीं करते हैं।

-सिंगल फैमिला का होना जिसमें एक या फिर दो ही बच्चे होते हैं।

-बच्चों का जिद्दी होना, जिससे वह हर काम के लिए जिद करते हैं।

-पेरेंट्स की बिजी लाइफ से का भी बड़ा इफेक्ट है।

-बच्चों और पेरेंट्स के बीच फ्रेंडली महौल न होना।

-बच्चों की बात को परेंट्स का न सुनना

सोशल मीडिया का इफेक्ट

-सोशल मीडिया का बच्चों पर डायरेक्टली और इन्डायरेक्टली इफैक्ट पड़ता है। फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है बच्चा घर से भागने के बाद बड़ा आदमी यानि की अमीर हो जाता है। इस वजह से भी कई बच्चे घर से भाग जाते हैं।

बच्चे आज कल खुद की पहचान चाहते हैं, साथ ही सहन शक्ति भी कम होती जा रही है। इसका रीजन है पेरेंट्स बच्चों को समय कम दे पाते हैं, बच्चों से फ्रेंडली रहे ताकि वह अपनी प्रॉब्लम शेयर कर सकें।

डॉ। डीएन शर्मा, मजिस्ट्रेट सीडब्ल्यूसी

-जो भी बच्चे चाइल्ड लाइन को मिल रहे हैं, उनमें घर से नाराज होकर भागने वालों की संख्या अधिक है। किसी तरह बच्चों की काउंसलर से काउंसलिंग कराने के बाद उनका होम ट्रेस हो पाता है। उसके बाद घर भेजा जाता है।

अनीस अहमद खां जहांगीर, चाइल्ड लाइन डायरेक्टर

-15 दिन में ही दो किशोरियां रेलवे चाइल्ड लाइन को मिल चुकी है। दोनों किशोरियां घर नाराज होकर भागी थी। एक को घर भेज दिया है दूसरी को अभी सीडब्ल्यूसी में पेश किया जाना है। बच्चे नाराज होकर घर भागकर अधिक आते हैं।

रमनजीत सिंह, रेलवे चाइल्ड लाइन को-आर्डिनेटर/काउंसलर

हर जिद पूरी करना प्रॉब्लम

बच्चों में धैर्य कमी आ गई है। उनकी शुरूआत में हर इच्छा पूरी कर दी जाती है इसीलिए वह जिद्दी हो जाते हैं। ऐसे में जब किसी काम न बोला जाता है तो उन्हें न गंवार गुजरता है। जिससे वह कोई गलत कदम उठाने लगते हैं क्योंकि उन्हें जीत के साथ हार बर्दाशत करना सिखाया ही नहीं गया। इसमें कहीं न कहीं पेरेंट्स की ही कमी है। बच्चों को शुरूआत से ही जिद्दी न बनाए।

डॉ। हेमा खन्ना, साइक्लॉजिस्ट

Posted By: Inextlive