व्हाइटनर, पेट्रोल और टिंचर से करते हैं नशा

-70 से 100 रुपये में मिल जाता है टिंचर

आगरा। जिस एज में बच्चों को अच्छी ग्रोथ के लिए पोषक तत्व लेने चाहिए, वह नशे के जाल में फंस रहे हैं। सिटी के विभिन्न एरियाज और ट्रैफिक सिग्नलों पर भीख मांगते हुए या कुछ सामान बेचते हुए बच्चे दिख जाएंगे। ये बच्चे दिनभर किसी भी प्रकार से पैसे जुटाते हैं और इसके बाद ये मार्केट से व्हाइटनर और टिंचर खरीदकर नशा करते हैं। ये बच्चे किसी भी प्रकार से पेट्रोल जुटाकर उसे कपड़े में डालकर सूंघते रहते हैं। इनको ये पता नहीं है कि वे अपनी हैल्थ को कितना नुकसान पहुंचाते हैं।

70 रुपये में मिलती है टिंचर की बोतल

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने भगवान टॉकीज पर बच्चों से बात की तो उन्होंने बताया कि वे दिनभर काम करके सौ रुपये कमाते हैं उसके बाद वे बिजलीघर जाकर 70 रुपये में टिंचर की बोतल लेकर आते हैं। इसके बाद वे उसे कपड़े में डालकर सूंघते रहते हैं। इस प्रकार उनकी ये बोतल दो दिन चल जाती है। एक अन्य बच्चे ने बताया कि वो भी इससे पहले ये नशा करता था। जूते की फैक्ट्री में काम करने के बाद जो पैसे कमाता था उनसे वह टिंचर की बोतल खरीदकर नशा करता था। लेकिन उसकी मां ने उसे पकड़ लिया और उसे समझाया कि इससे हैल्थ को खतरा है। इसके बाद से वह अब नशा नहीं करता है। वह अब अपनी कमाई को अपनी मां को देता है।

सिटी में है कई अड्डे

सिटी में इन बच्चों के जो नशे की लत में फंसते जा रहे हैं। इनके सिटी में कई अड़़्डे हैं। ट्रांसपोर्ट नगर, भगवान टाकीज, बिजलीघर, आगरा कैंट, एत्माद्दौला दिल्ली गेट पर ये बच्चे अक्सर इस प्रकार का नशा करते हुए मिल जाएंगे। चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट नरेश पारस बताते हैं कि प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। इन बच्चों को इस खतरनाक आदत से निकालने के लिए रिहाबिलिटेशन सेंटर बनाकर काउंसलिंग करने की जरूरत है। लेकिन प्रशासन इसके लिए कोई प्रयास नहीं करता है। वे कहते हैं कि ये बच्चे न केवल अपने स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं। बल्कि ये बड़े होकर क्रिमिनल एक्टिविटी में इन्वॉल्व हो जाते हैं। नरेश पारस बताते हैं कि सिटी में नशे का कारोबार खूब पनप रहा है। टिंचर और नशीली दवाएं सिटी में कई मेडिकल स्टोर्स पर मिल जाती हैं। वे बताते हैं कि 8 से 15 साल के बच्चे इन गतिविधियों में शामिल हैं। बच्चे कफ सिरप और आयोडेक्स से भी नशा करते हैं।

स्कूली बच्चे भी करते हैं नशा

स्कूली बच्चे भी इन गतिविधियों में लिप्त हैं। कुछ स्कूली बच्चे जो घर से तो कैंटीन में समोसा और सेंडविच खाने के लिए पैसे लेकर आते हैं। लेकिन वे स्टेशनरी पर मिलने वाले व्हाइटनर या फ्लूड को भारी मात्रा में खरीदकर इसका सेवन करते हैं। वे फ्लूड को रुमाल में डालकर सूंघते हैं।

सेहत को पहुंचा रहे नुकसान

बच्चों की ग्रोथ ईयर्स में उन्हें न्यूट्रीशंस की जरूरत होती है। वे इस एज में नशा करेंगे तो इससे उनकी बॉडी पर इफेक्ट पड़ेगा। वे जल्दी ही विभिन्न बीमारियों की गिरफ्त में आएंगे। ये उनके लिए बहुत हानिकारक है।

-डॉ। विजय सिंघल

Posted By: Inextlive