अधखुली आंख और बेपरवाह हाथों में रोडवेज की स्टेयरिंग
फेरा पूरा करने के चक्कर में ओवर स्पीड से भगाते हैं वाहन
संविदा ड्राइवर ज्यादा कमाई के लिए कराते हैं जोखिम भरा सफर vinod.sharma@inext.co.in VARANASIवाराणसी से इलाहाबाद, आजमगढ़, शक्तिनगर, मिर्जापुर मार्ग पर तय मानक से अधिक गति से फर्राटा भर रही अनुबंधित बसें भी हादसे का सबब बन सकती हैं। यह तो गनीमत है कि अभी ये सड़क पूरी तरह से बनी नहीं है और कई इलाके जाम की चपेट में रहते हैं। इसकी वजह से इन्हें कई स्थानों पर स्पीड कंट्रोल में रखनी पड़ती है, लेकिन तब की सोचकर रूह कांप जाती है जब ये सड़कें भी आगरा एक्सप्रेस-वे की तरह हो जाएंगी। तब अधखुली आंखों और बेपरवाह हाथों वाले ये चालक भी आए दिन ऐसे हादसों के कारण बनेंगे। बस का फेरा कम समय में पूरा करने के चक्कर में ये ड्राइवर इस तरह से वाहन चलाते हैं कि यात्रियों की जान हमेशा सांसत में रहती है।
गई थी चालक की जान
कैंट स्थित रोडवेज बस डिपो में अभी हाल ही में हुए दो हादसे इन बेपरवाह ड्राइवरों की लापरवाही के गवाह हैं। यहां भीड़-भाड़ में भी रफ्तार कम न करने के कारण एक दूसरे रोडवेज चालक को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसी तरह एक दूसरे हादसे में एक चालक ने लापरवाही से बस बैक करते हुए महिला को गंभीर रूप से घायल कर दिया।
मानक से कम हैं ड्राइवर वाराणसी परिक्षेत्र के अंतर्गत नौ जिले हैं। इनमें जौनपुर डिपो, सोनभद्र डिपो, गाजीपुर डिपो, चंदौली डिपो, कैंट डिपो, ग्रामीण डिपो, काशी डिपो और विंध्यनगर डिपो हैं। यहां कुल बसों की संख्या करीब 574 से अधिक है और इनके लिए ड्राइवर 980 हैं, जबकि जरूरत है करीब 1100 की। ट्रेनिंग की भी व्यवस्था नहीं वाराणसी परिक्षेत्र में ड्राइवरों के प्रशिक्षण के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। करौंधी में बन रहे मोटर ट्रेनिंग स्कूल का सहारा है जो कि निर्माणाधीन है। वहीं चालकों की नियमित ट्रेनिंग कानपुर स्थित केंद्रीय कार्यशाला में होती है। इसके लिए समय समय पर मुख्यालय के निर्देश पर चालकों को कानपुर भेजा जाता है। ओवर टाइम का भी है चक्कर नियम के अनुसार रोडवेज चालकों को आठ घंटे या कम से कम 240 किलोमीटर की नियमित ड्यूटी करनी पड़ती है। अमूमन चालक ज्यादा कमाई के लिए कई बार तय समय और किलोमीटर से ज्यादा बस चलाते हैं। इसके कारण वे कई बार सो भी नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में हादसे की आशंका बनी रहती है। मथुरा दिल्ली के लिए दो चालकबनारस से दिल्ली और मथुरा सेवा के लिए दो चालकों की ड्यूटी लगती है। इसमें कैंट डिपो से चलकर बस प्रयागराज और कानपुर होते हुए आगे जाती है। चालकों की अदला बदली कानपुर में की जाती है।
शामिल हैं गैर अनुभवी ड्राइवर ड्राइवरों की कमी के चलते नए और संविदा के अनुभवहीन चालकों के हाथों में बसों की स्टेयरिंग थमा दी जाती हैं। बनारस में बस संचालन के लिए कुल 574 बसें हैं। इसके लिए करीब 980 ड्राइवर हैं। इसमें संविदा पर ज्यादा हैं। संविदा ड्राइवरों को प्रॉपर ट्रेनिंग भी नहीं दी जाती है। 40 प्रतिशत की आंखें हैं गड़बड़ रोडवेज की बसों के सुरक्षित संचालन के लिए चालकों की सेहत को ठीक रखने पर विशेष ध्यान होता है। कैंट डिपो में जांच के नाम पर महीनों में स्वास्थ्य शिविर लगाया जाता है। इसका आयोजन अक्सर सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान किया जाता है। पिछले साल नेत्र परीक्षण में करीब 40 प्रतिशत ड्राइवरों की आंखों की गड़बड़ी पाई गयी थी। दो उपकरणों से कैसे हो जांचसड़क परिवहन निगम का नियम है कि सफर पर जाने से पूर्व चालकों के शराब पीने की जांच होनी चाहिए। जबकि वाराणसी परिक्षेत्र में जहां 900 से अधिक चालक हैं। इनकी जांच के लिए मात्र दो बे्रथ एनालाइजर हैं। ऐसे में चालकों के नशे में होने की जांच राम भरोसे ही है।
परिसर में दो ही रेस्ट रूम ड्यूटी के बाद ड्राइवरों को आराम करने के लिए रोडवेज परिसर में सिर्फ दो रेस्ट रूम हैं, जिसमें मात्र 10 से 12 चौकियां पड़ी हैं। ड्राइवरों की संख्या के हिसाब से इसकी संख्या काफी कम है। आगरा की घटना के बाद ड्राइवरों की काउंसलिंग कराने के निर्देश दिये गए हैं। ड्राइवरों से कहा गया है कि नींद आने पर गाड़ी खड़ी कर पहले सो लें। समय-समय पर आरएम स्क्वॉड और निरीक्षक दल द्वारा ड्राइवरों की जांच की जाती है। नशे में मिलने पर चालकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश हैं। -केके शर्मा, क्षेत्रीय प्रबंधक कुल बसें : 574 ड्राइवर : 980 ड्यूटी : 8 घंटे 1100 ड्राइवर की जरूरत