- सीएम ने कई फाइलों के साथ-साथ मांझी की चारों कैबिनेट की फाइलें मंगाई

PATNA: जीतन राम मांझी जब सीएम थे, तब उन्होंने खुद ही कहा था कि वे ख्0-ख्0 मैच खेल रहे हैं। उन्होंने दनादन कई बड़े फैसले कैबिनेट से पास करवाए। इसमें वैसे फैसले भी रहे, जिन पर सैद्धांतिक सहमति को लेकर पहले सवाल उठते रहे हैं। अब जब नीतीश कुमार ने फिर से बिहार की कमान संभाल ली है, तो ये चर्चा जोरों से है कि वे कई फैसलों पर गंभीरता से विचार ही नहीं कर सकते, बल्कि उन्हें बदल भी सकते हैं। हालांकि नीतीश कुमार ने चौथी बार सीएम पद की शपथ लेने के बाद कहा था कि वे बाइस्ड होकर कोई काम नहीं करेंगे और देखेंगे कि नियमों से काम हुआ है कि नहीं। इधर, सूत्रों की मानें तो नीतीश कुमार ने पिछले चार कैबिनेट में लिए फैसलों से जुड़ी फाइलें भी मंगवाई।

नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी कैबिनेट से जुड़े जिन नौ खास फैसलों पर गंभीरता से विमर्श कर सकते हैं और उनमें बदलाव कर सकते हैं वे ये हैं-

क्। सूबे के सरकारी प्रारंभिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक और अनुदानित माध्यमिक स्कूलों में विभिन्न विभागों की ओर से संचालित मुख्यमंत्री पोशाक, साइकिल, प्रोत्साहन या स्कॉलरशिप योजना के लिए छात्र-छात्राओं के लिए 7भ् परसेंट उपस्थिति की अनिवार्यता को कम करते हुए सामान्य व रिजर्वेशन कोटि के छात्र-छात्राओं की उपस्थिति की अनिवार्यता को क्रमश: म्0 परसेंट व भ्भ् परसेंट किया गया।

ख्। कृषि कार्य के लिए क्रय करके गरीबों को भूमि की व्यवस्था।

फ्.निजी उच्च विद्यालयों के अधिग्रहरण की नीति की सैद्धांतिक स्वीकृति।

ब्.पंचायत या नगर निकाय टीचर्स के चरणबद्ध नियमितीकरण के लिए समिति का गठन।

भ्.महादलित में सभी अनुसूचित वर्गो को शामिल करना।

म्। पांच एकड़ तक भूमि वाले किसानों को मुफ्त बिजली की व्यवस्था।

7. निर्माण कार्यो में एससी व एसटी, पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा वर्ग एवं महिलाओं को निविदा में रिजर्वेशन का प्रावधान।

8.मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना में प्रत्येक सदस्य दो करोड़ से तीन करोड़ की वृद्धि।

9.आवास बोर्ड की भूमि को लीज होल्ड से फ्री होल्ड करने का निर्णय।

कौन से फैसले सही हैं, कौन से गलत इसके कई आधार हैं। लोगों को चाहिए कि नहीं या राज्य के पास उसे पूरा करने के संसाधन हैं कि नहीं या फैसले किस समय में लिए गए। शिक्षा की ही बात करें, तो स्कूलों में क्या आधारभूत संरचना है कि बच्चों से इतनी उपस्थिति की उम्मीद की जाए। दूसरी बात ये कि अगर बच्चों की उपस्थिति से समझौता किया जाए, तो उनकी पढ़ाई कैसे होगी और कैसी होगी, इसलिए तमाम संदर्भो के साथ समीक्षा होनी चाहिए। बड़ी बात ये कि मांझी सरकार में फैसले तब लिए गए, जब उन्हें लग गया कि अब सरकार में नहीं रहना है। गरीब को राजनीति का मोहरा नहीं बनाना चाहिए था।

डॉ डी एम दिवाकर, डायरेक्टर, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल स्टडीज

Posted By: Inextlive