पाकिस्तानी राइफलों के सामने 'मैं निहत्था' था
उन्होंने शेख हसीना की मां बेगम फजीलातुनिसा, उनकी बहन शेख रेहाना और उनके भाई शेख रसेल को भी बचाया था। इन दिनों नोयडा में रहने वाले अशोक तारा से बीबीसी ने बात की। तारीख थी 17 दिसंबर 1971. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना जो उस समय 24 वर्ष की थी, अपनी मां बेगम रहमान और परिवार के बाकी सदस्यों समेत ढाका में धनमंडी में एक घर में नजरबंद थीं। खबर मिली कि पाकिस्तानी सैनिकों को वहां से निकलने से पहले उन्हें जान से मारने का हुक्म था।
भारतीय सेना के 14 गार्डस के मेजर अशोक तारा को इस परिवार को सही सलामत वहां से बचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। तीन जवानों के साथ मेजर तारा उनके घर की ओर गए तो रास्ते में कई लोगों ने उन्हें आगे के खतरे के बारे में सचेत किया। बताया कि आगे गोलीबारी हो रही है।मेजर तारा ने कुछ देर सोचा। नोयडा स्थित अपने घर पर बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, ''मुझे एक लक्ष्य दिया गया था। वो हर हाल में हासिल करना था। इसलिए मैने खतरा मोल लेने का फैसला किया.''
धमकीलेकिन रास्ता मुश्किल था। वे बताते हैं कि अपने साथियों को पोजीशन कर वे आगे बढ़ने लगे। वो उस घर से 50 मीटर ही दूर थे कि पाकिस्तानी सैनिक ने उन्हें धमकी दी। वे बताते हैं, ''उसने कहा रुक जाओ नहीं तो फायर कर दूंगा। इतने में सैनिकों ने अपनी राइफलें लोड कर ली। उपर छत पर खड़े संतरी ने भी अपनी लाइट मशीन गन लोड कर ली। मैं निहत्था था.''
''मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर कर दिया है। कहा कि ऊपर देखो भारतीय हैलिकॉप्टरों को। लेकिन वो मेरी बात मानने को तैयार नहीं थे। दरअसल उन्हें सरेंडर का संदेश नहीं मिला था.''बातों में उलझायावे आगे बताते हैं, ''मैं उन्हें बातों में उलझाते हुए आगे बढ़ता गया। मैंने उन्हें कहा कि अगर वे आत्मसमर्पण कर देंगे तो मैं उन्हें बचा सकता हूं और वो अपने परिवार से मिल सकते हैं.'' उन्होंने कहा कि यह एक हिंदुस्तानी फौजी का वादा है कि उन्हें उनके मुख्यालय पहुंचा दिया जाएगा। मेजर तारा को लग रहा था कि पाकिस्तानी सिपाही उन पर विश्वास करने लगे हैं।उनका कहना है, ''उनको डर भी लग रहा था और सच भी लगा कि एक हिंदुस्तानी अफसर ठीक ही बोल रहा है। मैंने उनकी हथियारों की ताकत को अपनी हिम्मत और शब्दों से जीत लिया। गेट पर पहुंचकर मैंने उस सिपाही की राइफल को एक तरफ किया.'' उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाया और पाकिस्तानी सैनिकों को अपने ड्राइवर के साथ भेज दिया।
मुजीब परिवार का डरतारा बताते हैं, ''मुजीब परिवार अंदर से शोर मचा रहा था। वे कह रहे थे कि हमें बचाओ, ये हमें मार देंगे। मैने दरवाजा खुलवाया और उन्हें बड़ी खुशी हुई.'' ''बेगम मुजीब ने मुझे गले लगाया और बोली तुम भगवान के माफिक हो जो हमें बचाया.'' बेगम के अलावा आज की प्रधानमंत्री हसीना, रेहाना उनके अंकल, आंटी और एक बच्चा था।बांग्लादेश सरकार ने 1971 के युद्ध के दौरान बेहतरीन काम के लिए भारतीय सेना के सेवानिवृत्त कर्नल अशोक तारा को सम्मानित करने की घोषणा की है। बहरहाल तारा कर्नल अशोक तारा कहते हैं, ''जब मुझे इस सम्मान की खबर मिली तो पहले तो लगा कि कोई मेरी टांग खींच रहा है.'' लेकिन बांग्लादेश दूतावास से फोन आया तो उन्हें इस का भरोसा हुआ।देर आए दुरुस्त आएवे कहते हैं, ''देरी तो हुई है लेकिन मैं समझ सकता हूं कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में कई चीजें होती हैं तो ऐसी देरी हो सकती है। मैं बहुत खुश हूं.'' उनकी पत्नी आभा तारा कहती हैं, ''मैं तो हैरान ही हो गई थी। पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। 40 साल बादलेकिन मैं बहुत खुश हूं.''
कर्नल तारा अपनी पत्नी के साथ नोयडा मे रहते हैं जबकि उनके दोनो बच्चे ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। कर्नल तारा कहते हैं, ''इतने सालों बाद मुजीब परिवार के लोगों से मिल कर बहुत अच्छा लगेगा.''वैसे उन्हें अशोक दादा कह कर बुलाने वाली हसीना की छोटी बहन रेहाना से उनकी कभी कभार खत के माध्यम से बात होती रही है। साल 1971 के युद्ध का एक ऐसा विवादास्पद पहलू है जिसमें महिलाओं को यौन प्रतारणाओं से गुजरना पड़ा था।बांग्लादेश की शेख हसीना की सरकार ने उन महिलाओं को आर्थिक मदद देने की योजना पर काम शुरु कर दिया है, जिनका 1971 के स्वतंत्रता युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर कथित तौर पर बलात्कार किया था।