- लालू प्रसाद हों या पप्पू यादव सब के अपने-अपने बोल

- बिगड़ैल बोल ने राजनीति की दूसरी तस्वीर सामने रखी

- बिगैड़ल बोल से जुड़े हैं जातीय राजनीति के तार

PATNA: बिहार विधानसभा इलेक्शन अक्टूबर-नवंबर में होने वाले हैं। जिसे देखते हुए राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। बयानबाजी बिल्कुल दूसरा रूप ले लिया है। इतिहास के पात्र भी याद दिलाए जा रहे हैं। उलाहना देने के लिए ऐसे पात्रों की खोज करने के लिए प्रवक्ताओं की शोध टीम तमाम पार्टियों में लगी हुई है।

नीतीश ने विभीषण कहा, तो मांझी ने रावण

सीएम नीतीश कुमार को एक्स सीएम जीतन राम मांझी को धोखेबाज कहते अच्छा नहीं लगता, इसलिए उन्होंने रामायण से पात्र खोजा और मांझी को विभीषण घोषित कर दिया। साथ में ये भी कहा कि विभीषण रामभक्त थे, लेकिन कोई अपने बच्चे का नाम विभीषण नहीं रखना चाहता। विभीषण जिस संदर्भ में कहा गया वह जीतन राम मांझी को नागवार गुजरा उन्होंने हाजिरजवाबी का परिचय दिया। कहा, मुझे विभीषण कहा है तो मैं उनका नाश करके ही रहूंगा। रावण का नाश विभीषण नहीं करेगा तो कौन करेगा।

अनंत सिंह के पक्ष में अनंत स्टाइल का बयान

अनंत सिंह की अरेस्टिंग बिहार की राजनीति में बड़ी घटना है। इसलिए कि अनंत को सत्ताधारी पार्टी का बरदहस्त प्राप्त रहा है। वे जेडीयू के एमएलए हैं। अनंत सिंह अरेस्ट हुए तो जाति राजनीति भी तेज हुई। उनकी जाति के विनम्र बोल बोलने वाले रालोसपा के एमपी ने कह दिया कि अनंत सिंह के बहाने खास जाति पर हमला बर्दाश्त नहीं, नीतीश कुमार का कलेजा तोड़ देंगे। दिलचस्प ये कि बीजेपी ऑफिस में एनडीए के प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने ऐसा कहा। जवाब आया नीतीश कुमार की ओर से मैं मौजूद हूं जो करना है आकर कर लें।

एकलव्य-द्रोणाचार्य से लेकर जयचंद-मीरजाफर तक

बाढ़ कांड से जुड़ा अनंत सिंह का मामला एमपी पप्पू यादव ने उठाया लेकिन लालू प्रसाद ने क्रेडिट लेने की भरसक कोशिश की। हत्या पुटुस यादव की हुई। इसलिए बड़े वोट की राजनीति होने लगी। लालू यादव ने पप्पू यादव को ऐतिहासिक पात्रों से नवाजा। विभीषण शब्द का इस्तेमाल तो नीतीश कुमार कर चुके थे इसलिए लालू प्रसाद ने पप्पू यादव को मीरजाफर और जयचंद कहा। जवाब आया पप्पू यादव की ओर से, उन्होंने कहा कि एकलव्य की तरह अपने परिवार की खातिर लालू प्रसाद उनका अंगूठा मांग रहे थे। कलयुग में ये संभव है क्या। ये कहते हुए लालू प्रसाद को उन्होंने द्रोणाचार्य भी कह दिया। यही नहीं पप्पू यादव ने खुद को मीरकासिम कहा और लालू प्रसाद को दुर्योधन, कंस कह डाला। ये भी कहा कि मैं तो कृष्ण का वंशज हूं और रहूंगा। पप्पू यादव ने बिहार की राजनीति के धाकड़ नेताओं को अन्य सर्टिफिकेट भी बांटे। लालू प्रसाद को राजनीतिक जाहिल और नीतीश कुमार व जीतन राम मांझी को विजन वाला व्यक्ति कहा।

पहले नेता को मारो, फिर सांप को

पप्पू यादव नेताओं को परिभाषित करने लगे। वे जनता को बताने लगे कि नेता कितने खतरनाक हैं। कार्यकर्ताओं से कहा सांप और नेता दोनों मिल जाए तो पहले नेता को मारो फिर सांप को। पप्पू ऐसे बयानों के जरिए ही चर्चा में बने रहना चाहते हैं। डॉक्टरों के खिलाफ जब उन्होंने अभियान चलाया था तब लोगों की सहानुभूति उमड़ी थी। लेकिन अब कुछ और बात है।

बिगड़ैल बोल कैसे वोट बैंक में बदल जाएंगे

ये सब चुनाव का असर है कि बोल ऊंचे और खतरनाक हो गए हैं। अपनी मर्यादा और सीमा को लांघने वाले। राजनीति के अंदर यानी बंद कमरे में क्या-क्या बोल बोले जाते हैं ये अलग सच है। लेकिन अब ये कमरे से बाहर भी आने लगा है। लोक लाज को ताक पर रखते हुए। बोल के पीछे जातीय गोलबंदी की राजनीति है जो वोट बैंक की ओर ले जाने की कोशिश है। बिगडै़ल बोल, वोट बैंक में तब्दील होंगे ये फिलहाल नहीं लगता।

Posted By: Inextlive