भारत सरकार ने सोमवार को जम्मू और कश्मीर राज्य के विभाजन का प्रस्ताव पेश किया इसके तहत राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख में बांटा जाएगा। इसके अलावा राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प व जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक भी पेश किया गया है। आइये जानें कैसे अमित शाह और टीम ने इस टॉप सीक्रेट मिशन को अंजाम दिया


नई दिल्ली (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्टिकल 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन के लिए वास्तविक उलटी गिनती जून के तीसरे सप्ताह के दौरान शुरू हुई, जब उन्होंने जम्मू और कश्मीर के नए मुख्य सचिव के रूप में छत्तीसगढ़ काडर के 1987 बैच के आईएएस अधिकारी B.V.R. सुब्रमण्यम को चुना। सुब्रह्मण्यम, जिन्होंने पहले प्रधानमंत्री के साथ संयुक्त सचिव (पीएमओ) के रूप में काम किया था, मोदी के मिशन कश्मीर के प्रमुख अधिकारियों में से एक थे। मिशन कश्मीर का पूरा काम केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंपा गया था, जो कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ एक कोर टीम के साथ कानूनी प्रभाव की समीक्षा कर रहे थे, इस कोर टीम में कानून एवं न्याय सचिव आलोक श्रीवास्तव, अतिरिक्त सचिव कानून (गृह) आर.एस. वर्मा, अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल, केंद्रीय गृह सचिव राजीव गौबा और कश्मीर डिवीजन की उनकी चुनिंदा टीम शामिल थे। बजट सत्र की शुरुआत से पहले, शाह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत और उनके सहयोगी (महासचिव) भैयाजी जोशी को आर्टिकल 370 को रद्द करने और जम्मू व कश्मीर राज्य को दो अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के इरादे के बारे में बताया था।


एनएसए अजीत डोभाल ने तीन दिन श्रीनगर में डाला डेरा

कानूनी परामर्श के बाद, शाह ने आर्टिकल 370 निरस्त होने पर घाटी की कानून और व्यवस्था की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया। शाह के करीबी सूत्रों ने खुलासा किया कि प्रधानमंत्री के सुझाव पर शाह ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के साथ कुछ बैठकें कीं। सूत्रों ने कहा कि एक बार शाह ने खुद कश्मीर की स्थिति की समीक्षा की थी, डोभाल को सुरक्षा की दृष्टि से श्रीनगर की स्थिति का आकलन करने के लिए भेजा गया था। एनएसए ने तीन दिन तक वहां डेरा डाला। फिर 26 जुलाई को अमरनाथ यात्रा रद्द करने का फैसला लिया गया। घाटी से सभी पर्यटकों को वापस बुलाने का सुझाव भी एनएसए ने दिया था। इसके अलावा, केंद्रीय अर्धसैनिक बल की अतिरिक्त 100 कंपनियों को भी बैक-अप के तौर पर भेजा गया। जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव सुब्रमण्यम, जो प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और गृह मंत्रालय (एमएचए) के साथ लूप में थे, को ग्राउंड ज़ीरो पर किए जाने वाले कई सुरक्षा उपायों का खाका दिया गया था - प्रमुख पुलिस, अर्धसैनिक और प्रशासन के अधिकारियों का सैटेलाइट फोन का उपयोग, दक्षिण कासमीर में संवेदनशील शहरी और ग्रामीण इलाकों में क्यूआरटी की तैनाती; और सीमा पार से होने वाली किसी भी शरारत को रोकने के लिए सेना की एलओसी पर अतिरिक्त सतर्कता। सेना प्रमुख, खुफिया एजेंसियों के प्रमुख और केंद्रीय अर्धसैनिक बल भी केंद्रीय गृह सचिव और मुख्य सचिव 24x7 के साथ समन्वय कर रहे थे। 4 अगस्त की रात को, मुख्य सचिव ने पुलिस महानिदेशक (जम्मू और कश्मीर) दिलबाग सिंह को कई कदम उठाने का निर्देश दिया, जिसमें प्रमुख राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी, मोबाइल और लैंडलाइन सेवाओं को बंद करना, धारा 144 की घोषणा करना और घाटी में कर्फ्यू के लिए तैयार रहना शामिल है।राज्यसभा में बहुमत की गणित को सुलझाया

इससे पहले, दिल्ली के मोर्चे पर, शाह के पास एक और महत्वपूर्ण काम था, जिसमें अनिल बलूनी और भूपेंद्र यादव जैसे राज्यसभा सदस्य शामिल थे। टीम को राज्यसभा के सदस्यों को समर्थन के लिए तैयार करने का काम सौंपा गया था, जहां भाजपा बहुमत से कम थी। जिस टीम ने टीडीपी के राज्यसभा सदस्यों को तोड़ा था, उसने समाजवादी पार्टी के सांसदों, नीरज शेखर, सुरेंद्र नागर, संजय सेठ और कांग्रेस सांसद संजय सिंह को राज्यसभा छोड़ने के लिए मनाने में कामयाबी पाई। इस प्रकार उच्च सदन में भाजपा को बढ़त मिल गई। अंतिम क्षणों में टीम बीएसपी नेता सतीश मिश्रा को आर्टिकल 370 रद्द करने और राज्य के विभाजन से संबंधित कदम का समर्थन करने के लिए मनाने में कामयाब रही। Article 370: उमर अबदुल्ला ने बताया चौंकाने वाला फैसला, महबूबा मुफ्ती ने कहा लोकतंत्र के लिए काला दिनसप्ताहांत में हुआ कैबिनेट की बैठक बुलाने का फैसला
शाह का उद्देश्य अंतिम समय तक गोपनीयता बनाए रखना था, जब तक कि वह 5 अगस्त को संसद में इस ऐतिहासिक विधेयक को पेश नहीं कर देते। सूत्रों के मुताबिक कि 2 अगस्त तक, शाह को भरोसा हो गया था कि उनकी पार्टी को राज्यसभा में पर्याप्त समर्थन हासिल है और वह इस ऐतिहासिक विधेयक को उच्च सदन में पेश करेंगे। इसके बाद, बीजेपी ने एक व्हिप जारी किया जिसमें सभी सदस्यों को अपने संबंधित सदन में बने रहने का निर्देश देते हुए कहा गया कि महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित होने की उम्मीद है। उच्च पदस्थ सूत्रों से पता चला कि सप्ताहांत में, मोदी और शाह द्वारा सोमवार को पीएम के आवास पर कैबिनेट की बैठक बुलाने, मिशन कश्मीर के उद्देश्य को मंत्रियों के सामने लाने और उसके बाद एक प्रस्ताव पारित करने का निर्णय लिया गया था। इसी तरह, कानून और न्याय मंत्रालय को आर्टिकल 370 के निरस्तीकरण पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी करने का काम सौंपा गया था। शाह द्वारा सोमवार को राज्यसभा में विधेयक पेश किए जाने के बाद, बीजेपी के एक सांसद ने प्रतिक्रिया दी: "शाह का मिशन की कभी हार नहीं हुई। वह नए सरदार हैं (वल्लभ भाई पटेल)।"

Posted By: Mukul Kumar