-किसी ने नहीं की दावेदारी तो अब होगी सरकारी संपत्ति

-ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के बाद भी सामने नहीं आया कोई दावेदार

-इलाहाबाद के रंगबाज पं। सीताराम का था आजादी से पहले कब्जा

-कई मालिकान बदले, लेकिन कागज पर नहीं है किसी का नाम

balaji.kesharwani@inext.co.in

ALLAHABAD: जानसेनगंज चौराहे पर स्थित 'इतिहास' रविवार को ढहा दिया गया है। यह बिल्डिंग करीब 150 साल पुरानी बताई जा रही है। शुक्रवार को इस बिल्डिंग के कुछ हिस्सों को तोड़ा गया था। इसके बाद दो दिन की मोहलत देकर मालिकाना हक का दावा करने वाले व्यक्ति का इंतजार किया गया। लेकिन रविवार तक इमारत का कोई भी मालिक सामने नहीं आया है। मौखिक तौर पर शहर के एक खत्री परिवार, भुक्खल महाराज और बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद को इमारत का मालिक बताया जा रहा है। लेकिन लिखित तौर पर किसी का भी मालिकाना हक नहीं मिला।

कभी होती थी चौराहे की पहचान

नक्काशीदार पत्थरों से बनी वर्षो पुरानी इमारत कभी जानसेनगंज चौराहे की पहचान हुआ करती थी। इसकी कलात्मकता लोगों को एकबारगी आकर्षित करती थी। अब उसका कोई वारिस नहीं है। संपत्ति के मालिक के तौर पर रेखी ब्रदर्स के साथ ही बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद का नाम भी सामने आया। लेकिन कागजात के आधार पर अभी तक किसी का भी मालिकाना हक जानसेनगंज चौराहे पर स्थित इमारत पर साबित नहीं हो सका है।

पं। सीताराम का था कब्जा

इलाहाबाद शहर के इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि जानसेनगंज चौराहे पर स्थित नक्काशीदार इमारत पर आजादी से पहले मोहत्सिमगंज के ही रहने वाले रंगबाज और दबंग पंडित सीताराम का कब्जा था। उनकी 1930 से लेकर 1942 तक इलाहाबाद शहर में तूती बोलती थी। दबंगई और रंगबाजी में उनका अच्छा खासा नाम था। लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। जानसेनगंज चौराहे पर स्थित इमारत पर उन्हीं का कब्जा था। देश की आजादी के बाद कंपनी गार्डेन में पंडित सीताराम की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

एक युवक था केयर-टेकर

पंडित सीताराम को कोई पुत्र नहीं था। लेकिन उन्होंने अपने परिचित युवक को इमारत की देख-रेख का जिम्मा सौंप रखा था। लिखा-पढ़ी में भी उस युवक का ही नाम दर्ज कराया गया था। पं। सीताराम की मृत्यु के पश्चात इमारत के केयर-टेकर ने भवन की जिम्मेदारी एक खत्री परिवार को दे दी, वह भी लिखा पढ़ी में नहीं बल्कि जुबानी।

बदलते रहे मालिकान

करीब 20-25 वर्ष बाद खत्री परिवार ने भी एक महराज को भवन का मालिकाना हक दे दिया। महाराज के बाद एक पूर्व बाहुबली सांसद का वर्षो पुरानी इमारत पर मालिकाना हक हो गया। लेकिन ये मालिकाना हक लिखित नहीं बल्कि मौखिक ही था, इसका कोई भी प्रमाण मौजूद नहीं है।

मालिकान हक का रिकार्ड नहीं

100 वर्ष में इमारत के मालिकान बदलते रहे। मालिकाना हक ट्रांसफर होता रहा, लेकिन ये हक लिखित नहीं बल्कि मौखिक ही था। अगर रिकार्ड और कागजातों की तह में जाया जाए, तो यही निकल कर सामने आता है कि इस पुरानी इमारत के वास्तविक मालिकान का कोई रिकार्ड ही नहीं है। विवादित होने के कारण पं। सीताराम के केयर टेकर द्वारा वर्षो पुरानी इमारत को सरकार को सौंपने की बात कही जा रही है।

स्थिति पर एक नजर

150 साल पुरानी बताई जा रही है बिल्डिंग

03 मंजिला थी ऐतिहासिक बिल्डिंग

03 दिन की कार्रवाई में नहीं आया कोई वारिस

-जानसेनगंज चौराहा स्थित वर्षो पुरानी बिल्डिंग काफी जर्जर हो गई थी। इसे ढहाना बहुत जरूरी था। इसलिए भवन को ढहा दिया गया है। अभी तक इमारत का मालिक सामने नहीं आया है। कागजात के आधार पर अगर कोई व्यक्ति मालिकाना हक साबित नहीं कर सका तो विवादित भूमि सरकारी संपत्ति बन सकती है।

-आलोक पांडेय

प्रवर्तन प्रभारी, एडीए

Posted By: Inextlive