पठानकोट हमले में आतंकियों को ढूंढने के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन में एक गरुड़ कमांडो ऐसा भी था जो 6 गोलियां लगने के बाद भी एक घंटे तक आतंकियों से मोर्चा लेता रहा। ऑपरेशन के दौरान कमांडो गुरुसेवक और शैलभ की नजर झाडि़यों के छिपे आतंकियों पर सबसे पहले पड़ी। जवाबी हमले में गुरुसेवक शहीद हो गए जबकि शैलभ बुरी तरह घायल हो गए।


सेना अस्पताल में चल रहा है इलाजऑपरेशन में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान गरनाल निवासी गरुड़ कमांडो गुरुसेवक सिंह आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। जबकि दलीपगढ़ के दिनेश नगर निवासी गरुड़ कमांडो शैलभ गौड़ आतंकियों की 6 गोलियां शरीर में धंसने के बाद भी एक घंटे तक आतंकवादियों से लोहा लेते रहे। आखिर में शैलभ के कमांडिंग ऑफीसर ने उन्हें गंभीर रूप से घायल देख अस्पताल भेज दिया। शैलभ का पठानकोट सेना अस्पताल में इलाज चल रहा है।मां को है शैलभ की बहादुरी पर गर्व


शैलभ की मां मंजुला गौड़ ने बड़े गर्व से बताया कि उनका बेटा बचपन से ही हर क्षेत्र में अव्वल रहा है। उसने कभी किसी से हार नहीं मानी। वह अपने दादा और पिता की तरह एयरफोर्स में जाना चाहता था। 1 जनवरी को जब पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले की सूचना मिली तो आदमपुर में तैनात गरुड़ कमांडो की यूनिट को पठानकोट के लिए रवाना कर दिया गया।मॉडलिंग का शौक भी

शैलभ के बड़े भाई वैभव ने बताया कि शैलभ को मॉडलिंग का भी शौक है। उसको शुरुआत से जिम का भी शौक है, जिसके कारण वह लंबे चौड़े और गठीले बदन का है। शैलभ ने अपनी स्कूली शिक्षा कैंट के एयरफोर्स स्टेशन में पूरी की। वहीं कालेज की पढाई एसडी कालेज से पूरी की। वह कालेज के दिनों से ही मॉडलिंग का शौक भी रखते हैं।अंबाला में जन्मे हैं गुरुसेवक और शैलभगुरुसेवक सिंह और शैलभ गौड़ का जन्म अंबाला कैंट में हुआ है। दोनों का नाम आज वहां के बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। पंजाब के एक मंत्री ने कहा कि ये अंबाला के लिए फख्र की बात है कि शैलभ और गुरुसेवक जैसे जांबाज यहां की धरती पर पैदा हुए। खास बात यह है कि दोनों गरुड़ कमांडो की उम्र 26 साल है।

Posted By: Prabha Punj Mishra