-पीडब्ल्यूडी का काम कराने वाले ठेकेदारों का नहीं पास हो रहा बकाया भुगतान

- डिप्रेशन की मार झेल रहे 25 से अधिक ठेकेदार

करप्शन रोकने को लेकर योगी सरकार भले ही तेजी और सख्ती दिखाए लेकिन उनके नीचे बैठे मातहतों पर असर नहीं है। पीडब्ल्यूडी में करप्शन की जड़ें बहुत गहरी हैं। इसी का नतीजा है कि अवधेश श्रीवास्तव ने खुद की जान दे दी। ठेकेदारों को अपने कराए गए कार्यो का बकाया भुगतान के लिए अधिकारियों से लेकर बाबूओं तक के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है। नीचे से ऊपर तक चढ़ावा चढ़ाना पड़ रहा है। करोड़ों का भुगतान बकाया होने की दशा में पीडब्ल्यूडी के 25 से अधिक ठेकेदार डिप्रेशन में जी रहे हैं। यदि अब भी भष्ट्राचार पर वार नहीं हुआ तो वो दिन दूर नहीं जब और भी ठेकेदार इसकी भेंट चढ़ जाएं।

परसेंटेज की मारामारी

पीडब्ल्यूडी में ठेका पाने के लिए हर कदम पर रेट फिक्स है। ये ठेका पाने से लेकर भुगतान तक जारी रहता है। कोई भी ठेका हासिल करने के लिए ठेकेदार पहले विभागीय अभियंता से सांठ-गांठ कर पांच से सात प्रतिशत कुल ठेके की कीमत का देकर हासिल करते हैं। ठेका पाने के बाद गुणवत्ता को ताक पर रखकर काम किया जाता है। निर्माण के दौरान ही अगर अभियंताओं को कमाई का और कोई साधन दिख जाए तो ठेकेदार पर दबाव बनाकर उस हिसाब से डिजाइन भी बदल दिया जाता है, जैसा कि अवधेश की मौत के मामले में सामने आ रहा है। यहां निर्माणाधीन अस्पताल का डिजाइन कई बार बदला गया।

15 प्रतिशत देने पर होता है भुगतान

सूत्रों की मानें तो विभाग में कार्य करने के बाद भुगतान पाना भी आसान नहीं होता। पूरा काम करने के बाद हर स्तर पर बाबू से लेकर मुख्य अभियंता तक रेट फिक्स होता है। किसी भी जगह पर चढ़ावे की कमी से भुगतान प्रभावित हो सकता है। इसमें सहायक अभियंता को तीन फीसदी, अधिशासी अभियंता का दो फीसद, अवर अभियंता का पांच फीसद, लेखा बाबू व कैंप कार्यालय बाबू का एक-एक प्रतिशत। इसी तरह बिल बनाने वाले को आधा प्रतिशत देने के साथ ही अवर अभियंता तकनीकी को आधा प्रतिशत और अधीक्षण अभियंता व मुख्य अभियंता को एक-एक फीसद दिया जाता है।

Posted By: Inextlive