Patna : जमाना यूथ का है. उसकी क्षमता और एनर्जी ने एक बार-बार यह साबित किया है कि वह कुछ भी कर सकता है. जेहन में यूथ शब्द के आते ही एक अजीब-सी एनर्जी और जोश का संचार होता है. इस एनर्जी का असर देखना है तो फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री जाकर देख सकते हैं जहां इनके भरोसे पूरे महकमे का दारोमदार है. फिलहाल यहां 41 यूथ काम कर रहे हैं जिनमें 20 गल्र्स हैं.


बदल दिया systemफॉरेंसिक साइंस में पहले जो व्यवस्था थी अब वह बदल चुकी है। सारा काम एक सिस्टम में चल रहा है। एक नहीं दर्जन भर डिपार्टमेंट में बारीकी से काम चल रहा। इसमें यूथ का रोल काफी इंपॉर्टेंट है। आप यहां के किसी भी डिपार्टमेंट में चले जाएं, आपको हैदराबाद, चंडीगढ़ और कोलकाता के सेन्ट्रल फॉरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट से कम नहीं दिखेगा। पहले जहां कोई नजर नहीं आता था वहां अब साइंस की ताकत दिखती है।New technique का जलवा


जिन चीजों के बारे में लोगों को जानकारी नहीं थी अब उस तरह की नयी टेक्निक से हर दिन ये साइंटिस्ट खेलते हैं। सभी डीएनए एनालाइसिस से लेकर कंपैरिजन माइक्रोस्कोप पर बैलिस्टक जांच करते नजर आते हैं। फिंगर प्रिंट से लेकर पॉलिग्राफी टेस्ट में भी इन्हें महारथ हासिल है। यहां काम कर रहे साइंटिस्ट्स की मानें तो डीजीपी अभयानंद की पहल पर कई चीजें यहां अवेलेबल कराई गई हैं। डीएनए टेस्ट के लिए लेटेस्ट मशीने लगवाने से लेकर नया कंपैरिजन माइक्रोस्कोप लाकर टेक्निक को हाईटेक बनाया गया है।हकीकत से रू-ब-रू

आपने फिल्मों और टीवी पर एक कमरे में पुलिस को किसी केस का साइंटिफिक तरीके से इंवेस्टिगेशन करते हुए देखा होगा। ठीक वैसा ही नजारा आप पटना के एफएसएल में देख सकते हैं। बैलिस्टिक सेक्शन में अम्बालिका त्रिपाठी अपने अन्य सहयोगियों के साथ जहां फायर आम्र्स का विश्लेषण करती नजर आती हैं वहीं आरती, प्रियंका, निवेदिता, सीमा सहित कई गल्र्स सेरोलॉजी, हिस्टोपैथोलॉजी, फिजिक्स, केमिकल एनालाइसिस में अपना जौहर दिखा रही होती हैं। इसके साथ एक्सप्लोसिव, वायस स्पेक्ट्रोग्राफी और डीएनए के विश्लेषण में भी प्रभात, मिथिलेश, आशुतोष सहित कई यंग साइंटिस्ट साइंस की ताकत से रू-ब-रू करवाते दिख जाएंगे। पटना ही नहीं अन्य डिस्ट्रिक्ट में भी इनकी टीम जाकर कई मामलों को सुलझाने में पुलिस की मदद कर रही है। Pending casesह्य का था अंबारएफएसएल कुछ महीने पहले तक सिर्फ नाम का था। लेकिन अब इसमें आये बदलाव दिख रहे हैं। कभी 2000 से भी अधिक केस पेंडिंग थे मगर अब यह संख्या नगण्य है। हर महीने करीब 40 के केस को निपटाकर पेंडिंग केसेज को कम किया गया। इसमें इन यंग साइंटिस्ट्स का सबसे बड़ा योगदान रहा। यहां एक टीम बनाकर काम होता है। सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर और साइंटिफिक असिस्टेंट के रूप में काम कर रहे इन लोगों ने कई केस में पुलिस की मदद की है, जिसमें केस ही बदल गया और सक्सेस मिली। अब PO होने लगा develop

पीओ (प्लेस ऑफ ऑक्रेंस) का इंपॉर्टेंस तो पहले से ही था मगर अब और बढ़ गया है। घटना होने के बाद जब फॉरेंसिक टीम पहुंचती है तो कई तरह के विश्लेषण होते हैं। ब्लड स्टेन से लेकर कई तरह के सैम्पल लिये ही जाते हैं साथ ही अपराधियों के फिंगर प्रिंट सहित कई और नई टेक्निक का यूज होता है। डेडबॉडी का भी एनालाइसिस कुछ ही समय में कर देने की क्षमता इस फॉरेंसिक टीम के पास है। आलम यह है कि अब आम पब्लिक भी हत्या, लूट या चोरी होने पर फॉरेंसिक टीम बुलाने की बात करती है। यानि विश्वास का दायरा बढ़ता जा रहा है। इन विभागों में डाल दी गई जान 1. हिस्टोपैथोलॉजी : इस डिपार्टमेंट के तहत कॉज आफ डेड का पता लगाया जाता है। आखिर मौत क्यों हुई। इससे केस के डिटेक्शन में आसानी होती है।2. वायस स्पेक्ट्रोग्राफी : फोन पर कोई धमकी के केस को सुलझाने में मदद। वायस रिकार्ड कर फ्रिक्वेंसी मैच कराया जाता है जिससे क्लीयर होता है कि धमकी देने वाला एक ही व्यक्ति है।3. सेरोलॉजी : इसके तहत ब्लड, सीमेन की जांच होती है। इससे यह भी क्लीयर हो जाता है कि पीओ पर गिरा खून किसका है। आदमी का या फिर किसी जानवर का।
4. एक्सप्लोसिव्स : बम विस्फोट होने के बाद उसका मलवा पीओ से एफएसएल भेजा जाता है। इसके तहत यह पता किया जाता है कि आखिर बम में कौन-कौन सा केमिकल या पाउडर यूज किया गया था। आरडीएक्स का यूज हुआ या फिर कंट्री मेड सामान का। 5. बैलिस्टिक : इस डिपार्टमेंट में फायर्ड आम्र्स की बारिकी से पड़ताल की जाती है। हर आम्र्स का फायरिंग प्रिंट मार्क अलग-अलग होता है। खोखा की जांच से भी पता चल जाता है जिस आम्र्स से यह फायर हुआ है। वह और किसी घटना में भी तो यूज नहीं हुआ।6. टॉक्सिकोलॉजी : मरने वाले ने जहर तो नहीं खाया। अगर खाया तो कौन सा केमिकल यूज हुआ। यह पता लगाया जाता है। इसमें बेसरा की जांच की जाती है। मौत शराब पीने से हुई हो तो उसे भी इसी डिपार्टमेंट के तहत जांच की जाती है।7. फिजिक्स : पटना एफएसएल में फिजिक्स का एक अलग ही डिपार्टमेंट है। इसमें फेक करेंसी की जांच के अलावा, गाडिय़ों के चेचिस, इंजन नम्बर सहित कई चीजों का वेरिफिकेशन किया जाता है। 8. केमिस्ट्री : इस डिपार्टमेंट में खास तौर से चरस, गांजा, हेरोइन सहित कई चीजों की जांच की जाती है।
9. डीएनए टेस्ट : कुछ ही दिन हुए पटना एफएसएल में भी मशीन इंस्टॉल कर दी गई। लेटेस्ट मशीन के जरिये ब्लड और बॉडी के अन्य पाट्र्स के जेनेटिक कोड को मैच कराया जाता है। यह इंवेस्टिगेशन के क्षेत्र में एक क्रांति से कम नहीं जिससे फिलहाल पटना महरूम था। पहले डीएनए टेस्ट के लिए पटना से बाहर सैम्पल भेजा जाता था। कई केसों में की मदद1. दुल्हिन बाजार में सिर काटकर हत्या की बात सामने आई। भाई पर ही आरोप लगा, लंकिन साबित कैसे हो? एफएसएल की टीम ने पीओ का इंवेस्टिगेशन किया और यह पता लगा लिया कि हत्या घर में ही हुई। हत्या करने वाले हथियार भी बरामद किये। खून मृतक का है यह भी डिटेक्ट हो गया। ऐसे में एफएसएल की ताकत से ही इस केस को खोलने में पुलिस को मदद मिली।2. पाटलिपुत्रा के इंन्द्रपुरी ट्रिपल मर्डर केस में भी एफएसएल टीम ने कई तरह की जानकारी पुलिस को पहले ही दे दी। जैसे पोस्टमार्टम होने से पहले ही यह पता चल चुका था कि हत्या कितनी देर पहले हुई थी। इसमें फॉरेंसिक टीम ने एनल टेम्परेचर का यूज किया था। पुलिस को पहले ही पता चल गया कि हत्यारा अपना ही कोई है। इस केस में सीनियर एसपी अमृत राज ने भी एफएसएल की सराहना की थी।3. कटिहार के पोठिया में भी एक एक युवती के साथ रेप का मामला सामने आया। आरोपी ने घटना में संलिप्तता से इंकार कर दिया। एफएसएल की टीम ने पहुंचकर पड़ताल शुरू की। आखिरकार कपड़ों पर लगे सीमेन के स्टेन और ब्लड सैप्पल से यह साबित हुआ कि रेप उसने की किया है। बाद में उसने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया।Satisfaction is better than successयह जॉब एडवेंचरस है। एक अलग फील होता है। लोगों को जस्टिस दिलवाने में मदद करते हैं। शुरू से ही इसी काम में जाना था। एमएससी भी फॉरेंसिक साइंस में किया। नेट क्वालिफाई भी इसी सब्जेक्ट में की। इलाहाबाद की हूं, ढाई साल तक कोलकाता सेन्ट्रल लैब में काम किया। अब पटना में बहुत अच्छा लग रहा।अम्बालिका त्रिपाठी, सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर, एफएसएल।रेलवे की नौकरी छोड़ दीइस काम का अलग ही मजा है। मेरी नजर में ग्लैमरस जॉब यह भी है। पहले रेलवे में फूड इंस्पेक्टर था। इससे पहले कोचिंग में पढ़ाता भी था। साइंस कॉलेज से एमएससी की। इस काम में सैटिसफैक्शन मिलता है। यहीं का हूं यहां मन लग रहा है। प्रभात कुमार, साइंटिफिक असिस्टेंट, एफएसएल।rajan.anand@inext.co.in

Posted By: Inextlive