ठंड के दिनों में गर्म कपड़ों के बाजार में भी मंदी

नोटबंदी के असर से तिब्बती शरणार्थियों के चेहरे मुरझाए

ALLAHABAD: नोटबंदी पर पीएम नरेन्द्र मोदी की सर्जिकल स्ट्राइक की मार हर वर्ग इससे परेशान नजर आ रहा है। भारत में शरण लिए दूसरे देशों के लोग भी इस दर्द से जुदा नहीं हैं। ठंड के दिनों में इलाहाबाद में गर्म कपड़े बेचने आने वाले तिब्बती शरणार्थियों का कुछ ऐसा ही हाल नजर आ रहा है। नोटबंदी का असर जानने आई नेक्स्ट रिपोर्टर भी रिफ्यूजी मार्केट में पहुंचा तो वहां का मीटर डाउन नजर आया।

पुराने नोट स्वीकार नहीं होंगे

मार्केट में घुसते ही जो सबसे पहला सीन नजर आया। वह यह था कि लकड़ी के हर दूसरे खम्भे पर तिब्बती शरणार्थियों ने लिखकर टांगा हुआ था कि 1000 और 500 के नोट स्वीकार नहीं किये जाएंगे। ऐसे में मार्केट का रंग भी फीका दिखा। हर दूसरी दुकान ही ऐसी रही, जहां इक्का दुक्का लोग नजर आ रहे थे। अमूमन तिब्बती शरणार्थियों की मार्केट में ऐसा नजारा नहीं दिखता। क्योंकि, इनके कपड़े बजट में होते हैं और ठंड के दिनो के लिए परफेक्ट माने जाते हैं। यही कारण है कि इलाहाबादी इन्हें हाथों हाथ लेते हैं।

हर साल कमाते थे तगड़ा मुनाफा

मार्केट में सन्नाटे की अहम वजह बड़ी नोट का न चलना है। ऐसे में एक तो छुट्टे पैसे के अभाव में लोग पहुंच नहीं रहे और दूसरा यह कि लोगों के पास मोटे गर्म कपड़े खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे भी नहीं है। बता दें कि सिविल लाइंस में रायल होटल के पास लगने वाली इस मार्केट के ग्राहक ज्यादातर आम मध्यम वर्गीय परिवार के लोग ही होते हैं। इस बावत शरणार्थियों का कहना है कि उनके पास अच्छा खासा स्टॉक है। ऊपर से इलाहाबाद में दुकान लगाने के खर्च को भी पूरा करना है। यहां से हर बार वे अच्छा मुनाफा कमाकर ले जाते थे। लेकिन अबकी बार तो लग रहा है कि घाटा ही सहना पड़ेगा।

हमारे लोगों में ज्यादातर हिमाचल प्रदेश और साउथ इंडिया से आये हैं। बिक्री न हुई तो हमारा काफी नुकसान होगा। ऐसा लग रहा है कि इलाहाबाद आना पहली बार घाटे का सौदा होगा।

एन थ्रिंग

यहां नवम्बर की शुरुआत में आये थे। आठ नवम्बर को पीएम ने घोषणा कर दी। ऐसे में दुकानदारी बढ़ ही नहीं पा रही। ग्राहक भी इससे निराश हैं।

थ्रिंग

नवम्बर का आधा महीना बीत चुका है और लगता है पूरा दिसम्बर भी ऐसे ही निकलेगा। हमें जनवरी के लास्ट तक वापस भी लौटना है।

कालदिन

कस्टमर के पास पैसों की काफी कमी हो गई है। उन्हें बैंक से काफी कम पैसे मिल रहे हैं। ऐसे में उन्होंने मार्केट से भी किनारा कर रखा है।

जम यंग

कुछ लोग हैं जो दो हजार की नोट लेकर आ रहे हैं। हमारे पास भी फुटकर पैसे का अभाव है। ऐसे में दो हजार की नोट तोड़ना भी मुश्किल है।

पूजा

अब पांच सौ की नोट मार्केट में आये तो कुछ काम बने। लेकिन लोगों के पास पांच सौ के नये नोट नहीं हैं और पुराने नोट हम ले नहीं सकते।

सारा

शरणार्थियों का तो सबकुछ सरकार पर ही निर्भर होता है। हमें कमाने खाने की काफी दिक्कत होती है। ऐसे में हमपर तो छोटी सी चीज भी भारी पड़ती है।

कौशिला

हमें उम्मीद है कि सिचुएशन बहुत जल्द बदलेगी। अपनी तरफ से हमारी पूरी कोशिश है कि लोगों को कम से कम बजट में बेहतर से बेहतरी चीज प्रोवाईड करवाई जाये।

तेन्जिन लमसंग

अब यह सरकार का फैसला है जोकि हमें सही लगता है। पीएम ने इससे सबको मिलकर लड़ने की बात कही है तो हम भी उसका एक हिस्सा हैं।

चोकफेल

Posted By: Inextlive