दुनिया में जैसे-जैसे परिष्कृत साइबर-हमले बढ़ रहे हैं वैसे ही बढ़ रही है इन्हें रोकने में सक्षम लोगों की मांग. साइबर-छानबीन के क्षेत्र में अब नित नई नौकरियां आ रही हैं.


लेकिन अगली पीढ़ी के साइबर-कॉप्स (पुलिसकर्मी) बनने के लिए पर्याप्त दक्षता वाले लोग कम हैं.अमरीका के श्रम सांख्यिकी विभाग के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार स्नातक स्तर के सूचना सुरक्षा कर्मचारियों की मांग अगले दशक तक 37% बढ़ जाएगी. यह पूरे कंप्यूटर उद्योग में वृद्धि की अनुमानित दर से दोगुनी है.अमरीकी श्रम विभाग का अनुमान है कि "सूचना सुरक्षा विश्लेषक की मांग बहुत ज़्यादा होने वाली है."इस अंतर को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र की फ़र्में और सरकारें विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर काम कर रही हैं.इस कोशिश में आईबीएम का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट भी शामिल है जिसमें वह 200 विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करेगी ताकि विशेषज्ञता की कमी को पूरा किया जा सके.बेहद तेज बदलावअमरीकी विश्वविद्यालयों के अलावा प्रतिभा-विकास प्रोजेक्ट सिंगापुर, मलेशिया, जर्मनी और पोलैंड के छात्रों को भी शामिल कर रहा है.


आईबीएम की साइबर-सुरक्षा नवोत्पाद (इनोवेशन) विभाग की उपाध्यक्ष मारिसा विवेरॉस कहती हैं कि यह बदलती "खतरे की परिस्थिति" से निपटने की तैयारी है.वह कहती हैं कि क्लाउड और मोबाइल कंप्यूटिंग में वृद्धि ने ख़तरे को और बढ़ा दिया है. अब पहले के मुकाबले ज़्यादा जटिल हमलों की कोशिशें की जा रही हैं.

हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय की वेबसाइट को 'सीरियन इलेक्ट्रॉनिक आर्मी' ने हैक कर लिया था.इसके अनुसार शिक्षा पर ख़तरा रिटेल, उपभोक्ता सामान और टेलीकम्युनिकेशन्स के मुकाबले ज़्यदा है.शिक्षा से ज़्यादा ख़तरा सिर्फ़ सरकारों, कंप्यूटर सेवाओं, वित्तीय संस्थानों और मीडिया फ़र्मों पर है.अगर उन पर हमला होता है तो इससे बहुत ज़्यादा संख्या में लोग प्रभावित होते हैं. पिछले महीने मैरीलैंड विश्वविद्यालय पर एक "परिष्कृत साइबर-हमला" हुआ था जिसमें 2,87,000 वर्तमान और पुराने विद्यार्थियों के रिकॉर्ड में सेंध मारी गई थी.यह एक समानांतर छाया संसार है जिसमें हल्का सा वैज्ञानिक साहित्य जैसा अनदेखा ख़तरा भी है. इसिलए आईबीएम के पास नवीनतम ख़तरों की निगरानी के लिए अपनी "एक्स फ़ोर्स" है.एक्स फ़ोर्स की ताज़ा त्रैमासिक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल ईमेल, क्रेडिट कार्ड पासवर्ड जैसे 50 करोड़ निजी रिकॉर्ड्स लीक हो गए थे.सबसे ताज़ा चलन है "मालवर्टाइज़िंग", जिसमें ऑनलाइन विज्ञापनो को कंप्यूटर पर ख़तरनाक हमलों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.इसके अलावा "स्पीयर फ़िशिंग" भी है जिसमें ख़ास लोगों या संगठनों से गोपनीय जानकारी हासिल करने के लिए उन्हें निशाना बनाकर फर्जी ईमेल भेजी जाती हैं.रिपोर्ट के अनुसार 20 में से एक हमले में तथाकथित "वॉटरिंग होल" रणनीति का इस्तेमाल किया जाता है.'चलता रहेगा'

इसमें संस्थान के नेटवर्क में सीधे सेंध लगाने के बजाय ऐसी वेबसाइट्स को निशाना बनाया जाता है जिन्हें लोग नियमित रूप से देखते हैं. इसका उद्देश्य यह होता है कि कंप्यूटर को वायरस से दूषित किया जाए और इससे अनजान यूज़र उस वायरस को अपने नेटवर्क में ले आता है.दक्षिण कैरोलिना विश्वविद्यालय के डॉ हैरिस कहते हैं कि साइबर हमलावर इससे भी ज़्यादा जटिल खतरे पैदा कर रहे हैं.वह कहते हैं, "मैंने देखा है कि कैसे वह परिष्कृत होते जा रहे हैं. वह महीनों एक रणनीति पर काम करते हैं, बाहरी वेबसाइटों के ज़रिए कमज़ोर कड़ियां ढूंढते हैं और पिछले दरवाज़े की तलाश करते हैं."आईबीएम की विवेरॉस कहती हैं, "यह एक दौड़ की तरह है. सिस्टम बेहतर होता है, फिर हैकर्स इसे समझते हैं और इसे पकड़ने की कोशिश करते हैं. एक समस्या होने के चलते यह चलता रहेगा."

Posted By: Satyendra Kumar Singh