जमशेदपुर: स्टील सिटी में दिनों दिन साइबर क्राइम की घटनाओं से बैंक खाता धारकों को हर वक्त चोरी और धोखाधड़ी का डर सताने लगा है. शहर में हर दिन आ रहे साइबर क्राइम के मामलों में एक्का-दुक्का को छोड़कर 90 प्रतिशत से ज्यादा मामले में पुलिस के हाथ खाली हैं. इससे साइबर थाने में शिकायतों का अंबार लगता जा रहा है, लेकिन पीडि़तों को न्याय नहीं मिल पा रहा है. बताते चलें कि दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने साइबर केसों की पड़ताल की तो पीडि़तों का दर्द छलक उठा. आदित्यपुर निवासी अशोक कुमार को लगभग एक साल बाद भी पैसा वापस नहीं मिला है. अपनी गाढ़ी कमाई का रुपया गंवाने वाले पीडि़त अपना पैसा पाने के लिए बैक और साइबर थानों का चक्कर काट रहे है.

चोर हाईटेक, पुलिस बिना संसाधन

साइबर क्राइम के मामले में थाने के पास कोई भी इलेक्ट्रानिक उपकरण नहीं है, जिससे हैकर का मोबाइल नंबर आदि ट्रेस किया जा सके. जिसके चलते 90 प्रतिशत मामले पेडिंग पडे़ हुए है, डीएसपी कार्यालय में इंस्पेक्टर के लिए गाड़ी भी न होने के चलते मामले की इंवेस्टीगेशन के लिए कर्मचारियों को अपने साधन से ही जाना पड़ता है. विभाग ने एक मात्र वाहन डीएसपी साइबर क्राइम को दिया है, साइबर इंस्पेक्टर ने बताया कि ज्यादातर मामले कार्ड बदलने, क्लोन कार्ड बनाने, पिन पूछने और पैसा डिटेक्ट होने के आते है, ऐसे मामले में मोबाइल नंबर ही मिलता है, जिसके वैरीफिकेशन के लिए दूसरे जिले या राज्य में जाना होता है, ज्यादातर केसो में घटना को अंजाम देने के बाद हैकर मोबाइल नंबर बंद कर देते है, वैरीफिकेशन करने पर यह नंबर किसी और का मिलता है. यह सिम फेक आईडी से लिये जाते है. 9 स्टाफ के भरोसे थाना

जिले की 23 लाख की जनसंख्या पर महज नौ कर्मचारियों के सहारे साइबर थाना चल रहा है. जिनमें एक कंप्यूटर ऑपरेटर, एक सहायक और डीएसपी शुश्री कुजूर है. ऐसे में इंस्पेक्टर और दो एसआई मिलाकर कुल छह लागों की टीम है. नियम के अनुसार दो लाख रुपये से अधिक धोखाधड़ी के मामले ही साइबर थाने में दर्ज किए जाते है, लेकिन थानों द्वारा मामले दर्ज न किए जाने के चलते लोग साइबर थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा रहे है. इंस्पेक्टर ने बताया कि कर्मचारियों की संख्या कम होने और संसाधनों की कमी के चलते मामलों का निपटारा नहीं पा रहा है.

बैंक स्टाफ नहीं कर रहे सपोर्ट

साइबर क्राइम की ठगी के शिकार खाता धारकों को बैक अधिकारियों का सहयोग न मिलने से परेशान है आदित्यपुर फाइनेंस कंपनी के कर्मचारी अशोक कुमार ने बताया कि ऐसे मामले में बैक अधिकारी बात भी नहीं करते है, जब खाता आपकी शाखा में तो दूसरी शाखा के लोग क्यों सुनेंगे. वही दूसरी ओर पुलिस भी मामले को सीरियस नहीं लेती है. बैक अधिकारी एफआईआर की कॉपी मांगते है, वहीं पुलिस भी मामले को मजाक की तरह लेती है.

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आंकड़े चौंकानेवाले

पिछले तीन माह के मामले में नजर डाले तो 59 साइबर मामले पंजीकृत किए गये है, जिनमें 1.50 करोड़ से ज्यादा रुपये की ठगी हुई है. इन केसों पर नजर डाले की 9 मामलों में ही पुलिस के हाथ मोबाइल नंबर हाथ लगा. लेकिन वेरीफिकेशन करने पर फेक आईडी से खरीदा सिम मिला. शहर मे साइबर के मामलों पर नजर डाले तो 2013 में जहां महज दो मामले थे वहीं 2016 में बढ़कर 112 हो गये, 2017 में 166, 2018 में 176 तो मई 2019 तक 223 मामले रंजीस्टर्ड किये जा चुके है.

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साइबर क्राइम के कुछ मामले

-मारुति सुजुकी के स्थानीय डीलर पेबको मीटर मारुति के मालिक का जाली चेक बनाकर आठ लाख रुपये उड़ाये गये

-फाइनेंस कंपनी के पूर्वकर्मी अशोक कुमार के आधार का दुरुप्रयोग कर खाते से निकाले 1.22 लाख रुपये

-15 जनवरी को कदमा के रोशन कुमार ने ओएलएक्स से एक कार बुक कर एक अकांउट में 30 हजार का एडवांस कर दिया वहां पहुंचने पर मोबाइल बंद मिला, आज तक पैसा नहीं मिल सका

-गूगल एक्ट्रा के माध्यम से मानगो आजाद नगर निवासी एम के रहमान के खाते से पांच दिनों में 74 हजार रुपये की ठगी हो गई. बैक और साइबर क्राइम से कोई भी निर्णय नहीं हुआ.

-सात अगस्त को स्वर्णरेखा परियोजना में जेई उज्जवल कुमार दास की गिरफ्तारी पुलिस ने की थी, उज्जवल ने बताया कि हर दिन वह 90 हजार की हेराफेरा करता है, दो दिन पहले उसने बिग बजार से 25 हजार की शापिंग की थी, शक के आधार पर पुलिस ने किया था गिरफ्तार जामाताड़ा से जुडे मिले थे तार

-बारीडीह के टाटा वर्कर्स फ्लैट निवासी अंजलि एक्का के खाते से हैकरों ने निकाले 32 हजार अभी तक पीडि़त को नहीं मिले पैेसे

वर्जन

स्टॉफ और उपकरण की कमी होने के चलते कुछ ट्रिपिकल मामलों में सफलता नहीं मिल पाती है. शहर के थानों से सहयोग मिले तो केसों को उद्भेदन करने में आसानी होगी. साइबर मामले आम मामलों से अलग है. इसलिए एक मामले को सुलझाने में अधिक समय लग जाता है. टीम मिलकर काम कर रही है जल्द ही पीडि़तों को न्याय मिलेगा.

सुश्री कुजूर, डीएसपी, साइबर क्राइम, जमशेदपुर

Posted By: Kishor Kumar