Meerut : नन्हीं तूलिका अपनी क्लास की खिडक़ी से देखा कि उसके स्कूल से बड़ी क्लास के बच्चे एक रैली लेकर जा रहे हैं. उनके हाथों में बैनर पोस्टर थे. किसी पर लिखा था ‘हैंग द रेपिस्ट’ तो किसी पर लिखा था ‘मेरी स्कर्ट से ऊंची मेरी आवाज है’. तूलिका को समझ नहीं आ रहा था माजरा क्या है. वो टीवी पर भी कई दिनों से यही सब देख रही थी. नन्हीं तूलिका ने घर जाकर अपनी मम्मी से मासूम सवाल किया कि मम्मा ये रेपिस्ट कौन है? बच्ची के सवाल पर मां को समझ नहीं आया कि वो कैसे शब्दों में बेटी के सवालों का जवाब दें. ऐसे ही कई मासूम सवाल छोटे-छोटे बच्चे अपने घर वालों से पूछ रहे हैं.


हर जगह दामिनी और रेपिस्टछोटे बच्चे इन दिनों दो शब्द हर जगह देख रहे हैं रेप और रेपिस्ट। अखबारों से लेकर टीवी हर जगह यही शब्द छाए हैं। हर न्यूज चैनल इंडिया गेट पर दामिनी को न्याय दिलाने और बलात्कारियों को फांसी की मांग करते प्रदर्शनकारियों पर लाठियां भांजती पुलिस दिखा रहा है। देश का हर स्कूल, कॉलेज दामिनी के समर्थन में रैलियां कर रहा है। कैंडिल मार्च और हवन के द्वारा दामिनी की मौत पर शोक जताया जा रहा है। बच्चे भी ये सब देख रहे हैं और समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर हुआ क्या है। लेकिन पेरेंट्स नन्हे-मुन्ने बच्चों को रेप और रेपिस्ट के बारे में बता भी तो नहीं सकते, क्योंकि वे जिस उम्र में हैं उसमें इन सब चीजों को समझना मुश्किल है।विजुअल इम्पैक्ट


बच्चा जिस तेजी से रटकर किसी चीज को याद करता है उससे पांच गुना तेज बच्चा विजुअल्स को याद रखता है। इसीलिए स्कूलों में ईजी लर्निंग मेथड के लिए स्मार्ट क्लासेज का यूज किया जा रहा है। इसी विजुअल लर्निंग का निगेटिव इफैक्ट बच्चों के दिमाग पर टीवी, मैग्जीन, न्यूजपेपर आदि से पड़ता है। घटनाएं जो यादगार बन गईं- दिल्ली गैंग रेप केस - मुंबई पर आतंकी हमले की कवरेज-अन्ना का आंदोलन

-गुवाहाटी में छेड़छाड़ का मामला-अरविंद केजरीवाल के खुलासे-एनडी तिवारी का डीएनए टेस्ट-कसाब को फांसी-गीतिका-गोपाल कांडा केसजिद करनाअक्सर जब बच्चे अपनी उम्र से बड़े सवाल पूछते हैं तो पेरेंट्स उन्हें या तो डांट देते हैं या उनके सवालों को टालकर उन्हें किसी और काम में लगा देते हैं। मगर इस तरह बच्चे दिमाग में आए सवाल शांत नहीं होते और वो उन सवालों के जवाब ढूंढने दूसरे तरीकों से ढूंढने लगते हैं। कई बार उसे सही जानकारी तो मिल जाती है, मगर वो जानकारी उसकी उम्र के हिसाब से मोल्ड नहीं होती।फ्रीडम की डिमांडकई बार बच्चों के सवालों के जवाब दे पाने में पेरेंट्स सक्षम नहीं होते। पेरेंट्स चाहते हैं कि बच्चा ऐसे सवाल कुछ समय बाद पूछे, मगर बच्चा ऐसा नहीं कर सकता। उसे फील होने लगता है कि उसको बंदिशों में रखने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में बच्चा फ्रीडम की तलाश में रहता है। ये फ्रीडम उसे किस तरह से मिले ये पेरेंट्स अक्सर मालूम नहीं कर पाते।कैसे करें बच्चों से बात-जब भी बच्चे कोई ऐसा सवाल पूछें जो उनकी उम्र के हिसाब से बहुत बड़ा हो तो उन्हें सच बताएं मगर वो सच सरल भाषा में हो।

-आप बच्चों के सामने क्या देख रहे हैं और क्या डिसकस कर रहे हैं इस बात का जरूर ध्यान रखें।-बच्चों को अच्छा और बुरा समझाएं। -बच्चे को अपनी सुरक्षा के बारे में बताएं। उसे विश्वास में लें कि कुछ गलत लगने पर वो अपने मम्मी-पापा को जरूर बताए।-बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है, ये जानने के लिए कुछ समय बच्चे के साथ जरूर बात करें।-अगर कोई ऐसी चीज बच्चे के सामने बार-बार आ रही है, जिसे समझाना आपके लिए मुश्किल है तो बच्चे के सामने से वो न्यूजपेपर, चैनल और मैग्जीन आदि हटा दें।बच्चे बहुत इनोसेंट होते हैं वे आपकी हर बात पर यकीन करते हैं। इसलिए उसकी उम्र के हिसाब से सच को मोल्ड करके बताएं। बच्चे के सवालों का जवाब झुंझलाकर न दें, बल्कि उसे प्यार से अपने पास बैठाकर समझाएं।-डॉ। वंदना शर्मा, चाइल्ड साइक्लोजिस्ट

Posted By: Inextlive