बुंदेलखंड के मिनी चंबल चित्रकूट के बीहड़ में तीन दशक तक समानांतर सरकार चालाने वाला डकैत ददुआ जीवित रहते किसी अपने को सांसद या विधायक तो नहीं बना सका लेकिन समाजवादी पार्टी सपा ने उसकी मौत के बाद यह हसरत पूरी कर दी. ददुआ का भाई पहले ही मिर्जापुर से सांसद हैं अब बेटा और भतीजा विधायक बन गए हैं. प्रचंड़ बहुमत से बनने वाली प्रदेश सरकार में इस परिवार का रुतबा जरूर कायम होगा.


बुंदेलखंड के चित्रकूट जनपद का पठारी इलाका मिनी चंबल के नाम से चर्चित है. इस बीहड़ में पांच लाख रुपये के इनामी दस्यु सरगना ददुआ के एक फरमान पर तीन दशक तक एक दर्जन विधायक व कम से कम तीन सांसदों का चुनाव होता था. चर्चा तो यहां तक रहती थी कि राजनीतिक दल ददुआ के इशारे पर ही टिकटों का वितरण करते थे. यही वजह थी कि कभी वामपंथ तो कभी बसपा से रामसजीवन कई बार विधायक व सांसद चुने गए. औंरों को चुटकी बजा कर 'माननीय' बनाने वाले ददुआ ने अपने परिवार को यह ओहदा तो नहीं दे पाया, अलबत्ता 2005 में अपने बेटे वीर सिंह को निर्विरोध चित्रकूट जिला पंचायत का अध्यक्ष और साले फूलचंद को मानिकपुर का ब्लॉक प्रमुख बनाने में सफल रहा.


ददुआ परिवार का राजनीति में प्रवेश 2002 के विधानसभा चुनाव से उस समय हुई, जब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इलाहाबाद के करछना सीट से उसके सगे छोटे भाई बालकुमार को सपा के कुंअर रेवती रमण सिंह (अब सपा सांसद) के खिलाफ मैदान में उतारा. हालांकि वह चुनाव तो नहीं जीत सके, पर राजनीति का 'ककहरा' जरूर सीख गए.

वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बालकुमार सपा में शामिल हो गए और प्रतापगढ़ की पट्टी विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, यहां भी वह असफल रहे. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में वह मिरजापुर क्षेत्र से चुनाव लड़ कर सपा के सांसद हो गए.इस विधानसभा चुनाव में जहां ददुआ का बेटा वीर सिंह धर्म नगरी चित्रकूट की कर्वी सदर सीट से विधायक बने हैं, वहीं सांसद बालकुमार का बेटा (ददुआ का भतीजा) प्रतापगढ़ की पट्टी से धमाकेदार जीत दर्ज की है. कुंड़ा (प्रतापगढ़) से विधायक  रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया ददुआ परिवार के प्रबल समर्थक माने जा रहे हैं.अब जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनने जा रही है, इसमें कहना गलत न होगा कि दस्यु ददुआ परिवार का बेधड़क रुतबा कायम होगा. कर्वी से विधायक चुने गए वीर सिंह का कहना है कि 'उनके पिता ने  मजबूरी में बीहड़ का रुख किया था, वह मरते दम तक लोगों के बीच बेहद लोक प्रिय रहे, इसका सबसे बड़ा सबूत चाचा का सांसद व हम दोनों भाइयों का एक साथ विधायक चुना जाना है.' वह कहते हैं कि 'लोगों की उम्मीद पर यह 'उम्मीद की साइकिल' खरा उतरेगी.'

Posted By: Kushal Mishra