PRAYAGRAJ: महिलाओं या लड़कियों के साथ कोई मिसबिहैव करता है तो उसकी शिकायत करने के लिए संबंधित महिला को थाने पर पर जाने से पहले दस बार सोचना पड़ता है. उन्हें डर लगता है कि पुरुष पुलिस अधिकारी या दरोगा से कैसे अपनी शिकायत दर्ज कराई जाए. थाने पर या पुलिस की पिकेट में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या न के बराबर होने की वजह से हमारी आजादी कहीं न कहीं सिस्टम की बाधा का शिकार हो जाती है. यह बातें मीरापुर स्थित पंजाबी कालोनी में आयोजित दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के मिलेनियल्स स्पीक में महिलाओं ने कही.

धरातल पर नहीं योजनाओं का असर

महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिए जाने की बातें चुनावी घोषणापत्र का मुद्दा बनती रही हैं. लागू अभी तक नहीं हुआ है लेकिन बातें हमेशा महिलाओं को सशक्त करने की होती हैं. जो योजनाएं महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बनाई जाती हैं उनका धरातल पर असर नहीं दिखता है. एंटी रोमियो स्क्वॉयड इसका जीता-जागता उदाहरण है. सरकारों की मंशा भले ही अच्छी हो लेकिन नीचे तक सिस्टम में इतना छेद है कि शहर हो या गांव हर जगह दूसरे तीसरे दिन छेड़खानी की खबरें अखबारों में दिख जाती हैं.

रोजगार की हालत बदतर

दशकों से देश में रोजगार की हालत बद से बदतर होती गई है. इसकी सबसे बड़ी वजह आरक्षण है. आरक्षण ने इस देश की प्रतिभाओं का सत्यानाश कर दिया है. दीपक मक्कड़ ने बताया कि हमारे देश में प्रतिभाओं की कद्र नहीं होती है. जो आर्थिक रूप से सक्षम है वो अपने बच्चों को विदेश भेज देते हैं.

छेड़खानी को लेकर एक स्त्री स्वाभाविक रूप से थाने पर जाकर पुरुष अधिकारी से खुलकर अपनी बातें नहीं बता सकती है. उसे लगता है कि तरह-तरह की बातें पूछी जा सकती हैं. इसकी वजह से लड़कियों में दहशत घर करने लगती है, जिसका असर उसके भविष्य पर पड़ता है.

मीनू मक्कड़

महिला सुरक्षा को लेकर सरकारों की बहुत सी योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन सिस्टम उसे फॉलो नहीं करना चाहता है. यूपी में एंटी रोमियो स्क्वॉयड को ही देख लीजिए. तीन-चार महीने खूब चर्चा हुई. अब कहीं पर भी इसका नाम लेने वाला कोई नहीं है.

राखी मेहरोत्रा

थानों पर एक महिला अधिकारी को रखना ही चाहिए. इसके अभाव में समाज में छेड़खानी या बदतमीजी करने वालों के हौसले बुलंद हो जाते हैं. पुरुष अधिकारी से एक महिला अपने दर्द को नहीं बया कर सकती है. अक्सर ऐसे कई वाकए समाचार पत्रों के माध्यम से दिखाई पड़ जाते हैं.

अंजू

योजना बनाने और उसका ढिंढोरा पीटने से कुछ नहीं होता है. दुर्भाग्य की बात है कि इस देश में इसका चलन बढ़ता ही जा रहा है. अगर सरकार योजना बनाते समय ही उसकी मॉनीटरिंग की भी रूपरेखा तय करती तो देश की दिशा बहुत हद तक बदल जाती.

ईश्वर दत्त मल्होत्रा

इस देश में मूलभूत सुविधाओं के लिए आज भी जनता को जूझना पड़ रहा है. रोजगार देने और महिला सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. राजनैतिक पार्टियां इसकी सबसे बड़ी दुश्मन हैं. उनका ध्यान सिर्फ वोट हासिल करके सत्ता बनाना होता है. सत्ता बनते ही सब अपने हिसाब से काम करने लगते हैं.

राकेश कुमार

देश की आबादी की वजह से सरकारी सेक्टर में रोजगार समाप्त होता जा रहा है. इंडस्ट्री को लेकर सिर्फ बातें होती हैं. ये आज का विषय नहीं है. यह समस्या दशकों से चली आ रही है. इस मुद्दे पर राजनैतिक दलों के पास इच्छाशक्ति नहीं है उन्हें सिर्फ सरकार बनाने से मतलब रहता है.

ज्योति

Posted By: Vijay Pandey