चारों ओर खड़ी ऊँची रिहायशी इमारतों की परछाईं में बसा है मोहीउद्दीनपुर कनावनी गाँव. गाँव में घुसते ही पहला सामना बड़ी-बड़ी गाड़ियों की कत़ार से होता है.


अगले कुछ पलों में हथियारबंद पुलिसवालों की भारी मौजूदगी 'तनावग्रस्त शांति' का अहसास कराती है. गाँव के मुहाने पर ही उस युवक का घर है जिसकी बीते मंगलवार संपत्ति विवाद को लेकर हुई हिंसा में मौत हो गई थी.बंगलेनुमा घर के बड़े आँगन में संवेदना व्यक्त करने पहुँचे गुर्जर समुदाय के लोग जुटे थे. आँगन में ही ऑडी, फॉर्च्यूनर, एंडेवर जैसी गाड़ियाँ परिवार की आर्थिक संपन्नता का प्रमाण दे रहीं थी. पीछे घर से रह-रहकर आ रही महिलाओं के विलाप की आवाज़ों ने माहौल को और ग़मगीन बना दिया था.
घटना के बारे में पूछने पर मृतक राहुल के भाई ने बताया, "अभी गाँव की प्रधानी हमारे परिवार के पास है. पहले यह जाटवों के पास थी. उस दौरान उन्होंने कुछ सरकारी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा कर लिया था जिसके ख़िलाफ़ मृतक के पिता ने हाईकोर्ट में केस किया था. तब से ही रंजिश थी जिसमें हमारे भाई की हत्या कर दी गई."


जिस युवक राहुल की मौत हुई है वह गुर्जर समुदाय से है और हत्या का आरोप दलितों पर है. 23 वर्षीय राहुल की मौत के बाद गुर्जर समुदाय ने कुछ दलित परिवारों के घरों पर हमला किया था और वाहनों में तोड़फोड़ की थी. कुछ दलित परिवारों ने बदले की हिंसा के डर से गाँव छोड़ दिया है. दलितों के किराएदार भी मकान छोड़ गए हैं.हालाँकि प्रशासन और नेता दलितों के पलायन की बात को नकारते हैं. गाँव के दौरे पर गए स्थानीय विधायक नरेंद्र भाटी कहते हैं, "ऐसा महसूस हो रहा है कि कुछ लोग दोनों पक्षों के बीच विवाद को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं. पलायन जैसा कुछ नहीं है. जो मीडिया छाप रहा है वैसा नहीं है. दोनों पक्षों को साथ बिठाकर शांति स्थापित करने की कोशिश की जाएगी."दलितों के कुछ मकान और गाड़ियाँ तोड़फोड़ की गवाही दे रहे हैं तो कई घरों पर अब भी ताले लगे हैं. अपने घर में दादी के साथ अकेली रह रही एक दलित युवती ने कहा, "गाँव में ख़ौफ़ और सन्नाटा है. कोई बाहर भी नहीं जा सकता है. लेकिन अभी पुलिस है तो थोड़ा डर कम है. वे कहते हैं कि पुलिस कब तक गाँव में रहेगी. जब पुलिस नहीं होगी तब कौन बचाएगा."

तोड़े गए सिद्धार्थ पब्लिक स्कूल में क़रीब डेढ़ सौ छात्रों की पढ़ाई बंद हो गई है. एक बुजुर्ग महिला कहती है, "छोटे-छोटे बच्चे हैं ये पढ़ने कैसे जाएंगे. इनमें दहशत इतनी बैठा रखी है स्कूल पर हमला करके कि ये पढ़ने नहीं जा सकते."कनावनी गाँव के चारों तरफ़ ऊँची रिहायशी इमारतें हैं. बीते कुछ सालों में अस्तित्व में आई इन इमारतों ने यहाँ ज़मीन के दाम आसमान पर पहुँचा दिए हैं. इस इलाक़े में पिछले कुछ सालों में ज़मीन की क़ीमतें इतनी बढ़ीं हैं कि इंसानी ज़िंदगी सस्ती सी हो गई है.यहाँ एक गज़ ज़मीन की क़ीमत बीस हज़ार रुपए से अधिक है. शायद इस महंगी ज़मीन ने ही आपस में मिलजुलकर रहने वाले गाँववालों को एक दूसरे का दुश्मन बना दिया है. गाँव की बुज़ुर्ग महिला कहती हैं, "इंसान मर जाए उसका कुछ नहीं है. बस उन्हें ज़मीन चाहिए. कैसे भी ज़मीन हड़प लो."मैं जब गाँव से निकलता हूँ तो दो महीने पहले दूल्हा बने युवक की मौत का मातम कर रही महिलाओं की आवाज़ ऐसे ही गुम हो जाती है जैसे महंगी ज़मीन पर बनी ऊँची रिहायशी इमारतों के साए में मोहीउद्दीनपुर कनावनी गाँव और उसका भाईचारा गुम सा हो गया है.

Posted By: Subhesh Sharma