- दस साल पहले बनी बिल्डिंग सिर्फ 6-7 रिएक्टर स्केल को ही बर्दाश्त कर सकती है

- भूकंप को मापने के लिए बिहार के पास नहीं है अर्थक्वैक फॉरकास्ट सेंटर

PATNA : गर्मी चरम पर है। जमीन के नीचे प्लेट का टकराव लगातार चल रहा है। किसी भी समय तेज टकराव से एक बार फिर भूकंप का अहसास हो सकता है। हालांकि इसको लेकर आप निश्चिंत रहें, क्योंकि इसकी जानकारी गवर्नमेंट के सिस्मोग्राफ से पहले आपके अपने पेट्स दे सकते हैं। जी हां, सिस्मोलॉजिस्ट और वेटेरियन यह मानते हैं कि पेट्स मतलब डॉग, घोड़ा से लेकर पक्षी तक को भूकंप का पता सबसे पहले लगता है। वेटेरियन डॉ। रमेश तिवारी ने बताया कि इनका सिक्स्थ सेंस काफी स्ट्रांग होता है और यह एटमॉसफेयर को पहले ही भांप लेता है। इसलिए अगर घरों में या फिर आसपास में पक्षियों की हलचल बढ़ती है। डॉग परेशान करने लगे, तो यह समझ लेनी चाहिए कि भूकंप जल्द ही आने वाला है और इसके बाद क्विक एक्शन लिया जा सकता है। सिस्मोलॉजी साइंस के साइंटिस्ट इन दिनों भूकंप को लेकर काफी परेशान हैं। और मानते है कि अगर दुबारा आ जाएं और रिएक्टर स्केल बड़ा हो तो फिर शहर को संभाल पाना मुश्किल हो सकता है।

भूकंप रोधी है रिएक्टर स्केल की जांच नहीं

रिमोट सेंसेटिंग अप्लीकेशन सेंटर के सीनियर साइंसटिस्ट डॉ। के आरपी सिंह ने बताया कि दस सालों से बन रही बिल्डिंग में इसका जिक्र जरूर किया जा रहा है कि बिल्डिंग भूकंप रोधी है, यानी की भूकंप के झटके आसानी से बर्दाश्त कर सकता है। पर, आपको जानकर हैरत होगा कि भूकंप रोधी तो बना दिया लेकिन रिएक्टर की जांच के मसले पर पीछे छूट गए हैं। यानी अगर 7 रिएक्टर स्केल या उससे उपर के स्केल के भूकंप का झटका आता है तो फिर शहर की हजारों बिल्डिंग ध्वस्त हो जाएगी। पुरानी और अंग्रेज जमाने की बिल्डिंग इसकी चपेट में अधिक आ रही है, खासकर बहुमंजिली इमारत पर खतरा अधिक से अधिक है।

टाइम और स्केल को माप पाना मुश्किल

सीनियर साइंसटिस्ट मानते हैं कि भूकंप टाइम और स्केल के हिसाब से मापा जाता है। अगर प्रोपर टाइम पर प्रोपर स्केल बनता है तो फिर कई बिल्डिंग को बचा पाना मुश्किल होगा। आपदा प्रबंधन के लिए यह जानना जरूरी है कि कि कौन सी बिल्डिंग किस स्केल तक भूकंप को बर्दाश्त कर सकती है और उसमें कितनी आबादी अभी रह रही है।

एक सिस्मोग्राफ से दस करोड़ की सुरक्षा

फिलहाल बिहार गवर्नमेंट की ओर से वाल्मीकि नगर में एक सिस्मोग्राफ इंस्ट्रूमेंट लगाया गया है, जो भूकंप के बाद उसके झटके की ताकत को आंकता है। जबकि बिहार हिमालय से नजदीक होने की वजह से यहां पर भूकंप के खतरे अधिक हैं, इसलिए अर्थक्वेक फॉरकास्ट सेंटर का होना जरूरी है, जो अभी तक नहीं बन पाया है।

खतरनाक टेंपरेचर, हिमालय से नजदीकी और जोन थ्री

इन दिनों शहर का बढ़ रहा टेंपरेचर, हिमालय से उत्तर की ओर फ्भ्0 किलोमीटर की दूरी की वजह से पटना को जोन थ्री में रखा गया है। उस पर से धरती के अंदर लगातार दक्षिण से इंडो आस्ट्रेलियन प्लेट एवं उत्तर से इंडो यूरेशियन प्लेट का टकराव चल रहा था। जिस दिन यह टकराव बड़ा या जोरदार होता है तो फिर भूकंप के झटके लगने शुरू हो जाते हैं।

Posted By: Inextlive