- कॉलेज और एडमिशन बढ़ते जा रहे हैं, मगर कम होते जा रहे हैं जॉब

- इस एडमिशन सीजन में पांच लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स होंगे भर्ती

- हर साल दस हजार से ज्यादा को नहीं मिल पाता जॉब

sharma.saurabh@inext.co.in

Meerut : रिजल्ट आने से पहले स्टूडेंट्स को अपने करियर की चिंता शुरू हो जाती है। स्टूडेंट्स उन कॉलेजों पर अब ज्यादा देने की कोशिश कर रहे हैं, जो प्लेसमेंट की ओर ज्यादा ध्यान देती हैं। इसलिए एडमिशन शुरू होने से पहले ही पेरेंट्स और स्टूडेंट्स कॉलेजों में जाकर इंफ्रास्ट्रक्चर और जॉब प्लेसमेंट का रिकार्ड देख रहे हैं। मगर शहर के कुछ ही कॉलेज अपना प्लेसमेंट रिकार्ड बता पा रहे हैं। जॉब देने के लिए आने वाली कंपनियां सीमित कॉलेजों में ही जा रही हैं। बताते हैं कि टॉप क्0 कॉलेजों के अलावा अन्य कॉलेजों में क्वालिटी एजुकेशन और कम्यूनिकेशन बेहतर नहीं है। इससे स्टूडेंट्स औसत रह जाते हैं और उन्हें जॉब नहीं मिल पाता।

आती हैं क्भ् बड़ी कंपनियां

वैसे तो शहर में हर साल ख्0 से ख्भ् कंपनियां कैंपस प्लेसमेंट के लिए आती हैं, लेकिन करीब क्भ् बड़ी कंपनियां हर साल आ रही हैं। इनमें से ज्यादातर का टारगेट यूनिवर्सिटी के टीचिंग डिपार्टमेंट से स्टूडेंट्स लेना होता है। डिमांड के अनुसार पूर्ति नहीं होने पर ही ये कंपनियां प्राइवेट कॉलेजों का रूख करती हैं।

ओपन कैंपस हुए कम

पहले तक कई कंपनियां शहरभर के स्टूडेंट्स में से बेस्ट स्टूडेंट्स चुनने के लिए ओपन कैंपस प्लेसमेंट करती थीं। मगर अब यह प्रक्रिया बहुत कम कराई जाने लगी है। इस बारे में कंपनियों का पक्ष है कि ओपन कैंपस में समय खराब होने के बाद भी उन्हीं स्टूडेंट्स को जॉब मिल पाता है जिनके कॉलेज बेहतर हैं। ऐसे में शहरभर के स्टूडेंट्स को एक जगह एकत्रित करने से कोई फायदा नहीं मिल रहा।

आड़े आ जाते हैं नियम

बड़ी कंपनियों के प्लेसमेंट नियम भी काफी टफ होते हैं। कई बार नए कॉलेजों को चांस देने के बाद स्टूडेंट्स प्रक्रिया में क्लियर नहीं हो पाते। ऐसे में कंपनी एक या दो बार कॉलेज को मौका देती है। स्टूडेंट्स के दबाव के चलते कई बार कॉलेज छोटी कंपनियों को बुलाते हैं। मगर इनमें भी मुश्किल से क्0 फीसद स्टूडेंट्स को ही नौकरी मिल पाती है।

म्0 फीसद से नीचे वाले हजारों

कई स्टूडेंट्स क्0वीं, क्ख्वीं और ग्रेजुएशन के मा‌र्क्स के कारण प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाते। ज्यादातर कंपनियों ने ग्रेजुएशन में कम से कम म्0 फीसदी मा‌र्क्स अनिवार्य कर दिए हैं। क्0वीं और क्ख्वीं में कम से कम भ्0 फीसद मा‌र्क्स चाहिए होते हैं। कॉलेजों से पासआउट होने वाले हजारों स्टूडेंट्स बड़ी मुश्किल से म्0 फीसद मा‌र्क्स पर पहुंच पाते हैं इसलिए पासआउट होने के बाद भी जॉब नहीं मिल पाता।

ऐसे नहीं चलता कॉलेज

सिटी में इंजीनियरिंग कॉलेजों की बात करें तो उनकी संख्या करीब-करीब ब्8 है। लेकिन उनमें एक का भी डायरेक्टर क्वालीफाइड नहीं है जो कॉलेजों को डायरेक्ट कर सके कि बच्चों को कैसे माहौल और किन-किन सुविधाओं की जरूरत है। उन्हें बच्चों को सिर्फ अपनी डिग्री बेचनी है। जिस कारण से बच्चे कंपनी का मूंह डिग्री के मिलने के काफी दिनों के बाद भी नहीं देख पाते हैं।

इतने पास, इतने जॉब

कोर्स पास जॉब

बीटेक ख् लाख भ्000

एमबीए ब्0 हजार क्भ्00

एमसीए क्0 हजार भ्00

बीएससी ख् लाख क्000

अन्य क् लाख ख्000

कुल भ्.भ्0 लाख क्0,000

(हर एजूकेशन सेशन में मेरठ की लगभग यही फिगर रहती है)

वर्जन

ऐसा नहीं है कई बच्चों का प्लेसमेंट होता है। कई बच्चों को हम भेजते हैं जो बताते भी नहीं हैं। फिर भी हम ये मानते हैं कि जितने बच्चों के एडमिशन होते हैं मुकाबले में कम प्लेसमेंट हो पाते हैं।

- वाई विमला, डीएसडब्ल्यू, सीसीएसयू

अब इंडस्ट्री को सिर्फ डिग्री नहीं चाहिए। उन्हें वेल क्वालिफाई स्कि्ल्ड इंप्लॉई चाहिए। जो सीधे कैंपस से निकले में बच्चे में नहीं मिल सकती है। उन्हें न तो इंडस्ट्री और किसी कंपनी में जाने या प्रैक्टिकल करने मौका मिल पाता है और न ही कुछ सीखने का।

- अमित शर्मा, एसपीआरओ, राधा गोविंद इंजीनियरिंग कॉलेज

Posted By: Inextlive