पिछले दिनों एक छापे को लेकर दिल्ली के क़ानून मंत्री सोमनाथ भारती और पुलिस के बीच विवाद के बाद पुलिस और दिल्ली सरकार के बीच तनातनी की स्थिति बनी हुई है.


दिल्ली पुलिस के चार अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग जारी है. निलंबन की मांग को लेकर मुख्यमंत्री धरने पर हैं.जिस तरह से पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने की मांग की जा रही है वह भारतीय संविधान के मुताबिक उचित नहीं हैं. एक परिपक्व जनतंत्र में ऐसा नहीं होता.किसी ने कुछ अपराध किया है तो उसे सख्त से सख्त सजा मिल सकती है. मगर उसका भी एक तरीका है.निलंबन आसान नहींमंत्रियों ने जो आदेश दिए वे ग़ैरक़ानूनी थे. रात में औरतों वाले घर में घुसकर तलाशी लेना ग़लत है.मगर दिल्ली के क़ानून मंत्री ही आधी रात को घर में घुसकर तलाशी लेने पर जोर दे रहे हैं. पुलिस के मना करने पर कहा गया कि आपको एक मंत्री आदेश दे रहा है.पहले तो यह तय हो जाए कि एक मंत्री की बात ज्यादा महत्वपूर्ण है या देश का क़ानून.


दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर ने एक जांच शुरू की है. उसके दो चरण होने चाहिए. पहला आरंभिक चरण हो जिसमें देखा जाए कि क्या क्या आरोप हैं और ये प्रथम दृष्टया कहां तक सही हैं.

अगर आरोप सही हैं तो तीन दिन बाद इनको निलंबित कर दिया जाए. फिर सबके बयान सुने जाएं. इसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिए.आप सरकार के मुखिया अरविंद केज़रीवाल की मांग है कि उन पुलिसकर्मियों को तीन दिन के लिए स्थानांतरित कर दिया जाए.सवाल है कि क्या राजनेता ये समझते हैं कि हर दूसरी-तीसरी बात पर पुलिस वालों को निलंबित किया जाए? क्या पुलिस वालों को निलंबित करना इतना आसान है?उनकी सालाना रिपोर्ट में इस बारे में लिखा होता है. जब उनका प्रमोशन होता है तो इसे पढ़ा जाता है. उसकी व्याख्या करनी पड़ती है.अधिकार क्षेत्रइस मुद्दे पर इतने  हल्के तरीके से बात नहीं होनी चाहिए. पुलिसकर्मी के भी अधिकार होते हैं. आप तो ये सोचते हो कि मसल कर फेंक दो इन्हें.अगर दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय के तहत नहीं होती तो वह पुलिस अधिकारियों के निलंबन पर मजबूर हो जाती.https://img.inextlive.com/inext/inext/delhipolice1_i_210114.jpgअगर मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में दिल्ली पुलिस होती तो दिल्ली सरकार खुद ही आदेश पत्र जारी कर देती. आदेश दे देती कि उस पुलिस के खिलाफ मुकदमा दायर कर दो.ऐसे में तो एक तरह की तानाशाही कायम हो सकती थी. ये निरंकुशता है, लोकतांत्रिक तरीका नहीं है.

आप पार्टी इस मुद्दे पर अब बोल रही है. वह पहले क्यों नहीं बोली? जब उन्हें यह मुद्दा इतना ही गंभीर लग रहा था तो इसे अपने चुनावी मुद्दों में महत्वपूर्ण स्थान क्यों नहीं दिया गया?आम आदमी पार्टी ने जब अपनी चुनावी योजना बनाई थी तब इसे तरजीह क्यों नहीं दी गई. मामला उठने पर तो सभी बातें करते हैं. मगर उसको सुधारने की बात कोई नहीं करता.

Posted By: Subhesh Sharma