साल 1947 में पूरे भारत में कुल 27 विश्वविद्यालय हुआ करते थे. अब उनकी संख्या बढ़ कर 560 के पार पहुंच चुकी है. लेकिन हर निष्पक्ष विश्लेषक की राय है कि इन सालों में भारतीय विश्वविद्यालयों की संख्या जरूर बढ़ी लेकिन उप कुलपतियों के स्तर में भारी गिरावट आई.


आजकल सर आशुतोष मुखर्जी, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सीआर रेड्डी और लक्ष्मणस्वामी मुदालियार के स्तर का एक भी वाइस चांसलर ढूंढने से भी नहीं मिलता.सच ये है कि तथाकथित ‘सर्च कमेटियों’ के अस्तित्व में होने के बाद भी अधिकतर उप कुलपतियों के चयन का आधार मेरिट न हो कर राजनीतिक पहुंच, जाति या समुदाय हो गया है.यह कहना ग़लत न होगा कि उप कुलपतियों की नियुक्ति सत्ताधारी दलों के राजनीतिक हितों को साधने के लिए की जाती है.इन दिनों एक नया चलन भी देखने में आ रहा है कि वीसी के पद के लिए रिटायर्ड सैन्य या प्रशासनिक अधिकारियों को तरजीह दी जाने लगी है, ख़ासकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में.फौजियों का दबदबापिछले साल लेफ़्टिनेंट जनरल ज़मीरउद्दीन शाह को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का उपकुलपति बनाया गया.


उन्होंने एक तरह से पूरी छावनी ही विश्वविद्यालय परिसर में ला खड़ी की. उनके प्रो वाइस चांसलर रिटायर्ड ब्रिगेडियर हैं तो उनके रजिस्ट्रार पूर्व ग्रुप कैप्टन."कम दर्जे के वीसी की नियुक्ति का सबसे बड़ा नुकसान ये होता है कि उसका आत्मविश्वास नहीं के बराबर होता है. वो अपने से भी कम काबिल प्रोफ़ेसरों की नियुक्ति करता है क्योंकि काबिल प्रोफ़ेसर उसकी चलने नहीं देता. नतीजा यह होता है कि हज़ारों छात्रों का भविष्य दाँव पर लग जाता है."

-बीबी भट्टाचार्य, पूर्व उपकुलपति, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालयवर्ष 1996 में लेफ़्टिनेंट जनरल एमए ज़की को जामिया मिलिया इस्लामिया का उपकुलपति बनाया गया था.साल 1988 के बाद जब से जामिया केंद्रीय यूनिवर्सिटी बनी है 50 फ़ीसदी उपकुलपति या तो सेना से आए हैं या आईएएस से.इसी तरह 1980 से अब तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आठ उपकुलपति नियुक्त हुए हैं. इनमें से छह आईएएस, आईएफ़एस या सेना से हैं.आज़ादी से अब तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अब तक सिर्फ़ एक सिविल सर्वेंट को उपकुलपति बनाया गया है और वो थे 1950 से 1956 के बीच भारत के वित्त मंत्री रहे सीडी देशमुख.विश्वभारती विश्वविद्यालय में सिर्फ़ एक बार ग़ैर शिक्षाविद को उपकुलपति बनाया गया था. वो थे भारत के पांचवें मुख्य न्यायायाधीश एसआर दास.बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अब तक किसी आईएएस या जनरल को उपकुलपति नहीं बनाया गया.कुछ साल पहले भी बिहार सरकार के सतर्कता विभाग ने रांची विश्वविद्यालय के एक वीसी को विश्वविद्यालय से जुड़े 40 कॉलेजों में अयोग्य लोगों को नियुक्त करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था.

एक अन्य मामले में मधेपुरा के बीएन मंडल विश्वविद्यालय और दरभंगा के ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के उप कुलपतियों को बीएड की डिग्री देने वाले जाली महाविद्यालयों को बढ़ावा देने के लिए हिरासत में लिया गया था.कई पर हुई कार्रवाईदिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एसएस राठी कहते हैं, "उप कुलपति के पद में वाइस शब्द एक नया ही मायने अख़्तियार कर रहा है. अब ये अपने शाब्दिक अर्थ पाप को सही चरितार्थ कर रहा है."विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के एक आंतरिक अध्ययन में कहा गया है कि वाइस चांसलरों के ‘वाइस’ (यानी पाप) में एक निश्चित सांचा दिखाई देता है जो कि कुछ इस तरह है-जाली डिग्रियों की बिक्री: इस तरह की बहुत सी शिकायतें हैं कि वीसी के दफ़्तर रजिस्ट्रार के साथ मिल कर परीक्षा के रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ कर जाली डिग्री दे रहे हैं, ख़ास कर इंजीनियरिंग कॉलेजों में.विश्वविद्यालय के पैसे का ग़बन: अधिकतर उपकुलपति बाहरी एजेंसियों से विश्वविद्यालय का ऑडिट कराने से हिचकते हैं.नियुक्तियों और प्रवेश परीक्षा में धाँधली: कॉलेजों में नियुक्ति के रैकेट की शुरुआत अक्सर वाइस चांसलर के दफ़्तर से होती है.फ़्रेंचाइज़ी की दुकान: अक्सर उप कुलपति ग़लत लोगों को फ़्रेंचाइज़ का अधिकार देते हैं जो पैसा लेकर डिप्लोमा बेचते हैं.
जाली इंजीनियरिंग डिग्री बेचने का एक मामला वर्ष 1997 में नागपुर में आया था और वहाँ के तत्कालीन उपकुलपति बी चोपाने को कई उच्चाधिकारियों के साथ अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था.कानपुर के चंद्रशेखर आज़ाद कृषि और तकनीक विश्वविद्यालय के एक उपकुलपति को भी नियुक्तियों में गड़बड़ी करने के आरोप में उनके पद से हटा दिया गया था.छात्रों के साथ खिलवाड़लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के एक उप कुलपति पर विश्वविद्यालय की ज़मीन निजी रियल स्टेट डेवेलपर्स को ट्रांसफ़र करने का आरोप लगा था.उसी तरह महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोट्टायम के एक पूर्व उप कुलपति को राज्यपाल ने आदेश दिया था कि वो बेनामी मालिकों से खरीदी गई संपत्ति के लिए दी गई अधिक कीमत की भरपाई अपने वेतन से करें.जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति बीबी भट्टाचार्य का मानना है कि "कमतर दर्जे के वीसी की नियुक्ति का सबसे बड़ा नुकसान ये होता है कि उसका आत्मविश्वास नहीं के बराबर होता है. वो अपने से भी कम काबिल प्रोफ़ेसरों की नियुक्ति करता है क्योंकि काबिल प्रोफ़ेसर उसकी चलने नहीं देता. नतीजा यह होता है कि हज़ारों छात्रों का भविष्य दाँव पर लग जाता है."
एक अध्ययन के अनुसार भारत के 171 सरकारी विश्वविद्यालयों में से एक तिहाई के उपकुलपतियों के पास पीएचडी डिग्री नहीं है और उनमें से कई के पास तो आवश्यक शैक्षणिक योग्यता भी नहीं हैं.वर्ष 1964 में कोठारी आयोग ने सिफ़ारिश की थी कि सामान्य तौर पर उपकुलपति एक ''जाना माना शिक्षाविद् या प्रतिष्ठित अध्येता होगा अगर कहीं अपवाद की ज़रूरत पड़ती भी है तो इस मौके का इस्तेमाल उन लोगों को पद बांटने के लिए नहीं करना चाहिए जो इस शर्तों को पूरा नहीं करते."इसे एक विडंबना ही कहा जाएगा कि उस रिपोर्ट के आने के पांच दशक बाद अधिकतर उन्हीं लोगों को विश्वविद्यालयों के ऊँचे पदों के लिए चुना जा रहा है जिनके तार शिक्षा ‘माफ़िया’ से जुड़े हुए हैं.

Posted By: Subhesh Sharma