-कार्रवाई के नाम पर हर साल बनाए जाते हैं सैकड़ों डिमोलिशन आर्डर

-कार्रवाई न होने से एमडीए लग रहा करोड़ों के राजस्व का झटका

Meerut: शहर में विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे करने वाला एमडीए अवैध निर्माण रोकने में नाकाम साबित हो रहा है। डिमोलिशन आर्डर बनते हैं, लेकिन फाइलों से बाहर नहीं निकलते। हां, इनके नाम पर अवैध निर्माण करने वालों से उगाही जरूर हो जाती है। अफसरों का दावा है कि पुलिस महकमे से सहयोग न मिलने के कारण डिमोलिशन आर्डर्स पर अमल नहीं हो सका।

ब्भ्00 आर्डर पेंडिंग

अवैध निर्माणों पर कार्रवाई की बात करने वाले मेरठ विकास प्राधिकरण में इस समय साढ़े चार हजार डिमोलिशन ऑर्डर पेंडिंग पड़े हैं। अवैध कालोनियों व निर्माणों के ये डिमोलिशन ऑर्डर एमडीए ने पिछले कुछ ही सालों में तैयार किए हैं, लेकिन मजे की बात तो यह है कि हजारों की तदाद में जमा किए इन ध्वस्तीकरण आदेश में से एक का भी अनुपालन नहीं किया गया।

एमडीए की बाजीगरी

असल में एमडीए ध्वस्तीकरण आदेश के नाम पर बड़ा खेल खेल रहा है। किसी भी अवैध निर्माण पर कार्रवाई के नाम पर एक कागज का टुकड़ा तैयार कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। वहीं दूसरी ओर एमडीए की कार्रवाई से बेखौफ निर्माणकर्ता देखते ही देखते बड़ी इमारत बनाकर खड़ा कर देता है और उसका ध्वस्तीकरण आदेश में फाइल में पड़ा-पड़ा धूल फांकता रहता है।

डीओ की आड़ में बड़ा खेल

एमडीए की ओर से थोक भाव बनाए जा रहे ध्वस्तीकरण आदेश एक सोची समझी रणनीति है। दरअसल, शहर में कोई भी अवैध निर्माण एमडीए की बिना जानकारी के नहीं होता। अवैध निर्माण की सूचना मिलने पर क्षेत्र का जेई जब निर्माण कार्य रुकवाने जाता है तो निर्माणकर्ता से अपनी सेंटिंग कर लेता है। कुछ इस तरह से शहर में एक अवैध निर्माण की शुरुआत हो जाती है। इसके बाद या तो अवैध निर्माण बनकर एक इमारत या कालोनी का रूप ले लेता है या फिर उसकी शिकायत होने पर एमडीए सीलिंग की कार्रवाई करता है, हालांकि बाद में इन घाघ क्षेत्रीय अफसर के इशारे पर सील तोड़ भी जाती है। एमडीए शिकायत का जवाब बनाकर अवैध निर्माण पर कार्रवाई दर्शा देता है और मौके पर निर्माण कार्य चलता रहता है। शिकायत कर्ता की ओर से जब फिर से शिकायत की जाती है तो एमडीए को बेमन से ध्वस्तीकरण आदेश तैयार करने होते हैं, लेकिन घाघ अफसर इन आदेशों के अनुपालन का खौफ दिखाकर न केवल निर्माणकर्ता से मोटी रकम लेते हैं, बल्कि इन आदेशों की आड़ में निर्माण कार्य पहले की ही तरह चलने दे देते हैं।

कार्रवाई के नाम पर बहाना

एमडीए में कार्रवाई की बाट जोह रहे इन ध्वस्तीकरण आदेशों पर कार्रवाई की बात अफसर बहाने बनाते नजर आते हैं। एमडीए का कहना है कि ध्वस्तीकरण कार्रवाई के लिए पुलिस फोर्स की डिमांड की जाती है, लेकिन समय पर फोर्स न मिल पाने के कारण इन अवैध निर्माणों पर कार्रवाई नहीं की जाती और निर्माण कार्य चलता रहता है।

एमडीए करोड़ों के राजस्व का झटका

प्राधिकरण अफसर व कर्मचारियों की मिलीभगत से खेल जा रहे इस खेल से एमडीए को करोड़ों रुपए के राजस्व का झटका लग रहा है। दरअसल, किसी भी बिल्डिंग का मानचित्र स्वीकृत करने के लिए बिल्डर को एमडीए में विकास शुल्क जमा कराना होता है। लेकिन अफसरों की मिलीभगत से जहां निर्माणकर्ता विकास शुल्क देने से बच जाता है, वहीं प्राधिकरण को करोड़ों के राजस्व की चपत भी लग जाती है।

केस वन - एमडीए की आवासीय कालोनी गंगानगर स्थित गंगा सागर के पास बिल्डर मुन्नू चौधरी ने क्ख्भ्0 वर्ग मीटर में दुकानों व फार्म हाउस का निर्माण शुरू किया था। इसी बीच शिकायत होने आठ माह पूर्व उसको सील कर दिया गया, लेकिन बिल्डर ने सील तोड़कर निर्माण कार्य जारी रखा। दोबारा शिकायत होने पर वीसी के आदेशों के चलते अवैध निर्माण के खिलाफ छह माह पूर्व ध्वस्तीकरण आदेश भी बना दिए गए, लेकिन निर्माण कार्य जारी रहा। मौजूदा समय में बिल्डर ने न केवल दुकानों को बेच दिया है, बल्कि निर्माण कार्य अभी तक जारी रखा हुआ है।

केस टू --दिल्ली रोड स्थित परतापुर बाईपास पर बिल्डर अरविंद सिंघल ने सौ बीघा इंडस्ट्रीयल जमीन पर रमेश एंक्लेव के नाम से आवासीय कालोनी काट रहा है। अवैध कालोनी की सूचना पर एमडीए ने कार्रवाई के नाम पर इसकी सील भी कर दिया, लेकिन फिर भी निर्माण कार्य जारी रहा। बाद में शिकायत होने पर एमडीए की ओर से कालोनी का ध्वस्तीकरण आदेश भी जारी किया, लेकिन एक ओर जहां अवैध कालोनी काट रहा बिल्डर जहां एमडीए के मास्टर प्लान व नियमावली का धता बता रहा है, वहीं कालोनी के ध्वस्तीकरण के आदेश भी पिछले एक साल से एमडीए की फाइलों में बंद कार्रवाई की बाट जोह रहे हैं।

केस थ्री -परतापुर बाईपास पर ही बिल्डर राजेन्द्र रस्तौगी व नरेन्द्र आर्य इंडस्ट्रीयल जोन में बड़े स्तर पर शिव धाम नाम से कालोनी काट रहे हैं। सीलिंग की कार्रवाई पूर्ण कर एमडीए ने एक साल पूर्व इसके ध्वस्तीकरण आदेश भी बनाए थे, लेकिन कार्रवाई अभी तक नहीं की गई। एमडीए की कमजोर कार्यशैली भांप बिल्डर साइट पर धड़ल्ले से प्लाटिंग कर रहा है और एमडीए के ध्वस्तीकरण आदेश फाइलों में जमी धूल फांक रहे हैं।

ध्वस्तीकरण आदेशों पर कार्रवाई के लिए समय पर फोर्स नहीं मिलती, जबकि अधिकतर मामलों में बिल्डर ध्वस्तीकरण आदेशों के खिलाफ कोर्ट में चले जाते हैं। इन परिस्थितियों में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करनी मुश्किल हो जाती है।

राजेश कुमार यादव, वीसी एमडीए

Posted By: Inextlive