हाईलाइटर

इसे भी जानें

- 1.97 करोड़ रुपए की होगी वसूली

- भवन के परिवर्तन व सुदृढ़ीकरण में 425.85 लाख

- अतिरिक्त तलों के निर्माण में 573.22 लाख

- केजीएमयू के रजिस्ट्रार ने भेजी शासन को रिपोर्ट

-बिना जांच निर्माण के लिए शासन ने मांगी थी आख्या

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रुष्टयहृह्रङ्ख: केजीएमयू की पुरानी डेंटल बिल्डिंग में अतिरिक्त तलों का बिना इवैलुएशन कराए ही निर्माण कराने के लिए उ.प्र। राजकीय निर्माण निगम के अधिकारी और इंजीनियर दोषी पाए गए हैं। शासन के निर्देश पर केजीएमयू प्रशासन ने दोषियों पर जिम्मेदारी तय करते हुए आख्या शासन को भेज दी है। इनमें कई रिटायर भी हो चुके हैं। अधिकारियों की माने तो निर्माण निगम के कई अधिकारियों से रिकवरी के आदेश हो सकते हैं।

ये पाए गए दोषी

रजिस्ट्रार राजेश कुमार राय की ओर से भेजी गई आख्या के अनुसार बिल्डिंग का बिना इवैलुएशन कराए ही अतिरिक्त तलों का उ.प्र। राजकीय निर्माण निगम की ओर से निर्माण कराया गया। जिसमें तत्कालीन महाप्रबंधक जितेंद्र सिंह, परियोजना प्रबंधक वीके बंसल, सहायक स्थानिक अभियंता प्रमोद कुमार यादव (पुनरीक्षित आगणन तैयार किया गया), स्थानिक अभियंता एसपी सिंह व आर्किटेक्ट कॉस्मिक डिजाइन प्रा.लि। उत्तरदायी हैं। इनमें जितेंद्र सिंह 2008 में और एसपी सिंह 2015 में रिटायर हो चुके हैं। जबकि परियोजना प्रबंधक वीके बंसल की मृत्यु हो चुकी है। आख्या में रजिस्ट्रार ने 1.97 करोड़ की इन अधिकारियों से वसूली की संस्तुति की है।

ये थे आरोप

उ.प्र। राजकीय निर्माण निगम ने स्ट्रक्चरल इवैलुएशन कराए बिना ही अतिरिक्त तलों का निर्माण किया गया था। अब आईआईटी रुड़की की रिपोर्ट में यह बिल्डिंग खतरनाक पाई गई है और इसे गिराने के आदेश दिए गए हैं। आरोप है कि जब बिल्डिंग कमजोर थी तो उस पर करोड़ों की लागत से अतिरिक्त निर्माण क्यों किया गया।

50 साल पुरानी इमारत

केजीएमयू की डेंटल बिल्डिंग दो चरणों में बनी थी। पहली बार 1959 में बनना शुरु हुई और 1967 में काम पूरा हुआ। दो तल बेसमेंट और तीन तल ऊपर बने। यह कार्य लोक निर्माण विभाग ने कराया था। उसके बाद राजकीय निर्माण निगम ने बगल में 1993 से 1999 में दूसरे फेज में एक अन्य भवन का निर्माण कराया। एक बेसमेंट और तीन तल ऊपर। इसके बाद पुरानी बिल्डिंग पर ही 2004-07 में एक नए तल का निर्माण कराया गया। जबकि दूसरी पर दो तल बनाए गए। लेकिन इस दौरान इन बिल्डिंगों की मजबूती की जांच नहीं की गई।

बाक्स

1996 में ही उठा था मामला

1996 में ही एचओडी व परियोजना निदेशक प्रो। सीपी गोविला ने निर्माणाधीन भवन के संबंध में शासन को पत्र भेजा था। जिसमें कहा गया था कि पुराने भवन में कई जगह दरार हैं। जंग भी लग रही है। इससे भवन को खतरा है। ड्रेनेज सिस्टम भी ध्वस्त है। जिससे पुराने भवन के नीचे के तल में पानी भरता है। इसलिए कुछ निर्माण जरूरी है और सुदृढ़ीकरण के लिए 44.83 लाख का प्रस्ताव भेजा था। लेकिन न तो इवैलुएशन कराया गया और न ही सुदृढ़ीकरण। ऊपर से नए तलों का निर्माण कर दिया।

कोट

मामले में तत्कालीन निर्माण निगम के अधिकारी उत्तरदायी हैं। इसके लिए रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। आगे शासन को निर्णय लेना है।

राजेश कुमार राय, रजिस्ट्रार केजीएमयू

Posted By: Inextlive