- पेरेंट्स की ख्वाहिशों के बोझ तले डिप्रेशन की जद में आने लगे टीनएजर्स से लेकर यंगस्टर्स

- न्यूक्लीयर फैमिली की वजह से पर्सनल शेयरिंग हुई खत्म, बोझ की वजह से होने लगा डिप्रेशन

- बाइपोलर डिस्ऑर्डर के बढ़ गए हैं मामले, निगेटिव इवैलुएशन है खास वजह

- एक्सीडेंटल इंजरी के बाद दूसरी सबसे बड़ी मौत की वजह है डिप्रेशन

GORAKHPUR: पेरेंट्स की ख्वाहिशें उनके बच्चों को न सिर्फ बीमार बना रही हैं, बल्कि उन्हें जिंदगी के हर कदम पर इतना मजबूर कर दे रही हैं कि न चाहते हुए भी ऐसा कदम उठा ले रहे हैं, जिसके बारे में किसी ने कभी नहीं सोचा होगा। पेरेंट्स ने अपने ख्वाबों की फेहरिस्त बनाकर बच्चों को सौंप दी है, इसलिए आज बच्चे अपने लिए नहीं, बल्कि पेरेंट्स के सपने के लिए जी रहे हैं। मगर ये बोझ अब इन नन्हें कंधों पर इस कदर भारी पड़ रहा है कि उन्हें इस बोझ के सामने अपनी जान सस्ती लगने लगी है और उन्हें सुसाइड अटेंप्ट करने में जरा भी गुरेज नहीं हो रहा है। यह बातें साइकोलॉजिकल स्टडीज में सामने आई हैं। डब्ल्यूएचओ के जारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो सिर्फ 2005 से 2015 के बीच डिप्रेशन के केस में 18 परसेंट इजाफा हुआ है।

जद में आने लगे टीनजर्स

शहर की बात की जाए तो यहां हर एज ग्रुप के लोगों को डिप्रेशन ने घर रखा है। इसमें साइकियाट्रिस्ट के पास जाने वाले मरीजों में 50 फीसद मरीज डिप्रेशन से पीडि़त हैं। साइकियाट्रिस्ट्स की मानें तो इसमें भी सबसे ज्यादा तादाद 18 से 40 साल के लोगों की है। इसमें भी स्टूडेंट्स, नॉन वर्किंग लोगों के साथ ही घर में रहने वाली महिलाएं हैं। डॉक्टर्स की मानें तो जल्दी पैसा कमाने की होड़, दूसरों से मुकाबला जहां वर्किंग यूथ को डिप्रेशन का शिकार बना रहा है। वहीं, महिलाओं में डिप्रेशन होने की खास वजह यह है कि वह दिन भर घर में रहती हैं। पति भी दिन भर ड्यूटी पर रहता है, ऐसे में वह अपनी प्रॉब्लम किसके साथ शेयर करें। वहीं दूसरी ओर उनके ऊपर घर का बोझ पहले से ही रहता है और ऐसे में वह काम-काज के बोझ तले दबती चली जाती हैं और डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं।

इन स्टडीज से पता करते हैं डिप्रेशन

मूड ए - सैडनेस

मूड बी - एनज्वॉयमेंट ऑफ लाइफ

थॉट सी - पैसिमिज्म

थॉट डी - फेल्योर

मोटीवेशन ई - वर्क इनिशिएशन

मोटीवेशन एफ - सोश्याबिल्टी

फिजिकल - एपेटाइट

फिजिकल - स्लीप लॉस

कंडीशन बताती है सीवियर या नॉर्मल

डॉ। धनंजय ने बताया कि वह जब स्टडी के लिए जाते हैं तो इसमें चार प्वाइंट्स पर बात कर पेशेंट की कंडीशन का पता लगा लेते हैं। इसमें उसका मूड, थॉट, मोटिवेशन और फिजिकल कंडीशन देखने के साथ ही इसकी ड्यूरेशन के आधार पर पता लगाते हैं कि उसे सीवियर डिप्रेशन है या फिर नॉर्मल। अगर पेशेंट की कंडीशन सिर्फ एक दिन ऐसी रही है, तो इसे नॉर्मल फेज में रखते हैं। जबकि अगर ऐसा 5 से सात दिन तक होता है, तो उसे सीवियर मानते हैं और यह डीप डिप्रेशन माना जाता है।

इनको सबसे ज्यादा घेरता है डिप्रेशन

फीमेल्स

लो इनकम

नॉट लिटरेट

40 से 49 इयर

अर्बन मेट्रो

विडो/सेपरेटेड

शहर में सबसे ज्यादा हाई सुसाइडल रिस्क

अर्बन मेट्रो - 1.7 परसेंट

विडो/सेपरेटेड - 1.5 परसेंट

लो इनकम - 1.5 परसेंट

प्राइमरी एजुकेशन - 1.3 परसेंट

40 से 49 इयर - 1.2 परसेंट

फीमेल्स - 1.1 परसेंट

एज ग्रुप सबसे ज्यादा अफेक्टेड

एज ग्रुप परसेंटेज

18 से 29 - 7.5

30 से 39 - 14.6

40 से 49 - 18.4

50 से 59 - 16.1

60 से लास्ट - 15.1

टीन एज में बढ़ रही बीमारी

टोटल - 7.3 परसेंट

मेल - 7.3

फीमेल्स - 7.1

रूरल - 6.9

अर्बन - 4.3

अर्बन मेट्रो - 13.5

बॉक्स

एक्सीडेंटल इंजरी के बाद डिप्रेशन

साइकियाट्रिस्ट डॉ। सीपी मल्ल की मानें तो दुनिया भर के लोग डिप्रेशन का शिकार हैं। डब्ल्यूएचओ की रिसर्च में यह बात भी सामने आई है। इसमें डिप्रेशन को एक्सीडेंटल इंजरी के बाद दूसरी सबसे खतरनाक बीमारी माना गया है, जिसकी वजह से लोगों की जान जा रही है। यही वजह है कि 10 अक्टूबर 2016 को व‌र्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) ने सात अप्रैल को मनाए जाने वाले व‌र्ल्ड हेल्थ डे की थीम 'डिप्रेशन-लेट अस टॉक' रख दी है। इस बार पूरी दुनिया में डिप्रेशन के मसले पर खुलकर बात की जाएगी और इससे दूर करने के लिए अपनाए जाने वाले तरीकों पर चर्चा होगी।

ऐसे बचा जा सकता है डिप्रेशन से

अच्छे दोस्त बनाएं - अच्छे दोस्त आपको मॉरल सपोर्ट देते हैं। साथ ही साथ आप इनसे अपने मन की बात कर, अपने दिल और दिमाग का बोझ भी कम कर सकते हैं।

बैलेंस डाइट का करें इस्तेमाल - फल, सब्जी, मीट, फलियों के साथ ही कार्बोहाइड्रेट आदि बैलेंस डाइट लेने से मन खुश रहता है। इससे न सिर्फ अच्छी बॉडी बनती है, बल्कि यह दुखी मन को भी अच्छा बना देता है।

बातचीत करें - अपनी प्रॉब्लम्स के बारे में बात करने से भी तनाव को दूर किया जा सकता है। हममें से ज्यादातर लोग खुद तक ही प्रॉब्लम का बोझ लिए अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। ऐसे में गंभीर प्रॉब्लम्स पैदा हो सकती हैं।

अपने लिए समय निकालें - आप जितने भी बिजी हों, लेकिन अपने लिए वक्त निकालना काफी जरूरी है। आराम करने के लिए भी वक्त बचा कर रखें।

लिखना शुरू करें - अपने डेली रूटीन और भावनाओं को लिखने से आत्मनिरीक्षण और विश्लेषण करने में आपको मदद मिलती है। एक जर्नल या डायरी रखें, जिसमे रोजाना लिखें की आप जिंदगी के बारे में क्या महसूस कर रहे हैं। यह आपके डिप्रेशन को दूर करने में मददगार होगा।

साइकियाट्रिक्ट को जरूर दिखाएं - डिप्रेशन को दूर भगाने का सबसे अहम और आसान तरीका है कि आप किसी साइकियाट्रिस्ट की सलाह लें। वह आपके डिप्रेशन लेवल को भांपकर इसकी जड़ तक पहुंच जाएगा और इसे दूर करने में मदद करेगा।

पेरेंट्स की ख्वाहिशें बच्चों को डिप्रेशन का शिकार बना रही हैं। पेरेंट्स अपने ख्वाब अच्चों पर थोप दे रहे हैं, बच्चे भी अपने पेरेंट्स को खुश देखने के लिए उनके सपनों को जीने लगे हैं। मगर इसमें नाकामी उन्हें परेशान कर रही है। लगातार निगेटिव हैपिनिंग की वजह से लोग डीप डिप्रेशन में चले जाते हैं और निराशावादी दृष्टिकोण की वजह से आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। एक रिसर्च में सामने आया है कि सात फीसद टीनएजर्स इस वक्त डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं। साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।

- डॉ। धनंजय कुमार, साइकोलॉजिस्ट

डिप्रेशन के बारे में अगर पता चल चुका है तो इसके लिए घरवालों का सोशल सपोर्ट काफी मायने रखता है। अगर कोई गुमसुम रहता है या मिलना-जुलना कम कर चुका है। उसे नींद बहुत कम या बहुत ज्यादा आ रही है। भूख कम लग रही है या फिर बहुत ज्यादा लग रही है। बॉडी में दर्द बना रहता है। प्रॉब्लम महसूस होती है, लेकिन टेस्ट कराने के बाद कुछ भी नहीं निकलता, तो ऐसी कंडीशन में वह डिप्रेशन का पेशेंट है, उससे बात करें और फौरन डॉक्टर की सलाह लें।

- डॉ। सीपी मल्ल, साइकियाट्रिस्ट

साइकोलॉजिस्ट डॉ। धनंजय कुमार ने बताया कि नन्हीं सी जान की दुनिया में आने के साथ ही पेरेंट्स अपनी ख्वाहिशों की लिस्ट बना लेते हैं। बच्चा किस लेवल का होगा, यह जानने से पहले वह यह तय कर देते हैं कि वह बड़ा होकर क्या बनेगा। एडमिशन होने के बाद ही वह यह उम्मीद लगा लेते हैं कि उनका बेटा या बेटी ही टॉप पोजीशन पर काबिज रहेंगे और स्कूल के साथ समाज में भी उनका नाम रौशन करेंगे। बड़े होने के बाद उन्हें यह गवारा नहीं कि बेटा घर में ही बैठा रहे। ऐसा होता तो वह अपने दुख का गुस्सा बच्चों पर उतारने लगते हैं, जिसकी वजह से वह तो दुखी रहते ही हैं, साथ ही उनका बच्चा भी टेंशन में हो जाता है और धीरे-धीरे पेरेंट्स की उम्मीदों का बोझ इतना बढ़ जाता है कि वह डिप्रेशन में घिर जाता है और सुसाइड तक कर बैठता है।

अब 'वी' नहीं 'आई' है

भागती दौड़ती जिंदगी भी लोगों को डिप्रेशन का शिकार बना रही है। इसकी जद में सबसे ज्यादा टीन एजर्स हैं। डॉ। धनंजय की मानें तो पहले ज्वाइंट फैमिली हुआ करती थी, दादा-दादी, नाना-नानी बच्चों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते थे। वह बच्चों से इतना घुले-मिले रहते थे कि बच्चे भी अपने अच्छे-बुरे एक्सपीरियंस उनसे शेयर करते थे। मगर अब फैमिली न्यूक्लीयर हो चुकी है। पेरेंट्स वर्किंग हैं और बच्चे पढ़ाई करते हुए। अगर कोई प्रॉब्लम है, तो वह किससे शेयर करें, इसके बारे में वह सोचने लगे हैं। पेरेंट्स की बिजी लाइफ को देखते हुए वह उनसे अपनी प्रॉब्लम शेयर नहीं करते और अकेले ही इसका बोझ उठाए फिरते हैं। धीरे-धीरे यह फीलिंग भी उन्हें डिप्रेस कर देती है।

निगेटिव इवैलुएशन है खास वजह

डॉक्टर्स की मानें तो डिप्रेशन के मरीजों की बीमारी बढ़ने और सुसाइडल अटेंप्ट के केसेज बढ़ने की खास वजह खुद का निगेटिव इवैलुएशन है। इसमें परेशानी तब बढ़ती है जब पेशेंट्स के बताए काम में एक के बाद एक निगेटिव रिजल्ट्स आने लगते हैं। इससे वह खुद का इवैलुएशन निगेटिवली करने लगते हैं और धीरे-धीरे उनका डिप्रेशन लेवल काफी ज्यादा बढ़ जाता है। इस पीरियड में एक वक्त ऐसा आता है जब निगेटिविटी उस पर हावी हो जाती है और वह सुसाइड जैसा कदम उठा लेते हैं।

दो तरह के डिप्रेशन ज्यादा

साइकोलॉजिस्ट डॉ। धनंजय कुमार ने बताया कि इन दिनों लोग दो तरह के डिप्रेशन मूड डिस्ऑर्डर और बाइपोलर डिस्ऑर्डर के शिकार हो रहे हैं। मगर इन दिनों बाइपोलर डिप्रेशन के मामले बढ़ गए हैं। इसमें डिप्रेशन में चला गया व्यक्ति डुअल नेचर में रहता है। कभी वह बिल्कुल मूड डिस्ऑर्डर में जो कंडीशन होती है, वैसा बिहेव करेगा। यानि सैडनेस, होपलेसनेस, पैसिविटी, स्लिपिंग और ईटिंग डिस्टर्बेस का शिकार रहता है। वहीं जब उसका मूड बदलता है तो वह काफी एक्टिव हो जाता है, वहीं उसमें काफी उत्साह, एक्सपेंसिवनेस, चिड़चिड़ापन, टॉक एक्टिवनेस और सेल्फ इस्टीम्ड काफी बढ़ जाता है। शहर में ऐसे मामलों में काफी ज्यादा इजाफा हो गया है।

50 परसेंट डिप्रेशन के शिकार

Posted By: Inextlive