परम्पराओं को तोड़कर मणिकर्णिका घाट पर बेटी ने दी मां को मुखाग्नि

दिव्यांग बेटी को जज्बे को देख हर कोई रह गया स्तब्ध

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VARANASI

मणिकर्णिका घाट पर चिता के सामने हाथ में अग्नि लिए खड़ी दिव्यांग सीमा को जिसने देखा वो वहीं ठिठक कर रुक गया। सबके मन में एक ही सवाल था कि जिस स्थान पर महिलाओं का आना वर्जित है वहां उसे क्यो हैं? जल्द ही उनसे सवाल का जवाब मिल गया। उसने अंतिम संस्कार के विधान को पूरा किया और चिता को अग्नि दी। यह चिता थी सीमा के मां कि बेटा ना होने की वजह से उनकी मौजूदगी में बेटी ही बेटे की भूमिका निभाती रही। जब सांस थमी तो दिव्यांग होने के बावजूद खुद मां की अर्थी को कंधा दिया और चिता को मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया। जिसने भी उसके हौसले को देखा दंग रह गया।

साथ बढ़ीं दुश्वारियां

चंदुआ छित्तुपुर की रहने वाली राधा देवी के घर 40 साल पहले जन्म लेने वाली सीमा ने जिंदगी की दुश्वारियों को बेहद करीब से देखा है। पिता लल्लन विश्वकर्मा ने अपने सामर्थक के मुताबिक पालन-पोषण किया लेकिन दुश्वारियां साथ बढ़ती रहीं। सीमा चलने-फिरने में असमर्थ थी। डॉक्टरों का कहना था पोलियो जैसी लाइलाज बीमारी की शिकार हो गई है। सयानी हुई तो दिव्यांगता के दंश के साथ जीने का हुनर भी सीख गई। जीवन साथी जौनपुर निवासी फुन्ना विश्वकर्मा भी अपने ही जैसा मिला। साथ में मिला संघर्ष का सिलसिला। पिता का साथ छूटा तो मां की देखभाल, पति के साथ जीवन चल रहा था। इसी बीच मंगलवार को वज्रपात हुआ, उसकी सबसे बड़ी ताकत उसकी मां का देहांत हो गया। सीमा गम से सराबोर थी, लेकिन कर्तव्य मार्ग से डिगी नहीं। मां की इच्छानुरुप उनकी अर्थी को कांधा दिया। सीमा जब मां के पार्थिव देह को कांधे पर लेकर श्मशान की ओर चली तो देखने वालों की आंखें नम हो उठीं। हर कोई स्तब्ध था, एक तो बेटी, दूसरे दिव्यांग, मां की अर्थी लिए जा रही थी।

Posted By: Inextlive