कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा कार्तिकी पूर्णिमा कही जाती है।इस दिन महादेव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था।इसलिए इस त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं।


इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो यह महाकार्तिकी होती है, भरणी नक्षत्र होने पर विशेष फल देती है और रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है।इस बार इसके दिनांक 12 नवंबर 2019,मंगलवार को भरणी नक्षत्र में पड़ने से विशेष योग बन रहा है। इसमें पूजा,स्नान, दान आदि का विशेष शुभ फल प्राप्त होगा।पूजन-विधान


इस दिन प्रातः काल गंगा स्नान करके विधि विधान से श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुनी जाती है। इस दिन संध्या काल में भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था।इस दिन गंगा स्नान, दीपदान,अन्य दानों का विशेष महत्व है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे महा पुनीत पर्व कहा है। इसलिए इसमें गंगा स्नान, दीप दान, होम,यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्व है।इस दिन सांय काल में देव मंदिरों, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाये जाते हैं। इसके अलावा गंगाजी के जल में दीपदान किये जाते हैं।

इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो पदमक योग होता है जो पुष्कर में भी दुर्लभ है।इस दिन कृत्तिका पर चंद्रमा और बृहस्पति हो तो यह महापूर्णिमा कहलाती है।इस दिन संध्या काल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जनमादि कष्ट नहीं होता।इस तिथि में कृत्तिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान होता है।इस दिन चन्द्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति,प्रीति,अनुसूया और छमा इन 6 कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए।कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके बैल दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है।इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।इस दिन मेष (भेड़) दान करने से ग्रहयोग के कष्ट का नाश होता है। इस दिन कन्या दान से यह व्रत पूर्ण होता है।कार्तिक पूर्णिमा से प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ पूर्ण सिद्ध होते हैं।इस दिन कार्तिक के व्रत धारण करने वालों को ब्राह्मण भोजन,हवन तथा दीपक जलाने का भी विधान है।इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा कृष्ण का पूजन,दीपदान,शय्यदि का दान तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता है।कार्तिक मास की पूर्णिमा वर्ष की पवित्र पूर्णमासी में से एक है।गंगाजी में ऐसे करें स्नान

कार्तिक पूर्णिमा स्नान की परंपरागत खड़े होकर स्नान करने का विधान है।कार्तिक स्नान की विधि के अनुसार जो लोग गृहस्थ है,वे काले तिल और आंवले के चूर्ण को शरीर पर लगाकर स्नान करें,जबकि सन्यासी व्यक्ति तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मिट्टी को अपने शरीर में लगाकर स्नान करें।स्नान के पश्चात शुद्ध वस्त्र पहनकर विधिपूर्वक भगवान विष्णु की आराधना पूजा करनी चाहिए।कार्तिक मास में सिर पर तेल लगाना वर्जित है।पौराणिक संदर्भपुराणों में यह कहा गया है कि इसी तिथि पर शिवजी ने त्रिपुरा नामक राक्षस को मारा था।एक बार त्रिपुर राक्षस ने प्रयागराज में एक लाख वर्ष तक घोर तप किया।इस तप के प्रभाव से सब चराचर सुर देवता भयभीत हो गए।अंत में सभी देवताओं ने मिलकर एक योजना बनाई कि अप्सराओं को भेजकर उसका तप भंग करवा दिया जाये पर उन्हें इससे कोई सफलता नहीं मिली।अंत में यह सब देख ब्रह्मा जी उसके समक्ष गए और उससे वर मांगने के लिए कहा।उसने मनुष्य तथा देवताओं द्वारा न मारे जाने का वरदान मांग लिया।ब्रह्मा जी के इस वरदान से त्रिपुर तीनों लोकों में निर्भय होकर घोर अत्याचार करने लगा।देवताओं के षड्यंत्र से एक बार उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई कर दी।शिव और त्रिपुर में भयंकर युद्ध हुआ।अंत में  भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से उसका वध किया।
Dev Deepawali 2019: इस दिन नारायण ने लिया था मत्स्य अवतार, दान करने से मिलता है 10 यज्ञ के बराबर फलतब से इस दिन का महत्व और बढ़ गया, इसी दिन त्रिपुरोत्सव भी होता है। इसी दिन खीर दान का विशेष महत्व है।खीर का दान 24 उंगली के बर्तन में दूध भरकर उसमें सोने अथवा चांदी की बनी मछ्ली छोड़कर किया जाता।काशी में यह तिथि देव दीपावली महोत्सव के रूप में मनाई जाती है।-ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्माबालाजी ज्योतिष संस्थान, बरेलीDev Deepawali 2019: तुलसी पर व गंगा में करें दीपदान, सत्यनारायण की कथा सुनने का है विशेष महत्व

Posted By: Vandana Sharma