देवेन शर्मा का जन्म 1955 में झारखंड में हुआ. देवेन की पढ़ाई धनबाद रांची और जमशेदपुर में हुई. वह धनबाद के एक क्रिश्चियन स्कूल डी नोबिली स्कूल से पढ़े थे. देवेन ने 1977 में रांची के बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मेसरा से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली थी. हायर एजुकेशन के लिए वह अमेरिका गए जहां विसकॉन्सिन से उन्होंने मास्टर्स डिग्री ली. 1987 में उन्होंने ओहायो से मैनेजमेंट में पीएचडी की. उन्होंने शुरूआती दिनों में मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में काम किया. बाद में वह एक मैनेजमेंट कंसल्टेंट कंपनी में चले गए. शर्मा को 2007 में एसएंडपी का अध्यक्ष बनाया गया था. वह एसएंडपी की भारतीय इकाई क्रिसिल के बोर्ड के चेयरमैन भी हैं.


अमेरिका भले ही दुनिया का दादा बनता हो, लेकिन इंडिया के आगे वह घुटने टेक ही देता है. पिछले दिनों जब ओबामा इंडिया कि विजिट पर आए थे तो हजारों जॉब्स मांगकर ले गए और अब जब अमेरिका के इतिहास में पहली बार उसकी क्रेडिट रेटिंग गिराई गई है तब भी इस अहम फैसले के पीछे एक इंडियन ही है. अमेरिका की लोन गुडविल घटाने के ऐतिहासिक फैसले से जुड़ी प्रक्रियाओं में झारखंड में रहने वाले देवेन शर्मा की अहम भूमिका है. दरअसल, स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने यह बड़ा कदम देवेन शर्मा के नेतृत्व में उठाया है.अमेरिका पर भी नजर
2002 में वह मैग्रा हिल्स में चले गए. यह कंपनी ही स्टैंडर्ड एंड पूअर (एसएंडपी) की मूल कंपनी है. इसी एसएंडपी ने अमेरिका की रेटिंग गिराकर तहलका मचा दिया. अपनी मेहनत और तेज बुद्धि से देवेन शर्मा 2007 में एसएंडपी के हेड बन गए. उस समय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को आलोचनाएं झेलनी पड़ रही थीं क्योंकि उनकी रेटिंग गलत निकलती जा रही थी और कई ऐसी कंपनियां डूब गई थीं जिनकी रेटिंग बढिय़ा थी. शर्मा की टीम पिछले काफी समय से अमेरिका के घटनाक्रम पर नजर रखे हुए थी. उन्होंने पिछले महीने अमेरिकी कांग्रेस की एक बैठक में भाग भी लिया था, लेकिन वह चुप्पी साधे रहे और किसी को भनक तक नहीं लगने दी कि वह और उनकी टीम अमेरिका की रेटिंग घटाने जा रही है. शुक्रवार को उन्होंने धमाका कर दिया. अमेरिकी प्रशासन ने जब इस रेटिंग का विरोध करते हुए उसके आकलन को खामियों से भरपूर बताया, उस समय भी शर्मा ने आगे आकर एसएंडपी के कदम का बचाव किया. शर्मा ने अमेरिका की नाराजगी वाले रिएक्शन पर कहा कि अमेरिका की यह प्रतिक्रिया आनी ही थी. कोई अन्य देश या कंपनी के साथ ऐसा होता, तो उसकी भी यही प्रतिक्रिया रहती.   सबसे आगे हिंदुस्तानीदिलचस्प तथ्य यह है कि 2008 में ग्लोबल बैंकिंग समूह सिटीग्रुप को फाइनेंशियल क्राइसिस से निकालने में एक अन्य इंडियन एग्जीक्यूटिव विक्रम पंडित की मुख्य भूमिका थी. हाल में इंडियन ओरिजिन के अंशु जैन को जर्मनी के बैंकिंग समूह ड्यूश बैंक का सह मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया है.

Posted By: Divyanshu Bhard