भारत एक ऐसा देश है जहां 21 सदी में भी लड़कियों को खुल कर जीने की आजादी नही हैं। वह अपने हिसाब से रह नहीं सकती हैं। वह अपने मन के कपड़े नहीं पहन सकती हैं। उन्‍हें हर जगह आने जाने में रोक-टोक है। पर यह सिर्फ लड़कियों के लिए ही लागू होता है। भारत में लड़को पर कोई रोक टोक नहीं लगाई जाती है। यहां हर घर की बहू को लड़की पैदा करने पर ताने दिए जाते हैं और लड़का पैदा करने पर उसे पलकों पर बिठाया जाता है। यह सवाल सभी के लिए है कि यहां लडकियों पर ही क्‍यो होती हैं पाबंदियां।


एक अध्यन की रिपोर्ट में आया सच सामनेभारत में लड़कियों को और देशों के मुकाबलें कम आजादी होती है। कहा जाएं तो आजादी न के बराबर होती है। भारत में लड़कियों को लिंग भेदभाव, सामाजिक पाबंदी का सामना करना पड़ता है। इन्हीं कारणों से ज्यादातर भारतीय लड़कियां लड़कों की तुलना में अपने आपको कष्ट यानी नुकसान पहुंचा लेती है। लेंसेट अर्लियर द्वारा प्रकाशित किए एक अध्ययन के मुताबिक लड़कियां अपनी किशोरावस्था में खुद को लड़कों से अधिक नुकसान पहुंचाती है। 15 से 20 वर्ष की आयु वाली लड़िकयों पर किया गया अध्यन


मेडिकल जर्नल लेंसेट अर्लियर ने किशोरावस्था के बच्चों को लेकर रिसर्च की है। एक्सपर्ट का कहना है कि अध्ययन के अमुसार इनका खुद को नुकसान पहुंचाना कोई मानसिक रोग नहीं होता है। यह वो भेदभाव और सैकड़ो पाबंदी होती है जिन्हें वो बचपन से झेलती आ रही हैं। अध्ययन बताता है कि 50 फीसदी से अधिक लड़कियां जिनकी आयु 15-20 कि बीच है वो इसी आयु के लड़कों की तुलना में अपने आपको ज्यादा हानि पहुंचाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार इन कारणों की वजह से इस आयु समूह की महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबलें कम है।कैसे हम लाएं लिंग व्यवहार में बदलाव

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डॉ. विक्रम पटेल ने बताया कि लड़कियां आत्महत्या का कदम भी उठाती है। जब उनकी इच्छाएं पूरी नहीं होती। उन्होंने बताया इमोशल होने पर या किसी रिलेशनशिप में होने पर कुछ गलत होता है तो ये कदम उठाते है। आत्महत्या करनेवाले मानसिक रूप से बीमार होते है।यह समाज के लिए एक बड़ी समस्या है। जिसे बदलाव की बहुत जरूरत है। इससे एक सवाल उठता है हम कैसे लिंग व्यवहार में बदलाव ला लकते है।

Posted By: Prabha Punj Mishra