- सोच बदलो

- दिव्यांगों के लिए सरकारी कार्यालयों में नहीं हैं रैंप और लिफ्ट

- विकास भवन और कलेक्ट्रेट में चढ़ते हैं मुसीबत की सीढि़यां

ALLAHABAD: जब सरकारी तंत्र ही दिव्यांगों के बारे में सोचने को तैयार नहीं है तो भला वे किससे अपना दर्द कहें। सरकार व सरकारी अफसर फाइलों में योजनाएं बनाकर कैद करने और मुट्ठीभर लोगों को फैसिलिटेट करके ही खुश हो रहे हैं। दिव्यांगों के प्रति सिस्टम की संवेदनशीलता कहीं नहीं दिख रही है। रैंप व लिफ्ट विहीन सरकारी कार्यालय इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।

विकास भवन जाने से डर

सैकड़ों योजनाएं लागू करने वाले विकास भवन जाने मात्र से ही दिव्यांग घबराते हैं। इस तीन मंजिला इमारत में विकलांग कल्याण विभाग को छोड़कर पब्लिक वेलफेयर से जुड़े सभी विभाग ऊपरी मंजिल पर हैं। इसके लिए लोगों को सीढियां चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है। दिव्यांगों के लिए लिफ्ट की बात तो दूर यहां रैंप तक नहीं बना है।

कलेक्ट्रेट में बने रैंप

कलेक्ट्रेट में भी प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालय के सामने रैंप नहीं बनाए गए हैं। एग्जाम्पल के तौर पर एडीएम सिटी, एडीएम प्रशासन, एडीएम वित्त आदि ऑफिस में जाने के बाद दिव्यांगों को परिजनों या हेल्पर का सहारा लेना पड़ता है। यहां बनी सीढि़यां कई साल पुरानी हैं, जिनके बीच का गैप बहुत ज्यादा है। इससे दिव्यांगों को ज्यादा तकलीफ उठानी पड़ रही है।

इंदिरा भवन का हाल न पूछो

सिविल लाइंस स्थित नौ मंजिला इंदिरा भवन में भी रैंप मौजूद नहीं है। ऊपरी मंजिल में बने कार्यालयों में जाने के लिए लिफ्ट का सहारा लेना पड़ता है। अगर बिजली की आपूर्ति या लिफ्ट बंद है तो कई बार दिव्यांगों को निराश होकर लौटना पड़ता है।

चढ़ते हैं मुश्किलों की सीढ़ी

- योजनाओं के गढ़ विकास भवन सिर्फ विकलांग कल्याण विभाग ही है ग्राउंड फ्लोर पर

- अन्य योजनाओं के लाभ के लिए चढ़नी पड़ती है मुसीबतों की सीढ़ी

- किसान है तो कृषि विभाग, छात्र है तो समाज कल्याण विभाग जाना पड़ता है

- अल्पसंख्यक दिव्यांगों को संबंधित विभाग तक पहुंचना है टेढ़ी खीर

- खाता खुलवाने के लिए भी तीन मंजिला इमारत पर होती है मुश्किल

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रैंप नहीं आसान, लिफ्ट का प्रपोजल

अधिकारियों की मानें तो विकास भवन की बहुमंजिली इमारत में लिफ्ट लगवाए जाने का प्रपोजल काफी पहले भेजा जा चुका है, ताकि बीमार और दिव्यांग आसानी से ऊपरी की मंजिल तक पहुंच सकें। रैंप के बारे में अधिकारियों का तर्क है बिल्डिंग 25 साल पुरानी है। उस समय डिजाइन बनाते समय रैंप मौजूद नहीं था। वर्तमान में रैंप का निर्माण करवाना इतना आसान नहीं है।

दिव्यांगों की पहुंच से दूर हैं योजनाएं

सिस्टम के पास दिव्यांगों के फायदे की कई योजनाएं हैं लेकिन इनका लाभ मुट्ठीभर को ही मिल पाया है। इसका सीधा सा कारण जागरुकता का अभाव है। आइए हम बताते हैं कि कौन-कौन सी योजनाएं हैं और मौजूदा वित्तीय वर्ष में उनके कितने लाभार्थी हैं-

दिव्यांग पेंशन- कम से कम 40 फीसदी विकलांगता से ग्रसित 18 से 60 वर्ष के ऐसे लोग जिनकी मासिक आय एक हजार से कम हो, उन्हें तीन सौ रुपए मासिक अनुदान दिया जाता है।

लाभार्थी- 19140

सहायता उपकरण- डॉक्टर की संस्तुति पर छह हजार मूल्य तक ट्राइसाइकिल, व्हीलचेयर, कान की मशीन निशुल्क दी जाती है।

लाभार्थी- 300

शादी-पुरस्कार योजना- नवविवाहित दिव्यांग दंपति को 15 से 20 हजार रुपए की पुरस्कार राशि दी जाती है।

- इसके अलावा भारत सरकार की निरामय योजना को छोड़ दिया जाए तो घरौंदा योजना, ज्ञानप्रभा, उद्यम प्रभा और राज्य सरकार की विशिष्ट की राज्य स्तरीय पुरस्कार योजना के लाभार्थी ढूंढे नहीं मिल रहे हैं।

लाभार्थी- 25

दुकान निर्माण योजना- निजी भूमि होने पर बीस और भूमि विहीन होने पर 10 हजार रुपए राशि दी जाती है।

लाभार्थी- दस

निशुल्क यात्रा- राज्य परिवहन निगम की बसों में सर्टिफिकेट होने पर निशुल्क यात्रा कराई जाती है।

कुष्ठावस्था पेंशन- कुष्ठ रोग के कारण दिव्यांगता होने पर राज्य सरकार द्वारा 2500 रुपए महीना पेंशन दी जाती है। यह योजना बीपीएल के लिए ही है।

- गवर्नमेंट को दिव्यांगों के बारे में सोचना चाहिए। शहर में ऐसी कई सरकारी इमारते हैं जहां रैंप न होने से दिव्यांगों को निराश होना पड़ता है। उन्हें सहारे की जरूरत पड़ती है। रैंप हों तो बिना सहारे दिव्यांग अपना काम कर सकते हैं।

डॉॅ जितेंद्र जैन, आर्थाेपेडिक सर्जन, त्रिशला फाउंडेशन

- गाइडलाइन के मुताबिक वर्तमान में बनने वाली इमारतों में रैंप होना अनिवार्य है। विकास भवन में आने वाले दिव्यांगों को दिक्कत होती है। लिफ्ट के लिए प्रपोजल भेजा जा चुका है। पुरानी बिल्डिंग होने की वजह से रैंप बनाना आसान नहीं है।

अमित सिंह, जिला विकलांगजन विकास अधिकारी

Posted By: Inextlive