- उर्दू बाजार में ठहरती थी मुगल बादशाह जहांगीर की फौज

- उसके लिए जरूरी सामान के लिए वहीं सजता था बाजार

- जमाने के साथ बदला, लेकिन आज भी सजता है मुगलों का बाजार

GORAKHPUR: रमजान का तीसरा अशरा सोमवार से शुरू हो गया। अब महज नौ या दस दिनों के बाद ईद मनाई जाएगी। इसके लिए मार्केट में तैयारियां जोरो शोर से शुरू हो चुकी हैं। शहर के तमाम बाजार इसके लिए सज चुके हैं। ईद की खरीदारी भी जोरों पर है। मुगल काल में भी यह बाजार शबाब पर था, इससे आसपास रहने वालों की हर जरूरत पूरी हुआ करती थी। वक्त बदला तो इस बाजार की रंगत भी बदल गई। आधुनिकता के रंग में बाजार ने भी फैशन की चादर ओढ़ ली। मगर मुगल बादशाह जहांगीर के वक्त से बना यह बाजार आज भी गुलजार है और यहीं से लोग ईद की खरीदारी करना पसंद भी करते है।

हर तरह के सामान मौजूद

बरसों से सज रहा यह बाजार काफी खास है। दूर-दराज में रहने वाले लोग भी यहां से खरीदारी करने के लिए आते हैं। आस-पास के क्षेत्रों में यह बड़े बाजार के तौर पर शुमार किया जाता है। ज्वैलरी, कपड़े, बैग, चूडि़या, रेडीमेड गारमेंट, क्रॉकरी से लेकर इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स तक की सारी जरूरत इस बाजार में आकर पूरी हो जाती है। वहीं जूता, चप्पल, प्लास्टिक व अन्य धातुओं के बर्तन, शीशे के समान, टोपी, इत्र, आर्टिफिशियल ज्वैलरी, बेल्ट, चश्मा यहां तक कि सजावट के लिए प्लास्टिक के फूल तक यहां वाजिब दाम पर मिल जाएंगे। शहर के अहम बाजारों में शुमार गोलघर के मुकाबले यहां सस्ते व बजट में कपड़े मिल जाते हैं।

ईद में टेंप्रेरी मार्केट से गुलजार

यूं तो सारा मार्केट फिक्स दुकानों से खचा-खच भरा हुआ है। मगर ईद के मौके पर यहां का नजारा कुछ और ही होता है। यहां रेती से लेकर पूरब में मियां बाजार, पश्चिम में लाल डिग्गी, उत्तर में नखास और दक्षिण में घंटाघर तक टेंप्रेरी मार्केट से सज जाता है। जहां मुनासिब और सस्ते दामों में कपड़े, जूते से लेकर क्रॉकरी और डेली यूज आइटम्स भी अवेलबल रहते हैं। इस मार्केट की सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ ईद के मौके पर ही सजता है, जो ईद की चांद रात तक खुला रहता है। इस दौरान दूर-दराज से लोग खरीदारी के लिए यहां पहुंचते हैं।

यह है ऐतिहासिक तथ्य

रिवायत के मुताबिक इस बाजार का निर्माण मुगल वंश के बादशाह जहांगीर के शासन काल में हुआ। बादशाह जहांगीर का फौजी लश्कर यहीं ठहरा करता था। रोजमर्रा के सामान जुटाने के लिए एक बाजार की जरूरत पड़ी, तो इसके लिए यह बाजार बनाया गया। धीरे-धीरे इस अस्थायी बाजार ने स्थायी रूप अख्तियार कर लिया। यहीं से सटे राप्ती नदी बहा करती थी, जो धीरे-धीरे सरककर शहर के दूसरी ओर जा पहुंची है। मुगलिया सलतनत की फौज हमेशा ही दरिया के किनारे ही पड़ाव डालती थी। इस अहम वजह से उर्दू बाजार की नींव पड़ी। उर्दू शब्द तुर्की भाषा से लिया गया है, इसका अर्थ है फौज या छावनी। उर्दू बाजार का अर्थ है फौज का बाजार। बादशाह मुअज्जम शाह ने इस बाजार के पास जामा मस्जिद बनवाई, जो घंटाघर में मौजूद है।

Posted By: Inextlive