-डॉक्टर्स भी जेनेरिक दवाइयों से बनाते हैं दूरी

-ब्रांडेड कंपनियों के सामने फीका पड़ा जेनेरिक दवाइयों का प्रचलन

मेरठ। जेनरिक दवाइयों की आपूर्ति को लेकर आए सीएम के आदेश जमीनी हकीकत से जुदा नजर आ रहे हैं। शहर में जेनेरिक दवाई न केवल आम लोगों की पहुंच से बाहर है, बल्कि ब्रांडेड कंपनियों और डॉक्टर्स के एकाधिकार के चलते जरूरतमंद लोगों तक जेनरिक दवाइयां पहुंचना एक सपने से अधिक कुछ नहीं है।

फार्मासिस्ट की भारी कमी

दरअसल, मानकों के अनुसार के फार्मासिस्ट को ही मेडिकल स्टोर का लाइसेंस दिए जाने का प्रावधान है। जबकि प्रदेश में फार्मासिस्ट की बेहद कमी है। एक आंकड़े के अनुसार प्रदेश में केवल 45000 ही फार्मासिस्ट हैं, जबकि मेरठ में यह आंकड़ा 1500 से 2000 से ऊपर नहीं पहुंचता है। ऐसे में जेनेरिक दवाओं के वितरण के लिए फार्मासिस्ट की संख्या के सापेक्ष डिमांड अधिक होगी।

बिल से मिलेगी असली दवा

हैरान करने वाली बात यह है कि अभी भी 80 प्रतिशत पेशेंट्स खरीदी गई दवाइयों का बिल नहीं लेना चाहता। जबकि इससे कई फायदे हो सकते हैं।

ये हैं फायदे

-बिल से शॉप लाइसेंस का पता चलेगा।

-विक्रेता केवल असली दवाई ही बेचेगा।

-सरकार को रेवेन्यू मिल सकेगा।

डॉक्टर नहीं लिखते जेनेरिक दवा

आपकी किसी भी बीमारी के लिए डॉक्टर जो दवा लिखता है। ठीक उसी दवा के सॉल्ट वाली जेनेरिक दवाएं उससे काफी कम कीमत पर आपको मिल सकती हैं। कीमत का यह अंतर 5 से 10 से दस गुना तक हो सकता है। 30 प्रतिशत लोगों को भी मालूम नहंीं है कि देश में लगभग सभी नामी दवा कंपनियां ब्रांडेड के साथ-साथ कम कीमत वाली जेनेरिक दवाएं भी बनाती हैं लेकिन अधिक लाभ के चक्कर में डॉक्टर और कंपनियां लोगों को इस बारे में कुछ बताते नहीं हैं और जानकारी के अभाव में गरीब भी केमिस्ट से महंगी दवाएं खरीदने को मजबूर होना पड़ता है।

नहीं किया जाता पेटेंट

जेनेरिक दवा बिना किसी पेटेंट के बनाई और वितरित की जाती हैं यानी जेनेरिक दवा केफॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है, लेकिन उसके प्रोडक्ट पर पेटेंट नहीं हो सकता। अंतरराष्ट्रीय मानकों से बनी जेनेरिक दवाइयों की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों से कम नहीं होती, जिनकी आपूर्ति दुनियाभर में भी की जाती है और यह भी उतना ही असर करती हैं जितना ब्रांडेड दवाएं करती हैं।

बेहद सस्ती होती है दवा

असल में ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की कीमतों में धरती आसमान का फर्क होता है। कभी-कभी तो यह फर्क 90 प्रतिशत तक होता है। जैसे यदि ब्रांडेड दवाई की 15 टेबलेट्स गोलियों का एक पत्ता 700 रुपए का है, तो एक गोली की कीमत करीब 47 रुपये हुई। इसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की 10 गोलियों का पत्ता करीब 40 रुपए में ही उपलब्ध है।

मोटे कमीशन का हेरफेर

दवा कंपनियां ब्रांडेड दवा से बड़ा मुनाफा काटती हैं। दवाओं की कंपनियां अपने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्ज के माध्यम से डॉक्टर्स को अपनी ब्रांडेड दवा लिखने के ऑब्लाइज करती हैं। इसी आधार पर डॉक्टर्स नजदीकी मेडिकल स्टोर को दवा पाई जाती है। यही कारण है कि यही कारण है कि डॉक्टर जेनेरिक दवा लिखते ही नहीं हैं। जानकारी होने पर कोई व्यक्ति अगर स्टोर से जेनेरिक दवा मांग भी ले तो दवा वह उसकी उपलब्धता से इंकार कर देते हैं।

जब तक डॉक्टर्स जेनरिक दवाओं को प्रीफर नहीं करेंगे या फिर फार्मासिस्ट की स्थिति को नहीं सुधारा जाएगा। तब तक व्यवहारिक तौर पर जेनेरिक दवाइयों को लेकर मुश्किल बनी रहेगी।

-रजनीश कौशल, महामंत्री ड्रग्स एंड केमिस्ट एसोसिएशन मेरठ

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जेनेरिक दवाइयों को प्रीफर किया जाएगा। इसके लिए आईएमए के सर्कुलेशन जारी किया जाएगा। जेनरिक दवा पाना लोगों का हक है।

-डॉ। वीरोत्तम तोमर, अध्यक्ष आईएमए

Posted By: Inextlive