RANCHI: अगर आप भी रिम्स के स्किन डिपार्टमेंट में इलाज के लिए जा रहे हैं और डॉक्टर दवाई लिखते हैं तो ढूंढने से भी दवाएं दूसरी दुकानों में नहीं मिलेंगी। चूंकि सारी दवाएं एक ही दुकान में उपलब्ध हैं। ऐसे में इलाज के बाद दवाएं भी उसी दुकान से खरीदने का दबाव बनाया जाता है। इस वजह से इलाज के लिए आने वाले मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। वहीं उनकी जेब पर डाका भी पड़ रहा है सो अलग। इसके बावजूद रिम्स प्रबंधन डॉक्टरों की इस मनमानी पर रोक नहीं लगा पा रहा है।

प्रिंट रेट पर ही दवाएं

कुछ दवा दुकानों में दवा खरीदने पर डिस्काउंट दिया जाता है। जहां पर दवा खरीदने पर 20 परसेंट तक कम पैसे चुकाने पड़ते हैं। लेकिन फिक्स स्टोर से दवाएं खरीदने पर मरीजों को कोई डिस्काउंट नहीं दिया जाता। आखिर डॉक्टर साहब का कमीशन भी उसमें जो जुड़ा होता है। यही वजह है कि मरीजों को प्रिंट रेट से एक रुपया भी कम नहीं किया जाता। मजबूरी में उन्हें प्रिंट रेट पर ही दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं।

एक ही दुकान में स्टॉक

ब्रांडेड दवाएं तो महंगी होती हैं। लेकिन ये दवाएं अन्य दुकानों में मिलने के बजाय केवल एक दुकान में ही स्टॉक की जाती हैं। अगर एकाध दवाएं दूसरे स्टोर में मिल भी जाएं तो बाकी दवाओं के लिए उसी दुकान में जाना पड़ता है। इसका पूरा फायदा डॉक्टर और दुकानदार को मिल रहा है, जिससे इतना तो साफ है कि दवा कंपनी ने पब्लिक को लूटने का पूरा इंतजाम कर रखा है।

केस-1

अविनाश कुमार को चेहरे पर पिंपल्स हो गए थे। लगातार बढ़ते पिंपल्स के साथ वह डॉ। एसएस चौधरी को दिखाने पहुंचे, जहां डॉक्टर ने उन्हें दवाएं प्रेसक्राइब करने के बाद बुद्धा फार्मा भेज दिया। अन्य दुकानों में तो दवाएं नहीं मिलीं। मजबूरी में उसी दुकान से दवा खरीदनी पड़ी।

केस-2

न्यूरो ओपीडी में इलाज के लिए आशीष कुमार को डॉ। सीबी सहाय ने देखने के बाद दवा लिखी। साथ ही उन्हें पलामू मेडिकल का विजिटिंग कार्ड भी पकड़ा दिया और दवाएं वहीं से खरीदने को कहा। डॉक्टर ने कहा कि सारी दवाएं एक ही जगह मिल जाएंगी।

Posted By: Inextlive