-दवा के नाम पर मरीजों की जेब पर डाका डालने वाले डॉक्टर्स पैथोलॉजी जांच में खाते हैं कमीशन

-कमीशन खाने लिए अपनी सेटिंग वाली पैथोलॉजी पर ही मरीजों को करते हैं प्रिफर

LUCKNOW: लखनऊ में कमीशन का धंधा मरीजों की जेब की सेहत बिगाड़ रहा है। यह कमीशन सीधे 'धरती के भगवान' की जेब में जाता है। कमाई के लिए जरूरत से अधिक जांचें कराने का भी खेल होता है। आलम यह कि बड़े-बड़े अस्पतालों में जांच की सुविधा होने के बावजूद सरकारी अस्पतालों के आस-पास बने डायग्नोस्टिक सेंटर्स की मौजूदगी कमीशन के इस खेल की ओर इशारा करते हैं।

80 परसेंट तक फिक्स होता है कमीशन

प्राइवेट पैथोलॉजी एंड डायग्नोस्टिक सेंटर्स मरीज भेजने वाले डॉक्टर्स को 20 से 80 परसेंट तक का कमीशन देते हैं। इसीलिए 500 रुपए में होने वाली जांच 2500 रुपए की पहुंच जाती है। यही हाल अन्य जांचों का भी है। डॉक्टर्स को कमीशन के बदले बाकायदा एक पैकेज भी ऑफर होता है। बीमारी का डर या सरकारी पैथोलॉजी में गुणवत्ता की कमी को लेकर मरीजों को प्राइवेट पैथोलॉजी में जाने को मजबूर किया जाता है। आईएमए भी समय-समय पर ऐसी प्रवृत्ति पर हैरानी जताता रहा है। लेकिन डॉक्टर्स की लालची प्रवृत्ति मरीजों की जेब पर लगातार डाका डाल रही है। इस कमीशन के गंदे खेल में 90 परसेंट तक सरकारी और प्राइवेट डॉक्टर शामिल हैं। प्राइवेट में इलाज कराने का सीधा सा मतलब है कि उनकी बताई हुई पैथोलॉजी से ही जांच करानी होगी।

पैथेलॉजी जांच के नाम पर 'खेल'

जांच सरकारी प्राइवेट

एमआरआई 3500- 5 से 7 हजार

सीटी स्कैल 500 -2500 से 3000

अल्ट्रासाउंड 100-500 से 700

हेपेटाइटिस बी 100-800

एचआईवी नि:शुल्क- 500

हार्मोन टेस्ट 200 - 850

सैलरी से अधिक मिलती कमीशन

केजीएमयू में तो कमीशन के इस खेल में टीचर्स से लेकर कई रेजीडेंट तक शामिल हैं। कुछ रेजीडेंट जानबूझकर ऐसा करते हैं तो कुछ से सीनियर्स दबाव डालकर करवाते हैं। कई सीनियर प्रोफेसर पढ़ाई के दौरान ही रेजीडेंट्स पर अपनी सेटिंग वाली पैथोलॉजी सेंटर से जांच कराने को मजबूर करते हैं। रेजीडेंट कमीशन के लालच से यह खेल शुरू करते हैं। चौक में बड़े-बड़े कई पैथोलॉजी सेंटर तो रेजीडेंट डॉक्टर्स को मिलने वाली सैलरी से ज्यादा उन्हें कट यानी कमीशन देते हैं। केजीएमयू की तमाम कोशिशों के बावजूद ट्रॉमा सेंटर, बाल रोग विभाग, सर्जरी के डॉक्टर्स की पैथोलॉजी सेंटर्स से सेटिंग है। पैथोलॉजी के एक कर्मचारी के अनुसार क्वीन मेरी, बाल रोग विभाग, सर्जरी व अन्य विभागों के डॉक्टर्स को बाकायदा चेक से पेमेंट किया जाता है। हर माह उनकी सरकारी सैलरी से ज्यादा कमीशन पैथोलॉजी सेंटर डॉक्टर्स को देते हैं।

बड़ी जांच तो बड़ा कमीशन

एमआईआरआई, सीटी स्कैन के लिए निजी डायग्नोस्टिक सेंटर्स ने कमीशन के बिजनेस को सबसे ज्यादा बढ़ावा दिया। जांच में अधिकतम 500 रुपए लगते हैं, लेकिन डॉक्टर को 500 से लेकर 2000 रुपए तक का कमीशन दिया जाता है। जितनी ज्यादा जांचें उतना अधिक कमीशन। फिर चाहे जांच के आधार पर मरीज का इलाज होना हो या न हो। बलरामपुर, सिविल, लोहिया, केजीएमयू के मरीजों को प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेँटर्स पर जांच के लिए भेजा जाता है। जबकि इन सभी जगहों पर सीटी स्कैन की सुविधा है और केजीएमयू व लोहिया हॉस्पिटल में एमआरआई की भी सुविधा है। बलरामपुर और सिविल के मरीजों को लोहिया हॉस्पिटल भेजे जाने का नियम है। इसके अलावा सामान्य जांच जैसे हीमोग्लोबिन, टीएलसी, डीएलसी, ब्लड शुगर, एसजीपीटी, एसजीओटी, थायरॉयड फंक्शन टेस्ट, एचबीए1सी, प्लेटलेट काउंट में 20 से 40 परसेंट तक का कमीशन होता है।

कमीशन का खेल रोकने को थी व्यवस्था

सरकार ने सरकारी अस्पतालों में जांच और एक्स-रे की सुविधा फ्री करने का निर्णय इसीलिए लिया था कि गरीब मरीजों और जरूरतमंदों को न भटकना पड़े। जिसके बाद तेजी से सरकारी अस्पतालों में जांच कराने के लिए मरीजों की लाइन लग गई। इसके बाद तो डॉक्टर्स ने तो सरकारी जांचों की गुणवत्ता पर ही सवालिया निशान लगा दिया। केजीएमयू से लेकर सिविल, बलरामपुर और लोहिाय अस्पताल तक के डॉक्टर इसमें शामिल हैं।

प्राइवेट मरीज की जांच सरकारी में

सरकारी डॉक्टर तो मरीजों को कट के चक्कर में प्राइवेट सेंटर्स पर भेज देते हैं। जबकि यही सरकारी डॉक्टर मरीज को जब प्राइवेट अस्पताल ले जाते हैं तो उनकी जांच सरकारी अस्पताल में कराते हैं। लोहिया के डॉ। अरुण कुमार श्रीवास्तव ने भी यही किया था। सर्जिकल क्लीनिक में शिवम का ऑपरेशन किया था और उनकी जांच लोहिया अस्पताल में कराई थी।

इन डायग्नोस्टिक सेंटर्स में न कराएं जांच

मरीज का इलाज बहुत हद तक डायग्नोस्टिक रिपो‌र्ट्स पर डिपेंड करता है। जिस तरह सही जांच रिपोर्ट के आधार पर मरीज की जान बचाई जा सकती है, उसी तरह गलत रिपोर्ट से मरीज की जान भी जा सकती है। सिटी में चल रही ज्यादातर पैथोलॉजी सेंटर्स का कोई भरोसा नहीं है। यह बात एलएपीपीएम की रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट सुनकर आप चौंक जाएंगे। लखनऊ एसोसिएशन आफ प्रैक्टिसिंग पैथोलॉजिस्ट एंड माइक्रोबायोलॉजिस्ट की साल भर पहले कराए गए सर्वे के अनुसार सिटी में लगभग 600 में से सिर्फ 150 पैथोलॉजी सेंटर्स क्वालीफाइड डॉक्टर्स की सुपरविजन में चल रही हैं बाकी 450 लैब अनट्रेंड लोग चला रहे हैं। एसोसिएशन के डॉक्टर्स की सलाह है कि उन पैथोलॉजी सेंटर्स में जांच न कराएं जहां पर क्वालीफाइड पैथोलॉजिस्ट डॉक्टर न हो।

पहले ले जानकारी फिर कराएं जांच

लखनऊ एसोसिएशन ऑफ प्रैक्टिसिंग पैथोलॉजिस्ट एंड माइक्रोबायोलॉजिस्ट के प्रेसीडेंट डॉ। पीके गुप्ता के अनुसार किसी भी लैब में जांच कराने से पहले डॉक्टर के बारे में जानकारी जरूर लें। यदि पैथोलॉजिस्ट मौजूद हो तभी जांच कराएं। साथ ही रिपोर्ट लेने के बाद वहां के डॉक्टर से अपनी जांच के बारे में चर्चा जरूर करें। डॉक्टर का नाम और डिग्री भी देखें। एमडी पैथोलॉजी, एमडी माइक्रोबायोलॉजी या डीपीटी होना चाहिए। लैब के अंदर वहीं जांच की सुविधाएं हैं कि नहीं। जहां डॉक्टर हो वहीं सैम्पल दें। यदि सिर्फ कलेक्शन सेंटर हो तो वहां सैम्पल न दें।

कलेक्शन सेंटर से सावधान

डॉक्टर्स की माने तो कलेक्शन सेंटर्स पर सैम्पल देना ठीक नहीं हैं। क्योंकि कलेक्शन सेंटर से घंटों बाद दूर स्थित सैम्पल पेथोलॉजी में पहुंचाया जाता है। ट्रांसपोर्ट के दौरान सैम्पल खराब हो सकता है। दो से तीन घंटे में जांच न की गई और कोल्ड चेन मेनटेन नहीं किया गया तो आरबीसी टूट सकते हैं जिससे रिपोर्ट बदल सकती है और फिर उसी से मरीज का इलाज होगा जो कि खतरे से खाली नहीं है। शहर में बड़ी संख्या में ऐसे कलेक्शन सेंटर्स का जाल फैला हुआ है जिनकी रिपोर्ट की गुणवत्ता का कोई भरोसा नहीं है।

सरकारी अस्पतालों के सामने फर्जी पैथोलॉजी

बलरामपुर हॉस्पिटल हो या फिर सिविल या लोहिया हॉस्पिटल। सभी के सामने दर्जनों पैथोलॉजी सेंटर्स और कलेक्शन सेंटर्स चल रहे हैं। जिनमें सरकारी डॉक्टर्स की मिलीभगत से जांच हो रही है। जबकि सरकारी हॉस्पिटल्स में कम रेट में विश्वसनीय जांच होती है। दलालों और कमीशन के चक्कर में ये पैथोलॉजी सेंटर्स चल रहे हैं।

तो सस्ती हो जाएंगी जांचे

डॉक्टर्स के अनुसार अगर कमीशन का सिस्टम बंद कर दिया जाए तो मरीजों के लिए जांचे काफी सस्ती हो जाएंगी। सबसे ज्यादा असर रेडियोडायग्नोसिस पर पड़ेगा। एमआरआई, सीटीस्कैन, अल्ट्रासाउंड के रेट्स 50 से 70 परसेंट तक कम हो जाएंगे। जबकि पैथोलॉजी की जांचें भी 15 से 30 परसेंट तक कम हो जाएंगी। शायद इसी कमीशन के लिए ही अक्सर सरकारी हो या प्राइवेट सभी डॉक्टर अक्सर एक पर्टिकुलर पैथोलॉजी सेंटर की पर्ची पर ही जांच लिखते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि उससे उनका कमीशन सेट है। जबकि डाक्टर को आइडियली अपने प्रिस्क्रिप्शन पैड पर लिखना चाहिए।

सरकारी प्रणाली भी जिम्मेदार

अभी तक भले ही सरकारी अस्पतालों में ओपीडी दो बजे तक चलती हो लेकिन रेडियोलॉजी और पैथोलॉजी में जांच के लिए शुल्क 11 बजे तक ही जमा होता है। इसके बाद मरीजों को अगले दिन बुलाया जाता है। यही वजह है कि तमाम मरीज या तो प्राइवेट सेंटरों से जांच कराते हैं या फिर अगले दिन का इंतजार। लेकिन अब दो बजे तक जांच करने के आदेश दिए गए हैं। पैथोलॉजी के डॉक्टर भी मानते हैं कि दिक्कत है। 2 बजे तक जांच की सुविधा तब तक नहीं मिल सकती जब तक कि जब पैथोलॉजी में मैनपावर दुगुने से ज्यादा न किया जाए। बलरामपुर हॉस्पिटल के एक सीनियर डॉक्टर के अनुसार जिन मरीजों का सैम्पल 11 बजे तक लिया जाता है उन्हीं के सैम्पल की जांच की रिपोर्ट बनाते बनाते शाम के 4 से 5 बजे जाते हैं। ऐसे में अधिक मरीजों की टेस्ट सम्भव नहीं। वर्तमान में बलरापमुर हॉस्पिटल में लगभग 2000 सिविल हॉस्पिटल में 1500 और लोहिया अस्पताल में लगभग 15000 जांचे रोजाना होती है। जबकि लगभग इससे कहीं ज्यादा मरीजों को प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेंटर्स में भेजा जाता है।

अगर एक ही प्राइवेट पैथोलॉजी सेंटर में जांच को मजबूर किया जाता है तो गलत है। यह मरीज का अधिकार है कि वह कहां जांच कराए। सरकार को इसके लिए सख्त नियम बनाकर उन्हें लागू करना होगा ताकि सभी जगह एक जैसे रेट्स हों।

डॉ। अनूप अग्रवाल, सेक्रेटरी, नर्सिग होम एसोसिएशन

हमारी एसोसिएशन कमीशन को इनकरेज नहीं करती। यह गलत है। लेकिन सभी डॉक्टर इसमें इन्वाल्व नहीं है। डॉक्टर्स को अपने पर्चे पर ही जांच लिखनी चाहिए और वह कहां जांच कराता है यह मरीज पर छोड़ देना चाहिए। जांच वहीं कराए जहां पर पैथोलॉजी सेंटर में डॉक्टर मौजूद हो।

डॉ। पीके गुप्ता, प्रेसीडेंट, एलएपीपीएम

Posted By: Inextlive