-लापरवाही के चलते गुमनामी का शिकार हो गई बड़ी योजना

-वर्ष 2011 में डिस्ट्रिक्ट लेवल पर ब्लड डोनर सूची बनाने की हुई थी शुरुआत

-डोनर के लिए दर-दर भटकते हैं लोग

ALLAHABAD: योजना का उद्देश्य बड़ा था। अगर ठीक से इस पर काम होता तो इलाज में जरूरी ब्लड के लिए जरूरतमंदों को दर-दर भटकने पर मजबूर नहीं होना पड़ता। उन्हें घर बैठे महज एक कॉल से डोनर अवेलेबल हो जाते, जिससे मरीज की जान बचाना आसान होता। लेकिन, सरकारी मशीनरी की अनदेखी के चलते जोर-शोर से शुरू हुई मुहिम अब गुमनामी के अंधेरे में खो चुकी है। हम बात कर रहे हैं डिस्ट्रिक्ट लेवल ब्लड डोनर्स डायरी की जिसको इतने सालों बाद भी पूरा नहीं किया जा सका।

तेजी से शुरू हुआ था काम, फिर ठप

वर्ष 2011 में तत्कालीन डीएम राजशेखर ने जिले के ब्लड बैंकों में खून की क्राइसिस को देखते हुए डोनर्स डायरी तैयार करने के निर्देश दिए थे। स्वास्थ्य विभाग की देखरेख में काफी तेजी से काम शुरू हुआ, लेकिन प्रशासनिक फेरबदल होते ही महत्वाकांक्षी योजना ठंडे बस्ते में चली गई। हालांकि, इसका उद्देश्य था कि डायरी में प्रत्येक ब्लड ग्रुप के लोगों को जोड़कर इसका प्रचार-प्रसार किया जाए। डायरी में डोनर्स का नाम उपलब्ध होने की वजह से लोगों के लिए ब्लड अरेंजमेंट काफी आसान हो जाता।

एक हजार से अधिक डोनर हैं दर्ज

आपको पता नहीं होगा कि डायरी में अभी भी एक हजार से अधिक ब्लड डोनर का नाम और मोबाइल नंबर दर्ज है। इसका आखिरी अपडेट 12 नवंबर 2011 को हुआ था। इसके बाद किसी डोनर को नहीं जोड़ा गया। जिले की ऑफिशियल वेबसाइट www.ALLAHABAD.nic.in पर मौजूद डायरी में डोनर्स के नाम को आसानी से सर्च किया जा सकता है। प्रचार-प्रसार नहीं होने की वजह से इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है। डायरी कंप्लीट होकर लांच नहीं होने की वजह से लोगों को इसकी जानकारी नहीं है।

फैक्ट फाइल

डायरी में किस ग्रुप के कितने डोनर मौजूद

कुल डोनर्स की संख्या- 1013

ए पॉजिटिव- 219

ए निगेटिव- 5

एबी पॉजिटिव- 73

एबी निगेटिव- 5

बी पॉजिटिव- 350

बी निगेटिव- 19

ओ पॉजिटिव- 309

ओ निगेटिव- 20

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चले जाते हैं दूसरे शहरों तक

शहर के ब्लड बैंकों में खून की अवेलेबिलटी प्रॉपर नहीं कही जा सकती है। इस समय इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन के अलावा एसआरएन, बेली और कॉल्विन हॉस्पिटल में ब्लड बैंक संचालित किए जा रहे हैं। औसतन प्रतिदिन तकरीबन 250 यूनिट ब्लड की आवश्यकता होती है, जिसमें महज 200 लोगों को ही आपूर्ति हो जाती है। बाकी मरीजों के परिजन या तो दूसरे शहर जाते हैं या दलालों के चक्कर में फंस जाते हैं।

कदम-कदम पर मौजूद हैं दलाल

खून के लिए भटकते लोगों को किस तरह दलाल अपने जाल में फंसाते हैं इसके लिए आई नेक्स्ट ने पड़ताल की। एसआरएन हॉस्पिटल के मेन गेट पर ही रिपोर्टर ने एक चाय की दुकान पर डोनर की चर्चा की तो देखते ही देखते दो युवक आ गए। इनमें से एक ने अपना नाम शीबू बताया और एक यूनिट के लिए तीन हजार रुपए की मांग की। वह बदले में ब्लड देने को तैयार हो गया। दूसरे युवक का नाम रंजीत था, उसने बतौर डोनर बनने के लिए चार हजार रुपए मांगे। उसने बताया कि जब भी खून की जरूरत हो, यहां मौजूद चाय-पान की दुकानों पर मेरा नाम बता देना। इंतजाम हो जाएगा।

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जला रहे जागारूकता की मशाल

खून बाजार में नहीं बिकता है। इसकी कमी को पूरा करने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान जरूरी है। शहर में ऐसी कई संस्थाएं और इंस्टीट्यूट हैं जो समय-समय पर ब्लड डोनेशन कर मरीजों का भला करते हैं। आइए इन संस्थाओं से रूबरू कराते हैं-

यूनाइटेड ग्रुप- यूनाइटेड ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की ओर से लगातार ब्लड डोनेशन कैंप आयोजित किया जाता है, जिसमें स्टूडेंट्स बड़ी संख्या में पार्टिसिपेट करते हैं। इसी ग्रुप के डॉ। आलोक मुखर्जी ऐसे कैंप को कोआर्डिनेट करते हैं। वह कहते हैं कि इससे समाजसेवा तो होती है, साथ ही बच्चों में रक्तदान की भावना का संचार भी होता है। लास्ट टाइम कॉलेज के बच्चों ने दो सौ यूनिट ब्लड डोनेट किया था।

एचडीएफसी बैंक- वर्ष 2007 से एचडीएफसी बैंक की ओर से ब्लड डोनेशन कैंप का आयोजन किया जा रहा है। इसमें बैंक के सैकड़ों कर्मचारी पार्टिसिपेट करते हैं। बैंक के ब्रांच हेड सचिन के मुताबिक स्वैच्छिक रक्तदान करने के एवज में कर्मचारियों को कार्ड मिलता है, जिससे उन्हें इमरजेंसी में ब्लड उपलब्ध होता है। इसके अलावा समय-समय पब्लिक की सहायता भी की जाती है।

इंकलाबी ब्लड डोनर्स वेलफेयर एसोसिएशन- इस संस्था के सचिव शाहिद अस्करी ने एक इंसीडेंट के बाद खुद 1995 में संस्था का निर्माण किया था। वर्तमान में संस्था से 1500 मेंबर जुड़े हैं जो समय-समय पर स्वैच्छिक रक्तदान कर आम जनता की हेल्प करते हैं। अभी तक संस्था सौ से अधिक कैंप में पार्टिसिपेट कर चुकी है।

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निगेटिव ब्लड ग्रुप की जरूरत न पड़े तो बेहतर

हमारी कुल जनसंख्या का एक फीसदी से कम लोगों में निगेटिव ब्लड गुप पाया जाता है। सबसे ज्यादा क्राइसिस एबी निगेटिव ग्रुप की होती है। शहर में भी निगेटिव ब्लड ग्रुप की उपलब्धता की स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती है। इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन के सीनियर फॉर्मासिस्ट प्रधान बताते हैं कि कभी-कभी निगेटिव ब्लड ग्रुप के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। पिछले तीन महीनों से ए और एबी पॉजिटिव की क्राइसिस से भी लोग परेशान हैं। उनका कहना है कि जिन लोगों के निगेटिव या रेयर ब्लड ग्रुप हैं, उन्हें समय-समय पर ब्लड डोनेशन जरूर करना चाहिए।

फैक्ट फाइल

ब्लड देने के लिए जरूरी कंडीशन

-उम्र 18 से 60 साल के बीच

-हीमोग्लोबिन 12.5 ग्रामम/डेसीलीटर

-पल्स भ्0 से क्00 प्रति मिनट हो

-ब्लड प्रेशर सौ से क्80 के बीच ऊपर और भ्0 से क्00 के बीच नीचे का हो

-शरीर का वजन ब्भ् किग्रा से कम न हो

ये नहीं दे सकते

-एंटी रैबीज, हैपेटाइटिस सी, इम्यूनोग्लोबिन का एक साल के अंदर उपचार लिया हो

-छह महीने के अंदर टैटू गुदवाया हो या कान छिदवाया हो

-छह महीने के अंदर एक्यूपंचर विधि से इलाज कराया हो

-गंभीर बीमारी या सर्जरी हुई हो

-पीलिया से पीडि़त हो

-तीन माह के अंदर रक्तदान किया हो या फिर मलेरिया का इलाज कराया हो

-एक माह के भीतर कोई टीकाकरण कराया हो

-ब्8 घंटे पहले दवा खाई हो

-बीते 7ख् घंटे में एस्प्रिन दवा खाई हो या दंत चिकित्सा कराई हो

-बच्चों को स्तनपान कराने वाली महिला

-माहवारी का वक्त हो

नोट- अभी खबर का एक बॉक्स और डीएम का वर्जन दिया जाएगा

Posted By: Inextlive